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Holi 2023 Phagua: 'फगुआ' बिना होली अधुरी, इसे गाया भी जाता है और मनाया भी जाता है

Holi 2023 Phagua: यूं तो शहरों में गाने-बजाने का माहौल डीजे की मस्ती से जुड़ा होता है, लेकिन गांवों में आज भी ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ गाने गाए जाते हैं। इस वर्ष होली 8 मार्च को है, लेकिन कुछ दिन पहले ही गांवों में गीत-संगीत का दौर शुरू हो जाता है।

Preeti Mishra
Written By Preeti Mishra
Published on: 16 Feb 2023 9:03 AM IST
Holi 2023 Fagua
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Holi 2023 Fagua (Image credit: social media) 

Holi 2023 Phagua: देशभर में होली के त्योहार की तैयारियां जोरों-शोरों से की जा रही हैं. बाजार अद्भुत हैं। खेतों में हरियाली। मन में उल्लास गांव से लेकर शहर तक उत्साह चरम पर है। होली सिर्फ रंग और गुलाल का ही नहीं...बल्कि लजीज पकवानों का भी त्योहार है। शहरों में होली मिलन कार्यक्रमों की तैयारी है तो दूसरी ओर गांव के खेतों में नई फसल लहलहा रही है और किसानों में उत्साह है।

यूं तो शहरों में गाने-बजाने का माहौल डीजे की मस्ती से जुड़ा होता है, लेकिन गांवों में आज भी ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ गाने गाए जाते हैं। इस वर्ष होली 8 मार्च को है, लेकिन कुछ दिन पहले ही गांवों में गीत-संगीत का दौर शुरू हो जाता है।

अगर आप किसी गांव में हैं तो आपने कुछ ऐसे ही राग-ताल में कुछ आम गाने जरूर सुने होंगे। रघुबर से खेल्ब हम होली सजनी... रघुबर से...। और होरी खेले रघुबीरा….. जैसे गाने बज रहे हैं। शाम होते ही एक टीम निकलती है। किसी के पास ड्रम है तो किसी के पास। कहीं चौपाल लगाई और माहौल शुरू हो गया।

यह केवल फगुआ है। हाँ! फागुन के महीने का फगुआ फगुआ…. जिसे गाया और मनाया भी जाता है। आप बिहार, उत्तर प्रदेश के गांवों के नहीं हैं, फिर भी आपने होली के माहौल में यह 'फगुआ' शब्द जरूर सुना होगा। आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं।

बिहार और यूपी में फगुआ बिन होली कैसी!

उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में भी होली का असली मजा होली स्पेशल फगुआ गाने से आता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में बसंत पंचमी के बाद से ही होली के गीत गाए जाने लगते हैं और यह सिलसिला होली तक चलता रहता है। कई लोग इन गानों को फाग भी कहते हैं तो कई लोग फागू। महेंदर मिसिर के कई लोकगीतकारों और गीतकारों ने फगुआ को एक परंपरा के रूप में विकसित करने में भूमिका निभाई है।

फगुआ का क्या अर्थ है?

फगुआ का मतलब फागुन होता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह मार्च का महीना है, लेकिन भारतीय हिंदी कैलेंडर में यह फाल्गुन का महीना है। इसे फागुन कहते हैं। फागुन में होली का त्योहार आता है और इस दिन रंग खेलने की परंपरा है। बिहार और यूपी में सुबह रंग खेलते हैं और शाम को अबीर गुलाल। साथ ही द्वार पर चलकर फगुआ गाने की भी परंपरा है। गाँवों में फगुआ लोकगीत गाए जाते हैं, जिसे फाग भी कहा जाता है।

प्रेम का रंग समाया हुआ है

फगुआ मूल रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल) और उसके आसपास के इलाकों का लोकगीत है। ढोल-नगाड़े की थाप पर लोग गाते हैं। फेज में होली के रंग, प्राकृतिक सौंदर्य और भगवान कृष्ण और राधा रानी की लीलाओं और पवित्र प्रेम को गीतों के माध्यम से समाहित किया गया है।

पूर्वांचल परंपरा रंग

इसे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत का एक रूप कहा जाता है, जो लोक से जुड़ा है। इतना ही नहीं पूर्वांचल के कई इलाकों में होली के दिन भी लोग धूल से होली खेलते हैं, जिसे धुड़खेल कहा जाता है. इसके बाद रंगो वाली होली खेलती है और फिर इसके बाद नहाकर अबीर और गुलाल लगाती है। फिर घर-घर फगुआ गाने की भी परंपरा है। अगर आप भी इस होली गांव में हैं तो फगुआ का लुत्फ उठाएं। शामिल हों, गाएं और गाएं।



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Preeti Mishra

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Content Writer (Health and Tourism)

प्रीति मिश्रा, मीडिया इंडस्ट्री में 10 साल से ज्यादा का अनुभव है। डिजिटल के साथ-साथ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी काम करने का तजुर्बा है। हेल्थ, लाइफस्टाइल, और टूरिज्म के साथ-साथ बिज़नेस पर भी कई वर्षों तक लिखा है। मेरा सफ़र दूरदर्शन से शुरू होकर DLA और हिंदुस्तान होते हुए न्यूजट्रैक तक पंहुचा है। मैं न्यूज़ट्रैक में ट्रेवल और टूरिज्म सेक्शन के साथ हेल्थ सेक्शन को लीड कर रही हैं।

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