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Story Of Courage and Wisdom: दृढ़ निश्चयी ब्राह्मण भक्त

Story Of Courage and Wisdom:एक दिन यजमान के यहां पूजा करा कर घर लौटते समय उन्होंने रास्ते में देखा कि एक मालिन साग वाली एक ओर बैठी साग बेच रही है। भीड़ लगी है

Kanchan Singh
Published on: 30 March 2024 3:43 PM IST
Story Of Courage and Wisdom
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Story Of Courage and Wisdom

Story Of Courage and Wisdom: कृष्णा नगर के पास एक गांव में एक ब्राह्मण रहते थे। वे पुरोहिती का काम करते थे । एक दिन यजमान के यहां पूजा करा कर घर लौटते समय उन्होंने रास्ते में देखा कि एक मालिन ( साग वाली ) एक ओर बैठी साग बेच रही है। भीड़ लगी है । कोई साग तुलवा रहा है तो कोई मोल कर रहा है ।

पंडित जी रोज उसी रास्ते जाते और साग बाली को भी वहां देखते । एक दिन किसी जान पहचान के आदमी को साग खरीदते देखकर वे भी वहीं खड़े हो गए । उन्होंने देखा-साग वाली के पास एक पत्थर का बाट है । उसी से वह पाच सेर वाले को पांच सेर और एक सेर वाले को एक सेर साग तौल रही है । एक ही बाट सब तौलो में समान काम देता है ।

पंडित जी को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने साग बाली से पूछा-तुम इस एक ही पत्थर के बाट से कैसे सब को तौल देती हो ? क्या सब का वजन ठीक उतरता है ? पंडित जी के परिचित व्यक्ति ने कहा-हां ,पंडित जी ! यह बड़े अचरज की बात है ।

हम लोगों ने कई बार इससे लिए हुए साग को दूसरी जगह तौल कर आजमाया , पूरा बजन उतरा। पंडित जी ने कुछ रुक कर साग बाली से कहा - बेटी यह पत्थर मुझे दोगी ? साग वाली बोली-नहीं बाबा जी तुम्हें नहीं दूंगी। मैंने बड़ी कठिनता से इसको पाया है ।

मेरे सेर- बट खरे खो जाते तो घर जाने पर मां और बड़े भाई मुझे मारते । तीन वर्ष पहले की बात है , मेरे बटखरे खो गए । मैं घर गई तो बड़े भाई ने मुझे मारा । मैं रोती रोती घाट पर आकर बैठ गई और मन ही मन भगवान को पुकारने लगी।

इतने में ही मेरे पैर के पास यह पत्थर लगा । मैंने इसको उठाकर ठाकुर जी से कहा-महाराज मैं तौलना नहीं जानती। आप ऐसी कृपा करें जिससे इसी से सारे तौल हो जाए । बस , तब से मैं इसे रखती हूं । अब मुझे अलग-अलग बट खरे की जरूरत नहीं होती । इसी से सब काम निकल जाता है। बताओ तुम्हें कैसे दे दूं ।

पंडित जी बोले-मैं तुम्हें बहुत से रुपए दूंगा । साग बाली ने कहा -कितने रुपए दोगे तुम ? मुझे वृंदावन का खर्च दे दोगे ? सब लोग वृंदावन गए हैं । मैं ही नहीं जा सकी हूं ।

ब्राह्मण ने पूछा -कितने रुपए में तुम्हारा काम होगा ? साग बाली ने कहा पूरे तीन सौ रुपए चाहिए । ब्राह्मण बोले-अच्छा बेटी ! यह तो बताओ ,तुम इस शिला को रखती कहां हो ? साग बाली ने कहा - इसी टोकरी में रखती हूं ; बाबाजी और कहां रखूंगी ?

ब्राह्मण घर लौट आए और चुपचाप बैठे रहे । ब्राह्मणी ने पति से पूछा - क्यों उदास से क्यों बैठे हो ? देर जो हो गई है। ब्राह्मण ने कहा -आज मेरा मन खराब हो रहा है , मुझे तीन सौ रुपए की जरूरत है । स्त्री ने कहा - इसमें कौन सी बात है । आपने ही तो मेरे गहने बनवाए थे । विशेष जरूरत हो तो लीजिए । इन्हे ले जाइए ; होना होगा तो फिर हो जाएगा । इतना कहकर ब्राह्मणी में गहने उतार दिए।

ब्राह्मण ने गहने बेचकर रुपए इकट्ठे किए और दूसरे दिन सवेरे साग वाली के पास जाकर उसे रुपए गिन दिए और बदले में उस शिला को ले लिया । गंगा जी पर जाकर उसको अच्छी तरह धोया और फिर नहा - धोकर वे घर लौट आए । इधर पीछे से एक छोटा सा सुकुमार बालक आकर ब्राह्मणी से कह गया-पंडिताईन जी ! तुम्हारे घर ठाकुर जी आ रहे हैं , घर को अच्छी तरह झाड बुहार कर ठीक करो । सरल हृदया ब्राह्मणी ने घर साफ करके उसमें पूजा की सामग्री सजा दी । ब्राह्मण ने आकर देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ । ब्राह्मणी से पूछने पर उसने छोटे बालक के आकर कह जाने की बात सुनाई । यह सुनकर पंडित जी को और भी आश्चर्य हुआ। पंडित जी ने शिला को सिंहासन पर पधार कर उसकी पूजा की । फिर उसे ऊपर आले में पधरा दिया ।

रात को सपने में भगवान ने कहा-तू मुझे जल्दी लौटा आ; नहीं तो तेरा भला नहीं होगा , सर्वनाश हो जाएगा। ब्राह्मण ने कहा -जो कुछ भी हो , मैं तुमको लौटाऊंगा नहीं । ब्राह्मण घर में जो कुछ भी पत्र- पुष्प मिलता उसी से पूजा करने लगे । दो-चार दिनों बाद स्वप्न में फिर कहा -मुझे फेंक आ ; नहीं तो तेरा लड़का मर जाएगा ।

ब्राह्मण ने कहा -मर जाने दो , तुम्हें नहीं फेकूगा । महीना पूरा बीतने भी नहीं पाया कि ब्राह्मण का एकमात्र पुत्र मर गया । कुछ दिनों बाद फिर स्वप्न हुआ-अब भी मुझे वापस दे आ, नहीं तो तेरी लड़की मर जाएगी । दृढ निश्चयी ब्राह्मण ने पहले वाला ही जवाब दिया ।

कुछ दिनों पश्चात लड़की मर गई । फिर कहां कि - अबकी बार स्त्री मर जाएगी । ब्राह्मण ने इसका भी वही उत्तर दिया। अब स्त्री भी मर गई । इतने पर भी ब्राह्मण अचल -अटल रहा।

लोगों ने समझा , यह पागल हो गया है । कुछ दिन बीतने पर स्वप्न में फिर कहा गया-देख ; अभी मान जा ; मुझे लौटा दे । नहीं तो सात दिनो में तेरे सिर पर बिजली गिरेगी। ब्राह्मण बोले - गिरने दो , मैं तुम्हें उस साग वाली की गंदी टोकरी में नहीं रखने का।

भगवान नारायण ने मुस्कुराते हुए ब्राह्मण से कहा-हमने तुमको कितने दुख दिए , परंतु तुम अटल रहे। दुख पाने पर भी तुमने हमें छोड़ा नहीं । पकड़े ही रहे । इसी से तुम्हें हम सशरीर यहां ले आए हैं ।जो भक्त स्त्री , पुत्र , घर, गुरुजन , प्राण , धन , इहलोक और परलोक -सब को छोड़कर हमारी शरण में आ गए हैं , भला उन्हें हम कैसे छोड़ सकते हैं । इधर देखो - यह खड़ी है तुम्हारी सहधर्मिणी, तुम्हारी कन्या और तुम्हारा पुत्र । ये भी मुझे प्रणाम कर रहे हैं । तुम सब को मेरी प्राप्ति हो गई । तुम्हारी एककी दृढता से सारा परिवार मुक्त हो गया ।



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Shalini Rai

Shalini Rai

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