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Parsi Community History: पारसी समुदाय का उदय और वर्तमान स्थिति क्या थी, आइये जानें इसके बारे में सबकुछ

Parsi Dharam Ka Itihas in Hindi: क्या आप जानते हैं कि पारसियों की उत्पत्ति कैसे हुई थी और क्या है उनका इतिहास आइये आपको बताते हैं पारसी समुदाय से जुड़ी कई अहम बातें।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 14 Dec 2024 12:16 PM IST
Parsi Dharam Ka Itihas Wiki in Hindi
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Parsi Dharam Ka Itihas Wiki in Hindi

Parsi Dharam Ka Itihas Wiki in Hindi: भारत में पारसी समुदाय का आगमन और उनकी स्थायी उपस्थिति एक दिलचस्प ऐतिहासिक गाथा है, जो साहस, सांस्कृतिक समन्वय और सहिष्णुता का प्रतीक है। यह कहानी 7वीं और 8वीं शताब्दी के बीच शुरू होती है, जब ईरान के झरथुस्त्र धर्म (जो पारसी धर्म के नाम से जाना जाता है) के अनुयायी अरब आक्रमणों के कारण अपने देश से पलायन करने के लिए मजबूर हुए।

पारसी शब्द ‘पर्शिया’ से निकला है, जो आज के ईरान का प्राचीन नाम है। सातवीं सदी तक पर्शिया में ज़ोरोस्ट्रियन धर्म के अनुयायी बहुसंख्यक थे। 641 ईस्वी में, जब अरबों ने पर्शिया पर आक्रमण किया, तो सैसानी साम्राज्य के शासक यज़्देगर्द तृतीय की हार हुई। धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए ज़ोरोस्ट्रियन लोगों ने पलायन किया। इस पलायन के दौरान, 18,000 शरणार्थियों का एक समूह भारत पहुंचा और यहीं बस गया। यही समूह आज भारत में पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है।

Parsi Community (Image Credit-Social Media)

पारसियों के इतिहास को लेकर ज़्यादा किताबें उपलब्ध नहीं हैं। अधिकतर जानकारी क़िस्सा-ए-संजान नामक कविता से आती है, जिसे 1600 के आसपास पारसी पुजारी दस्तूर बहमन कैकोबाद ने लिखा था। वह गुजरात के नवसारी में रहते थे। शुरुआत में इस कविता को मात्र एक लोककथा माना गया। लेकिन हाल के पुरातात्विक सर्वेक्षण इसके प्रमाणिक होने के संकेत देते हैं। क़िस्सा-ए-संजान में पारसियों की भारत आगमन की कहानी बताई गई है। आगे बढ़ने से पहले, यह जानना महत्वपूर्ण है कि इस कविता में क्या लिखा है।

क़िस्सा-ए-संजान एक कविता है, जो 641 ई. में नेहावंद के युद्ध से शुरू होती है। इस युद्ध में ईरान के अंतिम सैसानी राजा यज़्देगर्द हार गए और पर्शिया पर अरबों का शासन स्थापित हो गया। हालांकि, कुछ राजकुमारों ने पर्शिया के ख़ोरासन प्रांत में विद्रोह जारी रखा, जहां ज़ोरोस्ट्रियन शरणार्थी भी शरण लिए हुए थे। ये शरणार्थी सैकड़ों वर्षों तक वहां रहे। आठवीं सदी में उन्होंने होरमुज़ को अपना नया ठिकाना बनाया। लेकिन 30 साल बाद वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया, जिसके बाद उनकी यात्रा भारत की ओर शुरू हुई। पारसियों का पहला जत्था भारत के पश्चिमी तट पर पहुँचा और 19 वर्षों तक दीव में रहा।

Parsi Community (Image Credit-Social Media)

दीव के बाद पारसियों का जहाज गुजरात पहुंचा। क़िस्सा-ए-संजान के अनुसार, दीव से गुजरात की यात्रा के दौरान उन्हें भयंकर तूफ़ान का सामना करना पड़ा। ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उन्होंने वादा किया कि अगर वे सुरक्षित पहुंच गए, तो वे 'आतश बहरम' नामक पवित्र अगियारी बनाएंगे। 'आतश बहरम' ज़ोरोस्ट्रियन धर्म में सबसे पवित्र मानी जाती है। तूफ़ान थमने के बाद वे गुजरात के वलसाड़ पहुंचे, जहां स्थानीय शासक जदी राणा ने चार शर्तों के साथ उन्हें शरण दी। यही से उन्हें ‘पारसी’ कहा जाने लगा।

गुजरात में शरण पाने के लिए पारसियों को चार शर्तें माननी पड़ीं: स्थानीय रीति-रिवाज अपनाना, भाषा बोलना, कपड़े पहनना और हथियार न रखना। शर्तें स्वीकारने के बाद उन्होंने एक नया शहर बसाया, जिसे अपने पूर्वजों के सम्मान में संजान नाम दिया। यहाँ उन्होंने 'आतश बहरम' का पवित्र मंदिर बनाया।

समय के साथ, पारसियों में आतश बहरम के पुजारी और न्यायिक अधिकार को लेकर विवाद हुआ। समाधान के तहत, उनके क्षेत्रों को पांच पंथक में बांटा गया, जिन पर पुजारी परिवारों का नियंत्रण था। निर्णय इन्हीं परिवारों से चुने गए।

Parsi Community (Image Credit-Social Media)

पारसियों की कहानी के अनुसार, संजान पर 13वीं सदी के अंत में अलफ खान ने हमला किया, संभवतः सुल्तान महमूद अलाउद्दीन खिलजी के आदेश पर। पारसियों ने पहली बार हथियार उठाए लेकिन हार गए। अपनी पवित्र अग्नि लेकर वे बहरोट पहाड़ों में छिपे रहे और बाद में वंसड़ा में बस गए। अंततः, कुछ नवसारी चले गए और अन्य संजान लौटे।

2002-2004 की पुरातात्विक खुदाई ने इस कथा को पुष्ट किया, जहां पश्चिम-एशियाई बर्तन, कांच और मुद्राएं मिलीं। तांबे की प्लेटों ने 10वीं-13वीं सदी में संजान में पारसियों की उपस्थिति की पुष्टि की।

क़िस्सा-ए-संजान की कहानी 13वीं सदी में समाप्त होती है। लेकिन इसके बाद की जानकारी ऐतिहासिक स्रोतों से मिलती है। पवित्र अग्नि 'आतश बहरम' 1741 तक नवसारी में थी। लेकिन विवाद के बाद इसे गुजरात के उडवाड़ा में स्थापित किया गया। आज भी, 2023 में, यह उडवाड़ा के प्रमुख पारसी मंदिर में स्थित है। इस अग्नि को ‘ईरानशाह’ कहा जाता है और यह पारसी समुदाय का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है। पारसी लोग हर प्रमुख धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान से पहले यहां पूजा करने आते हैं।

दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा पारसी समुदाय से थे, जिसकी संस्कृति और परंपराएं प्राचीन फारस (ईरान) से जुड़ी हैं। इस समुदाय ने दुनिया के विभिन्न देशों में अपनी अनोखी परंपराओं और समृद्ध संस्कृति का परिचय दिया। धर्म, कला, खानपान और अंतिम संस्कार तक, पारसियों की विशिष्ट पहचान रही है। लचीलेपन और जुझारू स्वभाव के कारण ये जहां गए, वहां अपनी जगह बना ली। भारत के विकास में भी उनका अहम योगदान है।

पारसी मान्यता

यह मान्यता है कि जरथुस्त्र, संस्थागत धर्म के पहले पैगंबर थे। इस धर्म के अनुयायी एक ही ईश्वर, अहुरमज्दा को मानते हैं। हालांकि अहुरमज्दा पारसियों के सबसे बड़े देवता हैं, उनके दैनिक अनुष्ठानों और कर्मकांडों में अग्नि को भी महत्वपूर्ण देवता के रूप में पूजा जाता है।

पारसी धर्म में अग्नि को जीवन का निर्माता, प्रकाश, ऊर्जा और गर्मी का स्रोत माना जाता है। इसके हर अनुष्ठान और समारोह में अग्नि को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। भारत में आठ अताश बेहराम मंदिर हैं, जिनमें गुजरात के उदवाड़ा का ईरानशाह अताश बेहराम प्रमुख है, जहां 1240 साल पुरानी अग्नि जल रही है। इसके बिना कोई धार्मिक अनुष्ठान या विवाह अधूरा माना जाता है।


पारसी धर्म में स्पेन्ता मैन्यू (विकास की शक्ति) और अंग्र मैन्यू (विनाश की शक्ति) की भी मान्यता है। साथ ही सात देवदूतों की पूजा की जाती है, जो विभिन्न प्राकृतिक तत्वों पर शासन करते हैं।

पारसी समुदाय का विशेष कैलेंडर

पारसी समुदाय अपने विशेष कैलेंडर के अनुसार त्योहार मनाता है, जिसमें प्रमुख रूप से गहंबर, खोरदाद साल, पतेती और जमशेद-ए-नवरोज़ आते हैं। गहंबर त्योहार में छह ऋतुओं के हर गहंबर में विशेष पूजा और सामूहिक भोज होता है। खोरदाद साल पर पारसी समाज जरथुस्त्र के जन्म का उत्सव मनाता है। पतेती में पवित्र अग्नि के सामने किए गए गलत कार्यों के लिए पश्चाताप किया जाता है। जमशेद-ए-नवरोज पारसी शासक जमशेद के सिंहासन पर आसीन होने के दिन मनाया जाता है।

विवाह की रस्म

Parsi Community (Image Credit-Social Media)

पारसी विवाह की रस्म को पसंदे कदम कहा जाता है। इसमें दूल्हा-दुल्हन को आमने-सामने बैठाकर तीन बार यह पूछा जाता है कि क्या वे एक-दूसरे से शादी करना चाहते हैं। यदि दोनों सहमत होते हैं, तो सिर हिलाकर अपनी सहमति जताते हैं। पारसी धर्म में अंतरधार्मिक शादी के मामलों में यदि पुरुष विवाह करता है, तो उसकी संतानें पारसी मानी जाती हैं, लेकिन अगर महिला शादी करती है, तो उनकी संतानें पारसी नहीं मानी जाती हैं, जिससे पारसी जनसंख्या घट रही है।

पारसियों का अंतिम संस्कार

पारसियों के अंतिम संस्कार की एक अनोखी प्रक्रिया है, जहां शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' या दखमा में रखा जाता है, जहां गिद्ध शव को खाते हैं।


इसे इसलिए किया जाता है क्योंकि पारसी धर्म में अग्नि, जल और पृथ्वी को पवित्र माना जाता है और इन तत्वों के माध्यम से शव को न जलाना और न दफनाना सही समझा जाता है। यह प्रक्रिया आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त करती है।

सुगंधित मसालों का स्थान

पारसियों के भोजन में स्वाद और सुगंधित मसालों का प्रमुख स्थान है। धनसाक, सल्ली बोटी और पात्रा नी मछली जैसे व्यंजन उनकी विशेषता हैं, जबकि फलूदा और कुल्फी उनके मीठे व्यंजनों में शामिल होते हैं।

पारसियों का पारंपरिक पहनावा

पारसियों का पारंपरिक पहनावा विशिष्ट और खास होता है। महिलाएं गहरे रंग की साटन साड़ी पहनती हैं, जिसमें विपरीत रंगों की कढ़ाई की जाती है। इन साड़ियों पर यूरोपीय डिजाइनों, जैसे ट्यूलिप और तितलियों के चित्र होते हैं।


वे पापूश नाम की मखमल चप्पलें पहनती हैं, जो सोने की चमक और स्फटिक से सजी होती हैं। पुरुषों का पहनावा कुश्ती डोरी और पवित्र कुर्ते से जुड़ा होता है। पारसी नववर्ष पर मोती की बालियां पहनने की परंपरा भी है।

घटती जनसंख्या और सरकार की योजना

पारसी समुदाय ने व्यवसायों की स्थापना और कला को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन उनकी जनसंख्या तेजी से घट रही है। 2001 की जनगणना में पारसियों की संख्या 69,601 थी, जो 2011 में घटकर 57,264 रह गई। इस तेजी से घटती जनसंख्या को बढ़ावा देने के लिए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 'जियो पारसी' योजना शुरू की है।लेकिन इसका असर सीमित ही रहा है। मुंबई और सूरत में इस समुदाय का जन्म दर मृत्यु दर से काफी कम है। 1941 में 114,000 की संख्या से घटकर अब 50,000 के आसपास रह गई है।

गैर पारसी वर्जित

मुंबई के केंद्र में स्थित पारसियों के अग्नि मंदिर 'आताशगाह' की दीवारों पर बने सुंदर भित्ति चित्र और "गैर पारसियों का प्रवेश वर्जित है" लिखी तख्ती सहज ही ध्यान आकर्षित करती हैं। इस प्रतिबंध से अक्सर सवाल उठता है कि जब ईश्वर एक है तो यह रोक क्यों?

भारत में पारसी धर्म का विकास:

भारत में पारसी समुदाय ने अपनी धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखा। वे जरथुस्त्र के सिद्धांतों का पालन करते हुए ‘गया’, ‘अहुरा मज़्दा’(सर्वोच्च ईश्वर), और ‘अग्नि’ (पवित्र अग्नि) की पूजा करते थे। उन्होंने अपने रीति-रिवाज, त्योहार और अनुष्ठानों को जीवित रखा। उनकी धार्मिक और सामाजिक संरचना ने उन्हें एकजुट रखा।


ब्रिटिश काल में उन्नति- ब्रिटिश राज के दौरान, पारसी समुदाय ने व्यापार और उद्योग में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वे अंग्रेजों के साथ मिलकर काम करने वाले पहले भारतीय समुदायों में से एक थे। उन्होंने शिक्षा और आधुनिकता को अपनाया और मुंबई को अपनी प्रमुख व्यापारिक राजधानी बनाया।जमशेदजी टाटा, जो भारत के औद्योगिक विकास के अग्रदूत थे, पारसी समुदाय से थे।पारसी लोगों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और परोपकार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अस्पताल, विद्यालय और धर्मशालाएं बनाईं।

भारत में पारसियों की पहचान:

पारसी समुदाय को उनकी ईमानदारी, मेहनत, और शांतिप्रिय स्वभाव के लिए जाना जाता है। उन्होंने भारत की विविधता को अपनाया और इसे समृद्ध किया।

आज की स्थिति:

हालांकि पारसी समुदाय संख्या में छोटा है। लेकिन भारत में उनकी पहचान और योगदान अनुपम है। जनसंख्या में गिरावट उनके लिए चिंता का विषय है। इसे रोकने के लिए पारसी समुदाय विशेष कार्यक्रम चला रहा है, जैसे ‘जियो पारसी।’

पारसी समुदाय की भारत में यात्रा और बसावट एक प्रेरणादायक गाथा है। यह कहानी न केवल साहस और संघर्ष की है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे विविधता और समन्वय से एक मजबूत और समृद्ध समाज बनाया जा सकता है। उनका भारत में योगदान, चाहे वह व्यापार हो, उद्योग, शिक्षा या परोपकार, भारतीय इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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