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Sanatan Dharma: सनातन धर्म में शिखा या चोटी रखने का उद्देश्य या महत्त्व

Sanatan Dharma: मैं उन सभी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने आगे बढ़कर इस विषय पर अपने विचार रखे। परन्तु सभी विचारों को प्राप्त करने के पश्चात भी हम मुख्य उद्देश्य नहीं बता पाए। आईये अब इस पर विस्तृत चर्चा करते हैं।

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Published on: 11 March 2023 9:01 PM IST
Sanatan Dharma
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Sanatan Dharma (Pic: Social Media)

Sanatan Dharma: अभी कुछ दिन पहले शिखा रखने के उद्देश्य के विषय में पोस्ट डाली थी एवं सभी लोगों के विचार आमंत्रित किये गये थे। बहुत लोगों के उत्तर आये और कई लोगों ने सार्थक उत्तर देने का प्रयास भी किया। मैं उन सभी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने आगे बढ़कर इस विषय पर अपने विचार रखे। परन्तु सभी विचारों को प्राप्त करने के पश्चात भी हम मुख्य उद्देश्य नहीं बता पाए। आईये अब इस पर विस्तृत चर्चा करते हैं।

शिखा का महत्त्व जानने से पहले कुछ प्रश्न हमें अपने मस्तिष्क में रखने होंगे।

1. मुंडन क्यों किया जाता है ? और पूरे बाल हटवाने के बाद भी ब्रह्म रंध्र पर उगे बालों को क्यों छोड़ दिया जाता है ?

2. मंदिरों में मुंडन करवाने का क्या औचित्य है ?

3. किसी के मर जाने पर ( माता , पिता , भाई , इत्यादि ) मुंडन क्यों करवाया जाता है ?

4.जब कोई सन्यासी बनता है तो मुंडन क्यों किया जाता है ? किसी भी सम्प्रदाय , मठ , या धर्म में जब भी संन्यास धारण किया जाता है तो मुंडन क्यों करवाया जाता है ?

5. शिखा पर गाँठ बाँधने का क्या अभिप्राय है ?

6. ब्राह्मण वर्ग को अवश्य ही शिखा धारण करने को कहा जाता है, ऐसा क्यों ? कोई रखे या न रखे पर कोई व्यक्ति शिखा रखता है तो दूर से ही पहचान में आ जाता है कि यह ब्राह्मण वर्ग से ही होगा। इन प्रश्नों को मस्तिष्क में रख कर हम आगे बढ़ते हैं।

देखिये विश्व के समस्त धर्म के ग्रंथों में मनुष्य देह को सर्वोत्कृष्ट बताया गया है क्योंकि यह देह ज्ञान एवं बुद्धि प्रधान देह है और यह एक कर्मयोनि है, इसी योनि में आप ज्ञान प्राप्त करके अच्छे कर्मों को करके उस महातत्व या सत्य को प्राप्त कर सकते हैं ! यहाँ आपको कर्म करने का अधिकार प्राप्त है। बाकी की समस्त जीव योनियाँ एकमात्र भोग योनियाँ हैं। जहाँ उनको सिर्फ उनके किये गये कर्मों को भोगवाया जाता है। उन्हें शुभ या अशुभ कर्म करने का अधिकार नहीं है। तो समस्त धर्म ग्रन्थ इसीलिए मानव देह का महत्त्व बताते हैं। मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य भगवान् , ईश्वर ,परम सत्य , ब्रह्म ( या जिस भी नाम से आप उसे पुकारते हैं ) उसको पाना है।

मनुष्य देह एकमात्र खाने पीने, खेलने, घर बनाने, बच्चा पैदा करने और फिर मर जाने के लिए ही नहीं हुआ है, बल्कि मनुष्य देह का एकमात्र उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति करके उस परमतत्व या ब्रह्म को पाना है। मैं इस पर वेदों के, शास्त्रों के अन्यान्य धर्मग्रंथों के श्लोक या मंत्र नहीं दूंगा क्योंकि लेख बहुत ही लम्बा हो जाएगा।

इसी मानव देह के उद्देश्य को समझाने हेतु या याद दिलाने हेतु शिखा रखने का प्रावधान है। शिखा द्योतक है उस उद्देश्य को प्राप्त करने का। शिखा प्रतीक मात्र है आपके लक्ष्य को याद दिलाने का या उसको Prominent दिखाने का।

जैसा कि अमित अज्ञेय आत्मन् जी ने भी बताया कि यह देह एक देवालय के समान है जहाँ अलौकिक शक्तियों का निवास है। बस उसे साधना करके उसे जगाने का प्रयत्न मात्र करना है। कुण्डलिनी शक्तियों के सातों चक्रों को जागृत करने में जो सबसे अंतिम चरण आता है वह है सहस्त्रार चक्र या जिसे योगियों की भाषा में ब्रह्मरंध्र कहा जाता है, यहीं शिखा रखने का प्रावधान है।

योगी या सिद्ध महापुरुष शरीर छोड़ते वक्त अपनी आत्मा को सहस्त्रार या ब्रह्म रंध्र से निकालते हैं। हम संसारी लोग शरीर छोड़ते नहीं हैं बल्कि जबरदस्ती छुड्वाया जाता है वो भी नौ द्वारों से।वो नौ द्वार आप सब जानते ही होंगे।

तो एकमात्र यही उद्देश्य समझाने हेतु कि हे मनुष्यों तुम्हारा लक्ष्य एकमात्र उस ब्रह्म को पाना है। यह याद रहे, उन शक्तियों को जागृत कर अपने "स्व" को सहस्त्रार चक्र में पहुँचाना है, जहाँ ब्रह्म का निवास स्थान है। सभी कार्य करते हुए अपने लक्ष्य को नहीं भूलना है, एकमात्र इसी कारण शिखा जैसे प्रतीक को धारण किया जाता है।

अक्सर जब लोग संन्यास धारण करते हैं तो उनका मुंडन किया जाता है जिसका अर्थ होता है आज से तुम्हारा संसार ख़त्म किया जाता है और तुम्हारा एकमात्र उद्देश्य भगवान् की प्राप्ति है। जिसके प्रतीक रूप में सभी बाल काटे जाते हैं। एकमात्र शिखा छोड़ी जाती है। बाल प्रतीक है संसार का। क्योंकि सिर मस्तिष्क का निवास स्थान है, जहाँ सभी से सम्बंधित मनगढ़ंत संसार का उत्पादन होता है।

चित्तमेव हि संसारः !

मनमेव हि संसारः !

संसार एकमात्र मन द्वारा निर्मित है और मन को नियंत्रित करती है बुद्धि। बुद्धि ही संसार बनाती है और बिगाडती है। इसीलिए सन्यासियों को या जब कोई दीक्षित होता है उसका मुंडन किया जाता है कि अब तुम्हें अपने मस्तिष्क में इस संसार को नहीं बसाना है, केवल एकमात्र ब्रह्म प्राप्ति ही तुम्हारा मुख्य उद्देश्य रह गया है। ब्राह्मणों को शिखा रखने का निर्देश दिया गया है। क्योंकि उन्होंने ब्रह्म प्राप्ति या ब्रह्म को जानने का मार्ग या पथ चुन लिया है। यह दूर से ही पता लग जाए कि अमुक व्यक्ति का उद्देश्य अब केवल ब्रह्म प्राप्ति ही है। इसीलिए उन्हें ब्राह्मण कहा जाता था।

हाँ सांसारिक दायित्यों की पूर्ति करते हुए राग द्वेष रहित बिना संसार में लिप्त हुए अपने उद्देश्य को नहीं भूलना है। गाँठ बांधना भी यही एक प्रक्रिया है कि बार बार याद आता रहे। आज भी बोला जाता है कि यह बात गाँठ बाँध लो, अर्थात यह नहीं भूलना है, सब भूल जाओ पर इस बात को याद रखना आवश्यक है। जब तक यह बात नहीं पूरी हो जाती तब तक उस पर कार्य करना है।

किसी के मरने पर मुंडन करवाया जाता है और शिखा छोड़ी जाती है। वह इसीलिए कि मरे हुए व्यक्ति से सम्बंधित जो संसार था अब वह ख़त्म हो गया है, अब नवीन संसार का उद्भव होगा। लेकिन अब भी तुम्हारा मुख्य उद्देश्य ब्रह्म की प्राप्ति ही है। जो शिखा छोड़कर याद दिलाने का एक उपक्रम है। अर्थात सब कार्य निष्पादित या करते हुए भी तुम्हारे जीवन का उद्देश्य एकमात्र उसे पाना ही है।

पहले के समय में किसी के पति के मर जाने पर औरत का मुंडनकर दिया जाता था, यह दिखने के लिए कि उसके पति से सम्बंधित जो था अब ख़त्म हो गया, अब नवीन जीवन की शुरुवात हो।आज भी मंदिरों में मुंडन करवाने का प्रचलन है ! बोलते हैं कि अमुक देवी देवता को हम अपने बाल अर्पण कर रहे हैं। ये एकमात्र मूर्खता है। भला तुम्हारे बाल लेकर भगवान् क्या करेगे ? उन्हें बालों की कोई कमी है क्या ? इसका एकमात्र उद्देश्य यही याद दिलाना है कि हे प्रभु हमें दुबारा याद आ गया कि हमारा मुख्य उद्देश्य संसार नहीं बल्कि तुम्हें पाना है।

बस होता क्या है लोग प्रतीकों को ढोते रहते हैं और उसका उद्देश्य और मर्म सब ख़त्म हो जाता है। ये उसी तरह है जैसे कोई अपनी ऊँगली से इशारा करके हमें सूर्य और चन्द्रमा दिखाए और हम सूर्य और चन्द्र को न देखकर एकमात्र उसकी ऊँगली देखते रहे। देखिये ये जो Antenna वाली बात है, एकमात्र अज्ञानता की पराकाष्ठ है। किसी ने मजाक उड़ाने के उद्देश्य से शिखा पर यह तंज कसा होगा और उसे किसी मूर्ख ने सत्य मानकर प्रचलित कर दिया।

भला एक बालों का गुच्छा जो कि मायिक पंचतत्व से निर्मित है, उस दिव्य भगवान् से सम्बन्ध कैसे स्थापित कर सकता है ? अरे दिव्य चीजों को ग्रहण करने के लिए दिव्य चीज की ही आवश्यकता होती है। अरे न पञ्च तत्वों में ही इतना विरोधाभास है कि आँख का जो विषय है वह आँख ही देख पाती है, कितना भी कोई कर ले आँख से कान का काम नहीं लिया जा सकता तो उस परम तत्व से communicate करने के लिए बालों का गुच्छा ? या तो आपने उस परम तत्व को ऐरा गैरा समझ लिया है, या तो आप नासमझ हैं।

भगवान् को कौन देख सकता है? भगवान् की दिव्य आँखें। भगवान् को कौन सुन सकता है ? भगवन के दिव्य कान। भगवान् को कौन स्पर्श कर सकता है ? भगवान् के दिव्य हाथ।.इसीलिए राम और कृष्ण के अवतार काल में भी कुछेक चुनिन्दा लोगों को ही पता था कि वह भगवान् हैं। बाकी के सब उन्हें साधारण राजा का बेटा और नन्द का छोकरा ही मानते थे। भगवान् का विराट स्वरुप मात्र अर्जुन ने, भीष्म ने, विदुर जी जैसे महापुरुषों ने ही देखा। इसीलिए इस मायिक मन और बुद्धि को दिव्य बनाने के लिए साधना की जाती है ताकि वह दिव्य होकर उस दिव्य तत्व का अनुभव कर सके।

भगवान् आकर आपके सामने खड़े भी हो जाएँ, आप भगवान् को नहीं देख और समझ सकते। आप उन्हें साधारण प्राणी ही मानेंगे जब तक कि उस दिव्य तत्व को अनुभव करने हेतु आपको दिव्य इन्द्रियाँ न मिलें। अब आती है बात अथर्व सूत्र की या अमृत जैसा तत्व निकलने की जैसा कि कई मित्रों ने बताया कि ऐसा कोई तत्व निकलता है शिखा स्थान पर जिसकी रक्षा के लिए यह बालों का गुच्छा रखा जाता है।

इस बात से बिलकुल इनकार नहीं किया जा सकता कि अथर्व सूत्र या अमृत तत्व जैसा कुछ निकलता है।.लेकिन कब निकलता है इसको समझना आवश्यक है। जब अपनी शक्तियों को जागृत करने के पश्चात हम सहस्त्रार चक्र को वेधित या activate करते हैं, तब यह क्रिया आरम्भ होती है। यहाँ मूलाधार चक्र को ही कोई activate नहीं कर पाता, तो सहस्त्रार चक्र तक पहुँचने की बात करना ही बेमानी है। हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा के वह दिव्य तत्व नहीं निकलेगा। और दूसरी बात यह सूक्ष्म अमृत तत्व वह दिव्य तत्व है जिसकी रक्षा एक दिव्य तत्व ही कर सकती है, कोई पञ्च महाभूत से बना बालों का गुच्छा नहीं का सकता है और न ही करेगा।

इस बात का हमें ध्यान देना है कि दिव्य तत्व को दिव्य तत्व की ही आवश्यकता पड़ेगी। आज अपने को जाति से ब्राह्मण मानने वालों ने शिखा रखी है पर उसका उद्देश्य नहीं जानते। बस उन्हें उसे रखना है बात खत्म। मतलब स्कूल ड्रेस पहनना है, टाई लगानी है पर स्कूल जाकर पढना नहीं है। ये उसी भोले बालक की तरह है जो स्कूल ड्रेस पहनकर और टाई लगाकर बिना स्कूल जाए और पढ़े ही अपने आप को स्कूल का topper बताते हैं। कोई कार्य आप किसलिए कर रहे हैं उसका उद्देश्य क्या है, अगर नहीं जान रहे हैं तो वह उद्देश्य कभी पूरा नहीं होगा और वह आप अपने साथ एक धोखा कर रहे हैं।

जैसे स्कूल ड्रेस पहनकर, या barrister का ड्रेस पहनकर, या फॉर्मल ड्रेस पहनकर ही आप अपने पढ़ाई, प्रोफेशन, या अपने कार्य के प्रति serious होते हैं ठीक उसी प्रकार इस शिखा को धारण करने के पश्चात यह seriousness आ जानी चाहिए कि हमारा लक्ष्य क्या है और हमें क्या करना है। ऐसे ही तिलक लगाने का, जनेऊ धारण करने का, गले में तुलसी माला पहनने का, हाथ में रक्षा सूत्र बाँधने का, भगवा वस्त्र धारण करने आदि आदि का क्या उद्देश्य है यह समझना पड़ेगा तभी इनकी सार्थकता हो पाएगी। अन्यथा वही होगा कि आप लकीर को पीट रहे होंगे और साँप पीछे से आकर आपको काट जाएगा।

हाँ एक बात और ध्यान देने की है कि भगवद प्राप्ति का सम्बन्ध इन प्रतीकों से बिलकुल भी नहीं है। ये एकमात्र साधन बनाने में सहायक होंगें। शिखा रखने से भगवान् का कोई सम्बन्ध नहीं है। आप बिना शिखा रखे ही उस परम तत्व को पा सकते हैं। जैसे स्कूल ड्रेस का पढ़ाई या ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं है ठीक उसी प्रकार इन प्रतीकों का भगवद प्राप्ति, सत्य प्राप्ति, ब्रह्मप्राप्ति, ईश्वर प्राप्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।

(ब्रजेन्द्र)



Durgesh Sharma

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