TRENDING TAGS :
Poetry: बहुत बेचैन गुजरे हैं मेरे दिन व रातें
Poetry: कहने को तो एक मुक़ाम हांसिल कर लिया मैंने पर अक्सर रातें मेरी सिर्फ़ तेरे लिए रोकर ही गुजरी
Poetry ( Social Media Photo)
Poetry: समंदर क़ैद था सीने में फिर हुआ ऐसा,
नमक में मैं अपने ज़ख़्म सारे धोकर गुजरी।
बहुत बेचैन गुजरे हैं मेरे दिन और मेरी रातें,
कहानी किस गली की थी कहां से होकर गुजरी।
गुजरना था हमें जिन रास्तों के साथ,
ये दुनिया वहाँ पर अब काँटें बो कर गुजरी।
कभी हो हमारा आमना सामना तो तुम खामोशी से चल देना,
समझना हम वो इश्क नहीं जो मैं खोकर गुजरी।
कहने को तो एक मुक़ाम हांसिल कर लिया मैंने,
पर अक्सर रातें मेरी सिर्फ़ तेरे लिए रोकर ही गुजरी।
(साभार: स्निग्धा सिंह)
(Snigdha Singh)
Next Story