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कहीं आंखों की रोशनी तो नहीं चुरा रहा शातिर चोर 'ग्लूकोमा'
लखनऊ : एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए आंखों की रोशनी का होना बेहद जरूरी है। लेकिन आज के आधुनिक युग में आंखों की रोशनी को कोई चुरा रहा है। नेत्र विशेषज्ञ इस चोर को काला मोतियाबंद (सबलबाई या ग्लूकोमा) कहते हैं। यह एक ऐसी लाइलाज बीमारी है जो धीरे-धीरे व्यक्ति के देखने की क्षमता कम करती जाती है। आमतौर पर इसका पता लोगों को बाद में चलता है। आंखों की नसों को कमजोर करने का कार्य सबलबाई करता है। नसों में घर बनाकर सबलबाई रहता है और कुछ समय बाद हम पर गंभीर रूप से अटैक कर देता है।
स्वास्थ्य जगत में सबलबाई बीमारी का अभी तक कोई उपचार नहीं आया है। केवल नियमित तौर से आंखों की जांच करवाने से सबलबाई से बचा जा सकता है। इसलिए नेत्र विशेषज्ञ डॉ अमित उपाध्याय लोगों को समय-समय पर आंखों की जांच करने की सलाह दे रहे हैं। उनके मुताबिक, केवल सजग रहकर ही सबलबाई से लोग बच सकते हैं।
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सबसे पहले यह जानें कि क्या है सबलबाई
सबलबाई एक ऐसी बीमारी है जो आंखों की नसों को कमजोर कर देता है। आंखों की रोशनी बेहतर रहने के लिए नसों का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। जिस व्यक्ति को यह बीमारी हो जाती है उसका कोई इलाज नहीं हो सकता है। केवल सबलबाई द्वारा होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। सबलबाई के द्वारा छिनी गई रोशनी कभी वापस नहीं आती है। आंख पर दबाव पड़ने से नसों को नुकसान पहुंचता है। केवल समय रहते जांच द्वारा ही इस बीमारी से बचा जा सकता है।
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सबलबाई की पहचान
सबलबाई बीमारी का पता लगाने के लिए आंखों का एक साधारण जांच करवाना होता है। जिसमें टोनोमीटर नामक यंत्र द्वारा आंखों पर पड़ने वाले दबाव को नापा जाता है। जांच के लिए आंखों में दवा डालकर सुन्न किया जाता है। इसके बाद जांच की जाती है।
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कम्प्यूटर से जांच करवाना जरूरी
इंदिरा गांधी नेत्र चिकित्सालय व अनुसंधान केंद्र लखनऊ के पीआरओ शिवशंकर ने बताया कि सबलबाई की जांच बेहतर हो इसके लिए कम्प्यूटर का होना आवश्यक है। इसके अलावा उचित अस्पताल चुनना बहुत जरूरी है।
सबलबाई के लक्षण
-अंधेरे से उजाले में आने पर आंखों में अचानक सा दर्द उठना (जैसे सिनेमाहाल से बाहर निकलना)
-सुबह या रात में बल्ब के चारों तरफ इंद्रधनुष जैसे रंगों का दिखना
-पढ़ने में ऐनक का बार-बार बदलना
-आंखों में दर्द या लालपन आने पर
-रात में या कम रोशनी में धुंधला दिखना
-दृष्टि क्षेत्र का कम होना
किसको होती है यह बीमारी अधिक
-मोतियाबिन्द के बाद विश्वभर में सबलबाई का असर बढ़ता जा रहा है।
-40 साल की उम्र होने के बाद सबलबाई बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।
-मायोपिटा(निकट दृष्टि दोष), शुगर आदि बीमारी होने पर इसका खतरा बढ़ जाता है।
-परिवार में अगर किसी को यह बीमारी हो जाती है तो दूसरे शख्स को होने की संभावना हो जाती है।
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नियमित जांच ही इलाज
सबलबाई बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है। केवल आंखों की नियमित जांच करवाने से ही इस बीमारी से बचा जा सकता र्है।
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क्या कहते हैं नेत्र विशेषज्ञ
मेडिकल कॉलेज की नेत्र विशेषज्ञ डॉ अर्चना ने बताया कि आमतौर पर लोग आंखों की जांच नहीं करवाते हैं। इसलिए यह बीमारी हावी हो जाती है। लोगों को छह महीने में कम से कम एक बार आंखों की जांच करवाने की सलाह देती हैं।