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Rani Lakshmibai Ki Jayanti: इस कविता के जरिए जानें रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी

Rani Laxmibai Ki Kavita: रानी लक्ष्मीबाई झांसी की रानी थीं। उनकी वीरता और साहस की गाथा आज भी भारतीय लोग गर्व के साथ सुनाते हैं।

Shreya
Written By Shreya
Published on: 19 Nov 2024 11:04 AM IST (Updated on: 19 Nov 2024 11:05 AM IST)
Rani Lakshmibai Ki Jayanti: इस कविता के जरिए जानें रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी
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Rani Lakshmibai (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Rani Lakshmibai Birth Anniversary: 'बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी', कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) की ये कविता बेहद अच्छी तरह से देश की महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बखान करती है। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बहादुर और निडर स्वभाव की थीं, जिन्होंने आगे चलकर अपने गढ़ और देश पर अंग्रेजों को कब्जा करने से रोकने के लिए डटकर अंग्रेजों से युद्ध किया और 18 जून 1858 को 30 साल की छोटी सी उम्र में पहली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना वीरगति को प्राप्त हो गईं।

रानी लक्ष्मीबाई झांसी की रानी थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस (अब वाराणसी) में एक मराठी कराड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था। उनके माता-पिता ने उनका नाम मणिकर्णिका रखा था। सभी उन्हें बचपन में प्यार से मनु कहकर बुलाते थे। उनकी शिक्षा घर पर ही हुई। उन्हें घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया गया। बचपन से ही मनु बेहद बहादुर थीं और अपनी उम्र के अन्य लोगों की तुलना में अधिक स्वतंत्र भी। वह निशानेबाजी, घुड़सवारी, तलवारबाजी में माहिर थीं। साथ ही शास्त्र का ज्ञान रखती थीं।

शादी के बाद बनीं लक्ष्मीबाई

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

14 साल की उम्र में 1842 में मनु की शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलकर (Gangadhar Rao) से कर दी गई। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा था। सितंबर 1851 में, उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। हालांकि उसकी जन्म के चार महीने बाद ही एक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। इसके बाद महाराजा ने अपने चचेरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद ले लिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। लेकिन अपने बेटे की मौत से आहत राजा गंगाधर राव बीमार रहने लगे और 21 नवंबर 1853 को उनका निधन हो गया। महाराजा की मृत्यु के बाद पूरे राज्य की बागडोर रानी लक्ष्मीबाई के हाथ में आ गई।

हालांकि राजा गंगाधर राव की मौत के बाद अंग्रेजों ने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला खाली करने का आदेश दे दिया। जैसे ही रानी को यह हुक्म सुनाया गया तो लक्ष्मीबाई ने भी चिल्लाते हुए कहा, "मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी"। रानी ने अंग्रजों के खिलाफ बगावत कर दी। रानी का फरमान सुनने के बाद अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया, लेकिन रानी ने अपनी झांसी को बचाने के लिए डटकर युद्ध किया। रानी ने कई बार अंग्रेजों को धूल चटाई।

लेकिन 18 जून 1858 को जब वह दतिया और ग्वालियर फतह करते-करते सिंधिया किले से मदद ना मिलने पर खाली हाथ लौटनी लगीं तभी अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने भी अपनी तलवार से गोरों की गर्दन कलम कर दिए। उसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने उनपर भाले से हमला कर दिया, जिससे वो बुरी तरह घायल हो गईं। हमले के बाद उन्हें साधु उन्हें उठाकर कुटिया में ले गए। हालांकि उनकी जान नहीं बचाई जा सकी और उन्होंने उसी कुटिया में अपने प्राण त्याग दिए।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

रानी लक्ष्मीबाई की कविता (Rani Lakshmibai Ki Kavita In Hindi)

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदयपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,

मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,

युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय ! घिरी अब रानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥



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Shreya

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