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Lifestyle Risk Factors: जानिये कि आपका आलस ले रहा आपकी जान

Lifestyle Risk Factors: दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों में से 74 प्रतिशत लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से होती हैं। भारत में 66 फ़ीसदी लोग लाइफस्टाइल वाली बीमारियों के शिकार होकर मर रहे हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 27 Dec 2022 11:57 AM IST
Lifestyle Risk Factors
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आलस बना जान का दुश्मन (फोटो- न्यूजट्रैक)

Lifestyle Risk Factors and Death Causes: ज़रूर, आप को इस बात पर भरोसा नहीं हो सकता है कि आप अपनी बीमारियों के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं। आप अपने रहन सहन और खान पान से खुद को बीमारियों के मुँह में धकेल रहे हैं। पर हक़ीक़त यही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत समेत दुनिया भर में अब लोग लाइफस्टाइल की बीमारियों यानी हार्ट अटैक, कैंसर और डायबिटीज से मारे जा रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह आलस है। जो लोग हफ्ते में 150 मिनट की साधारण एक्सरसाइज भी नहीं करते या हफ्ते में 75 मिनट तक जमकर कसरत नहीं करते, उन्हें आलसी माना जाता है।

दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों में से 74 प्रतिशत लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से होती हैं। भारत में 66 फ़ीसदी लोग लाइफस्टाइल वाली बीमारियों के शिकार होकर मर रहे हैं। 70 वर्ष से कम उम्र के 1 करोड़ 70 लाख लोग हर साल लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से मारे जा रहे हैं। यानी हर 2 सेकेंड में एक मौत खराब लाइफस्टाइल से हो रही है। इनमें 86 फ़ीसदी लोग मिडिल इनकम देशों के हैं।

लाइफ-स्टाइल से होने वाली बीमारियां

भारत में होने वाली कुल मौतों में से 66 फ़ीसदी की वजह लाइफ-स्टाइल से होने वाली बीमारियां हैं। यह आँकड़ा हर साल 60 लाख 46 हज़ार 960 लोगों के आसपास बैठता है। इनमें 54 फ़ीसदी लोगों की उम्र 70 वर्ष से कम होती है। 28 प्रतिशत दिल की बीमारी से, 12 प्रतिशत सांस की बीमारियों से, 10 प्रतिशत कैंसर से, 4 प्रतिशत लोग डायबिटीज़ से और बाकी 12 प्रतिशत दूसरी लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से मर रहे हैं।

इन बीमारियों को हम कैसे जन्म दे रहे हैं, इसे जानने समझने के लिए इन आँकड़ों को देखें जिसके मुताबिक़ पंद्रह साल से ऊपर का एक भारतीय हर साल 5.6 लीटर शराब गटक जाता है। औरत पुरूष नौ लीटर, महिलाएँ दो लीटर शराब पी जाती हैं। इसी आयु वर्ग के 28 प्रतिशत लोग तंबाकू के लती हैं। 18 साल से ऊपर के 34 फ़ीसदी लोग फिजीकल इनएक्टिविटी के शिकार हैं। खास बात 11 से 17 साल के 74 प्रतिशत बच्चे आलसी हैं।


हर वर्ष दुनिया के 8.3 लाख लोग इसलिए मर जाते हैं, क्योंकि वो आलसी हैं और कुछ नहीं करते हैं। भारत में 31 प्रतिशत लोगों को हाई ब्लड प्रेशर है। इसी तरह दिल की बीमारी के शिकार जो दो तिहाई गरीब देशों में रहते हैं। इनमें भी आधे लोगों को पता ही नहीं होता है कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर है। वह भी तब जब हर तीन में से एक मौत की वजह दिल की बीमारी बनती है। दुनिया में 30 से 79 वर्ष के 130 करोड़ लोग हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हैं।

कैंसर

हर 6 में से 1 मौत की वजह कैंसर है। दुनिया भर में 90 लाख से ज्यादा लोग कैंसर से मारे जा रहे हैं। केवल 44 प्रतिशत लोगों को ही बचाने में कामयाबी मिल पाती है। दुनिया भर में होने वाली 13 मौतों में से 1 सांस की बीमारियों से हो रही हैं। 40 लाख लोग केवल सांस की बीमारी होने की वजह से मर रहे हैं।

भारत जैसे कई देशों में इन बीमारियों से होने वाली मौतों के बढ़ने की बड़ी वजह वायु प्रदूषण है। अगर देश केवल पर्यावरण पर काम कर लें तो इनमें से 70 फ़ीसदी लोग बचाए जा सकते हैं। हर 28 में से एक व्यक्ति की जान डायबिटीज़ ले रही है। 80 लाख लोगों की जान तंबाकू ले रहा है। इनमें से 10 लाख लोग पैसिव स्मोकिंग से मारे जा रहे हैं। 80 लाख लोग हर साल खराब खाने, कम खाने या ज्यादा खाने की वजह से मारे जा रहे हैं।

पिछले दो वर्षों में भारत में फेफड़े के कैंसर के मामलों में पांच प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले वर्ष इस जानलेवा बीमारी की कुल घटनाओं में 34,000 से अधिक की वृद्धि हुई है। फेफड़े के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार में सामने आए हैं। दक्षिणी राज्यों में, तमिलनाडु में कैंसर के मामलों की संख्या सबसे अधिक थी, इसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल का स्थान था।

हर साल मामलों में हो रही बढ़ोत्तरी

सरकार ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के हवाले से संसद में बताया है कि फेफड़े के कैंसर के मामले 2020 में 98,278 से बढ़कर 2022 में 1,03,371 हो गए हैं। ये 5.2 प्रतिशत की वृद्धि है। पुरुषों और महिलाओं, दोनों में कुल कैंसर के मामलों की अधिकतम संख्या 2,10,958 - 2022 में उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई। इसी वर्ष, महाराष्ट्र में 1,21,717 मामले देखे गए, इसके बाद पश्चिम बंगाल (1,13,851) और बिहार (1, 09274) का स्थान है।

दक्षिण भारत में, तमिलनाडु 93,536 मामलों के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद कर्नाटक में 90,349, आंध्र प्रदेश में 73,536 और केरल में 59,143 मामले मिले हैं। इन चार दक्षिणी राज्यों में 2019 के बाद से कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी गई है। तमिलनाडु में 2019 में 86,596, 2020 में 88,866 और 2021 में 91,184 मामले दर्ज किए गए थे।

इसी तरह, कर्नाटक 2019 में 83,824 मामले दर्ज किए गए। 2020 में यह बढ़कर 85,968 हो गया, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 88,126 रहा। 2019 में, आंध्र प्रदेश में 68,883 कैंसर के मामले दर्ज किए गए, 2020 में यह बढ़कर 70,424 हो गया और 2021 में यह 71,970 तक पहुंच गया। 2019 में केरल ने 2019 में कुल 56148 मामले दर्ज किए, जो 2020 में 57,155 और 2021 में 58,139 हो गए।

सभी दक्षिणी राज्यों में, तेलंगाना में कैंसर के मामलों की तुलनात्मक रूप से कम संख्या दर्ज की गई। 2019 में, राज्य ने 46,464 मामले दर्ज किए। 2020 में यह 47,620 दर्ज किया गया और 2021 में मामलों ने 48,775 को छू लिया।


लक्षद्वीप को छोड़कर ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां संख्या में कमी आई हो, जहां लगातार दो वर्षों में 28 मामले दर्ज किए गए - 2021 और 22, 2020 से एक अधिक। सरकार ने कहा है कि कैंसर के जोखिम कारकों में तंबाकू उत्पाद, शराब, अपर्याप्त शारीरिक गतिविधियां, अस्वास्थ्यकर आहार और वायु प्रदूषण शामिल हैं।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार, नौ में से एक भारतीय को जीवन भर कैंसर होने की संभावना होती है। यह बीमारी 2020 से 2025 तक 12.8 प्रतिशत बढ़ सकती है।

इसमें यह भी कहा गया है कि 40 से 64 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा मामले सामने आए। 40 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में फेफड़े का कैंसर सबसे आम कैंसर था, जबकि स्तन कैंसर सभी आयु समूहों में महिलाओं में सबसे अधिक था। आईसीएमआर ने अपनी पत्रिका इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में कहा है कि भारत में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

फैक्ट फाइल

सरकार ने संसद में कहा है कि फेफड़े के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। 2020 में 98,278 मामले सामने आए। 2022 में 1,03,371 मामले सामने आए। 2022 में यूपी में पुरुषों और महिलाओं दोनों में 2,10,958 मामले पाए गए, जो अधिकतम कैंसर केस है। दिल की बीमारी, सांस की बीमारी, कैंसर और डायबिटीज की वजह से 2011 से 2030 यानी 20 वर्षों में दुनिया को 30 लाख करोड़ का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है।

WHO के मुताबिक अगर गरीब देश हर वर्ष इन बीमारियों को रोकने के लिए 1 हज़ार 800 करोड़ खर्च कर लें, तो कई करोड़ का आर्थिक नुकसान बचाया जा सकेगा।

(दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)



Vidushi Mishra

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