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Radha Krishna Story: राधा कैसे हुई श्याम सुन्दर की दीवानी, जानिए उनकी प्रेम कहानी
Radha Krishna Love Story : श्याम सुन्दर तो सदा ही श्रीराधा के अधीन हैं , क्यों ? इसलिए कि श्रीराधा कृष्ण की चित्त को अपनी ओर खींचने वाली हैं । यानि चित्ताकर्षिणी हैं .मैंने कहा
सुन री !
श्याम सुन्दर तो सदा ही श्रीराधा के अधीन हैं , क्यों ? इसलिए कि श्रीराधा कृष्ण की चित्त को अपनी ओर खींचने वाली हैं । यानि चित्ताकर्षिणी हैं .मैंने कहा ।
क्यों ?
यमुना की तरंगों को निहारते हुए कुनकुनी धूप में बैठकर युगलघाट में आज गौरांगी मुझ से प्रश्न पर प्रश्न किए जा रही थी ।
मैंने कहा-इसलिए कि श्रीराधा कृष्ण की प्राण जीवन जरी हैं ।
क्यों ? हंसते हुए फिर गौरांगी ने ।
मैंने कहा - पागल है क्या ! इसलिए कि श्रीराधा कृष्ण की सर्वस्व धन हैं ।
ये सुनते ही गौरांगी के नेत्र सजल हो गये।उसी क्षण उसने मुझे महावाणी जी का ये पद सुना दिया।
मेरे सर्वस धन स्वामिनी , मोहे कछु ओर न सुहावै री
हरि जी ! क्या कहूँ। श्याम सुन्दर की सर्वस्व हैं ये श्रीराधा।स्वयं आह भरते हुए श्याम सुन्दर कह रहे हैं। मुझे और कुछ अच्छा नही लगता। बस अपनी श्रीराधा । ये बात वो सखियों से कहते हैं कि मुझे और कुछ सुहाता ही नही है। बस। मेरी श्रीराधा । राधा। ये कहते हुये श्याम सुन्दर लम्बी स्वाँस लेते हैं ।
गौरांगी मुझे बता रही है। बताते बताते वो इस रस में डूब जाती हैं। मैं जब उसे देखता हूँ तो वो मुझे निकुँज की ही कोई सखी लगती है।”तुम भी सखी हो।” वो मेरे मनोभाव को जानकर ही बोल उठी थी । मैं कहाँ देहासक्ति में बंधा एक जीव । किन्तु उसने मेरी बात का उत्तर न देते हुए आगे कहना जारी रखा था ।
ये दोनों एक दूसरे से बंधे हैं। आसक्त हैं। ओह ! हरि जी ! क्या अद्भुत और विलक्षण ये रस है कि “आनन्द अपने आह्लाद” पर मुग्ध है ! आनन्द अपने आह्लाद को देखकर अपने को भी विस्मृत कर देता है। आनन्द कौन है ? अजी ! श्याम सुन्दर । और आल्हाद ? श्रीराधिका जू । ये दोनों परस्पर आसक्त हैं। एक दूसरे के बिना रह नही सकते । गौरांगी का मुखमण्डल दमक रहा था ये सब कहते हुए । हरि जी ! श्याम सुन्दर ही आसक्त हैं श्रीराधा के प्रति ऐसा भी नही है। महावाणी के अनुसार तो दोनों ही एक दूसरे में आसक्त हैं। तभी उन्मुक्त रस केलि होगी। केवल श्याम सुन्दर ही पीछे पड़े हैं। ऐसा नही है ।
थोड़ा सुनिये हरि जी ! निकुँज में सखियों के मध्य बैठीं श्रीप्रिया जी क्या कह रही हैं !
ब्याह हो गया। सुरत सेज में विहार भी हो गया ।
सखियाँ आयीं हैं प्रिया जी के पास। श्याम सुन्दर गए हैं पुष्प चुनने। तब अकेली प्रिया जी सखियों को अपने हृदय की बात बताती हैं।
सहेली ! मैं क्या कहूँ। मुझ पर अपने प्राण वार दिये हैं प्रियतम ने । मैं जो कहती हूँ वो वहीं कहते हैं। मैं कहूँ रात तो वो रात कहते हैं। और मैं कहूँ दिन तो वो दिन कहते हैं । मेरी ओर ही मुख करके बैठे रहते हैं । मुझे कहते हैं । मेरे ये नयन अभी प्यासे हैं। इन्हें तृप्त हो जाने दो। और वो बस मुझे देखते रहते हैं। अरी मेरी सहेली ! उनका प्रेम तो देखने जैसा है। मुझे देखते देखते त्राटक लग जाती है, उनकी जैसे कोई ऋषि मुनि हों। उनकी स्वाँस भी रुक जाती है। मैंने कहा भी उनसे कि प्यारे ! आप स्वाँस क्यों नही ले रहे तो आह भरते हुए वो बोले प्यारी ! स्वाँस लेता हूँ तो तिहारे दर्शन में विघ्न पड़ता है। ओह ! सहेली ! मैं तो उनकी इस प्रीति पर बलिहारी जाऊँ। कितना प्रेम करते हैं वो मुझ से ।
क्या आप नही करतीं ? सखी ने पूछा श्रीराधिका जू से ।
तो उत्तर दिया श्रीराधारानी ने-
“तनिक हूं छिन न परे री , बिन देखे पिय मोहि ।
तू मेरी हितू सहचरी , तातैं कहति हौं तोहि” ।( महावाणी )
हे मेरी हितू सहेली ! तू मेरी है इसलिए मैं तुझे कहती हूँ। सच ये है कि प्रियतम के बिना मेरा एक पल भी मन नही लगता । इतना प्रेम है उनका मेरे प्रति उसको देख देखकर मैं रीझ जाती हूँ। अपने आप को प्रियतम के ऊपर वार देती हूँ। वो मेरे प्राण हैं। ये कहते हुए श्रीराधारानी अपने नयनों को मूँद लेती हैं।अपने वक्षस्थल में हाथ रखकर आह भरती हैं ।
हरि जी ! आप श्रीमहावाणी के “सिद्धांत सुख” पर क्यों नही लिखते ?
अब चलना है हमें। साँझ होने को आयी है। सर्द हवा भी चलने लगी है युगल घाट में ,
धूप भी चली गयी ।क्यों ? मैं भी गौरांगी से पूछने लगा ।
क्यों कि निकुँज उपासना के विषय में कम ही लोग जानते हैं और इस उपासना को सिद्धांत के रूप में महावाणी में बड़ी सुन्दरता से समझाया गया है। मैंने पाठ किया है , गौरांगी कहने लगी। फिर उसने मुझ से ही पूछा ...आपने पढ़ी है ? मैंने ..हाँ कहा । क्योंकि मैंने इसका आद्योपांत प…