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Solah Shringar: स्त्रियों के 16 श्रृंगार एवं उसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Solah Shringar Significance: विवाह के बाद स्त्री 16 श्रृंगार को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। हर स्त्री चाहती है कि वे सज धज कर सुन्दर लगे। यह उनके रूप को ओर भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है।

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Newstrack Network
Published on: 2 March 2023 6:45 PM IST (Updated on: 2 March 2023 6:56 PM IST)
Solah Shringar
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Solah Shringar (Pic: Social Media)

Solah Shringar, Bangles Dharmik and Scientific Significance: हिन्दू महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। हर स्त्री चाहती है कि वे सज धज कर सुन्दर लगे। यह उनके रूप को ओर भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है।

सोलह श्रृंगार के बार मे विस्तृत वर्णन

पहला श्रृंगार- बिंदी

संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

धार्मिक मान्यता

बिंदी को त्रिनेत्र का प्रतीक माना गया है। दो नेत्रों को सूर्य व चंद्रमा माना गया है, जो वर्तमान व भूतकाल देखते हैं तथा बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के रूप में भविष्य में आनेवाले संकेतों की ओर इशारा करती है।

वैज्ञानिक मान्यता

विज्ञान के अनुसार, बिंदी लगाने से महिला का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है। यह महिला को आध्यात्मिक बने रहने में तथा आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने में सहायक होता है। बिंदी आज्ञा चक्र को संतुलित कर दुल्हन को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होती है।

दूसरा श्रृंगार- सिंदूर

उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, सौभाग्यवती महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर भरती हैं। लाल सिंदूर महिला के सहस्रचक्र को सक्रिय रखता है। यह महिला के मस्तिष्क को एकाग्र कर उसे सही सूझबूझ देता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। सिंदूर महिला के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उसे ठंडक देता है और शांत रखता है।

तीसरा श्रृंगार-काजल

काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन और उसके परिवार को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र का कुप्रभाव नहीं पड़ता है। काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव होता है। काजल से भरी आंखें स्त्री के हृदय के प्यार व कोमलता को दर्शाती हैं।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, काजल आंखों को ठंडक देता है। आंखों में काजल लगाने से नुक़सानदायक सूर्य की किरणों व धूल-मिट्टी से आंखों का बचाव होता है।

चौथा श्रृंगार-मेहंदी

मेहंदी के बिना सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के वक्त दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने पैरों और हाथों में

मेहंदी रचाती है। ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है।

धार्मिक मान्यता

मानयताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है। मेहंदी का रंग जितना लाल और गहरा होता है, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही गहरा होता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मेहंदी दुल्हन को तनाव से दूर रहने में सहायता करती है। मेहंदी की ठंडक और ख़ुशबू दुल्हन को ख़ुश व ऊर्जावान बनाए रखती है।

पांचवां श्रृंगार-शादी का जोड़ा

उत्तर भारत में आम तौर से शादी के वक्त दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा (घाघरा, चोली और ओढ़नी) पहनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में फेरों के वक्त दुल्हन को पीले और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है। इसी तरह महाराष्ट्र में हरा रंग शुभ माना जाता है। वहां शादी के वक्त दुल्हन हरे रंग की साड़ी मराठी शैली में बांधती हैं।

धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लाल रंग शुभ, मंगल व सौभाग्य का प्रतीक है। इसीलिए शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर, कुमकुम, शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता

विज्ञान के अनुसार, लाल रंग शक्तिशाली व प्रभावशाली है, इसके उपयोग से एकाग्रता बनी रहती है। लाल रंग आपकी भावनाओं को नियंत्रित कर आपको स्थिरता देता है।

छठा श्रृंगार-गजरा

दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार फीका सा लगता है। दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां प्रतिदिन अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताज़गी देता है। शादी के समय दुल्हन के मन में कई तरह के विचार आते हैं, गजरा उन्हीं विचारों से उसे दूर रखता है और ताज़गी देता है।

वैज्ञानिक मान्यता

विज्ञान के अनुसार, चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। चमेली की ख़ुशबू तनाव को दूर करने में सबसे ज़्यादा सहायक होती है।

सातवां श्रृंगार:- मांग टीका

मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, मांगटीका महिला के यश व सौभाग्य का प्रतीक है। मांगटीका यह दर्शाता है कि महिला को अपने से जुड़े लोगों का हमेशा आदर करना है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मांगटीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।

आठवां श्रृंगार-नथ

विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि सुहागिन स्त्री के नथ पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है। उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है। नथ आकार में काफी बड़ी होती है। इसे हमेशा पहने रहना असुविधाजनक होता है। इसलिए सुहागन स्त्रियां इसे शादी-व्याह और तीज-त्यौहार जैसे खास अवसरों पर ही पहनती हैं। लेकिन सुहागिन स्त्रियों के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। इसलिए आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जो देखने में लौंग की आकार की होती है। इसलिए इसे लौंग भी कहा जाता है।

धार्मिक मान्यता

हिंदू धर्म में जिस महिला का पति मृत्युथ को प्राप्त हो जाता है, उसकी नथ को उतार दिया जाता है। इसके अलावा हिंदू धर्म के अनुसार नथ को माता पार्वती को सम्मान देने के लिये भी पहना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता

जिस प्रकार शरीर के अलग-अलग हिस्सों को दबाने से एक्यूप्रेशर का लाभ मिलता है, ठीक उसी प्रकार नाक छिदवाने से एक्यूपंक्चर का लाभ मिलता है। इसके प्रभाव से श्वास संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। कफ, सर्दी-जुकाम आदि रोगों में भी इससे लाभ मिलते हैं। आयुर्वेद के अनुसार नाक के एक प्रमुख हिस्से पर छेद करने से स्त्रियों को मासिक धर्म से जुड़ी कई परेशानियों में राहत मिल सकती है। आमतौर पर लड़कियां सोने या चांदी से बनी नथ पहनती हैं। ये धातुएं लगातार हमारे शरीर के संपर्क में रहती हैं तो इनके गुण हमें प्राप्त होते हैं। आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म और रजत भस्म बहुत सी बीमारियों में दवा का काम करती है।

नौवां श्रृंगार- कर्णफूल

कान में पहने जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में होता है। जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है। विवाह के बाद स्त्रियों का कानों में कणर्फूल (ईयरिंग्स) पहनना जरूरी समझा जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, कर्णफूल यानी ईयररिंग्स महिला के स्वास्थ्य से सीधा संबंध रखते हैं। ये महिला के चेहरे की ख़ूबसूरती को निखारते हैं। इसके बिना महिला का शृंगार अधूरा रहता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्णपाली (ईयरलोब) पर बहुत से एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर सही दबाव दिया जाए, तो माहवारी के दिनों में होनेवाले दर्द से राहत मिलती है। ईयररिंग्स उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं। साथ ही ये किडनी और मूत्राशय (ब्लैडर) को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।

दसवां श्रृंगार-हार या मंगल सूत्र

गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है। हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसी हार को सौंदर्य का रूप दे दिया गया है और श्रृंगार का अभिन्न अंग बना दिया है। दक्षिण और पश्चिम भारत के कुछ प्रांतों में वर द्वारा वधू के गले में मंगल सूत्र पहनाने की रस्म की अहमियत है।

धार्मिक मान्यता

ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है। मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फ़ायदेमंद होगा। मंगलसूत्र के काले मोती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करते हैं।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है और सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है, इसलिए मंगलसूत्र शारीरिक ऊर्जा को क्षय होने से रोकता है।

ग्यारहवां श्रृंगार- बाजूबंद

कड़े के सामान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बाहों में पूरी तरह कसा जाता है। इसलिए इसे बाजूबंद कहा जाता है। पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद महिलाओं के शरीर में ताक़त बनाए रखने व पूरे शरीर में उसका संचार करने में सहायक होता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद बाजू पर सही मात्रा में दबाव डालकर रक्तसंचार बढ़ाने में सहायता करता है।

बारहवां श्रृंगार- कंगन और चूड़ियां

सोने का कंगन अठारहवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से ही सुहाग का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बड़ी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुख और सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती थी, जो पहली बार ससुराल आने पर उसे उसकी सास ने उसे दिये थे। इस तरह खानदान की पुरानी धरोहर को सास द्वारा बहू को सौंपने की परंपरा का निर्वाह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। पंजाब में स्त्रियां कंगननुमा डिजाइन का एक विशेष पारंपरिक आभूषण पहनती है, जिसे लहसुन की पहुंची कहा जाता है।

सोने से बनी इस पहुंची में लहसुन की कलियां और जौ के दानों जैसे आकृतियां बनी होती है। हिंदू धर्म में मगरमच्छ, हांथी, सांप, मोर जैसी जीवों का विशेष स्थान दिया गया है। उत्तर भारत में ज्यादातर स्त्रियां ऐसे पशुओं के मुखाकृति वाले खुले मुंह के कड़े पहनती हैं, जिनके दोनों सिरे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। पारंपरिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। यहां तक की सुहागन स्त्रियाँ चूड़ियां बदलते समय भी अपनी कलाई में साड़ी का पल्लू लपेट लेती हैं ताकि उनकी कलाई एक पल को भी सूनी न रहे।

ये चूड़ियां आमतौर पर कांच, लाख और हांथी दांत से बनी होती है। इन चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है। नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है। होली के अवसर पर पीली या बंसती रंग की चूड़ियां पहनी जाती है, तो सावन में तीज के मौके पर हरी और धानी चूड़ियां पहनने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। विभिन्न राज्यों में विवाह के मौके पर अलग-अलग रंगों की चूड़ियां पहनने की प्रथा है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियां पति-पत्नी के भाग्य और संपन्नता की प्रतीक हैं। यह भी मान्यता है कि महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है। चूड़ियों का सीधा संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियों से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि महिलाओं की हड्डियों को मज़बूत करने में सहायक होती है। महिलाओं के रक्त के परिसंचरण में भी चूड़ियां सहायक होती हैं।

तेरहवां श्रृंगार-अंगूठी

शादी के पहले मंगनी या सगाई के रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। यह सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, अंगूठी पति-पत्नी के प्रेम की प्रतीक होती है, इसे पहनने से पति-पत्नी के हृदय में एक-दूसरे के लिए सदैव प्रेम बना रहता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली की नसें सीधे हृदय व दिमाग़ से जुड़ी होती हैं, इन पर प्रेशर पड़ने से दिल व दिमाग़ स्वस्थ रहता है।

चौदहवां श्रृंगार-कमरबंद

कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती हैं, इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई पड़ती है। सोने या चांदी से बने इस आभूषण के साथ बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, महिला के लिए कमरबंद बहुत आवश्यक है। चांदी का कमरबंद महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं को माहवारी तथा गर्भावस्था में होनेवाले सभी तरह के दर्द से राहत मिलती है। चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं में मोटापा भी नहीं बढ़ता।

पंद्रहवाँ श्रृंगार-बिछुवा

पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कह जाता है। पारंपरिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण में छोटा सा शीशा लगा होता है, पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों में नववधू सबके सामने पति को सामने से देखने में भी सरमाती थी। इसलिए वह नजरें झुकाकर चुपचाप आसपास खड़े पति की सूरत को इसी शीशे में निहारा करती थी। पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का विछुआ पहना जाता है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पेर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।

धार्मिक मान्यता

महिलाओं के लिए पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनना शुभ व आवश्यक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि बिछिया पहनने से महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में संपन्नता बनी रहती है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी होती हैं, बिछिया पहनने से उन्हें गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है। बिछिया पहनने से महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।

सोलहवां श्रृंगार-पायल

पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है। पुराने जमाने में पायल की झंकार से घर के बुजुर्ग पुरुष सदस्यों को मालूम हो जाता था कि बहू आ रही है और वे उसके रास्ते से हट जाते थे। पायल के संबंध में एक और रोचक बात यह है कि पहले छोटी उम्र में ही लड़िकियों की शादी होती थी। और कई बार जब नववधू को माता-पिता की याद आती थी तो वह चुपके से अपने मायके भाग जाती थी। इसलिए नववधू के पैरों में ढेर सारी घुंघरुओं वाली पाजेब पहनाई जाती थी ताकि जब वह घर से भागने लगे तो उसकी आहट से मालूम हो जाए कि वह कहां जा रही है।

पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता हैं।

धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है। घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है।

वैज्ञानिक मान्यता

वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी की पायल महिला को जोड़ों व हड्डियों के दर्द से राहत देती है। साथ ही पायल के घुंघरू से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।

(साभार- राधे राधे जी वेबसाइट)



Durgesh Sharma

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