International Women Day: स्वतंत्र है, लेकिन मंजिल अभी भी दूर है उसके लिए, पर नामुकिन नहीं है

International Women Day: आज की भारतीय महिलाएँ विभिन्न तरीकों से अपनी भूमिकाएँ और व्यक्तित्व को पुनः परिभाषित कर रही हैं। वह गैर-पारंपरिक करियर जैसे उद्यमिता, खेल और सेना जैसे क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं रूढ़ियों को तोड़ उन सीमाओं को लांघ रही हैं

Rekha Pankaj
Published on: 7 March 2025 8:44 PM IST (Updated on: 8 March 2025 5:49 PM IST)
International women day News
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International women day News (Image From Social Media)

International Women Day: आज की भारतीय महिलाएँ विभिन्न तरीकों से अपनी भूमिकाएँ और व्यक्तित्व को पुनः परिभाषित कर रही हैं। वह गैर-पारंपरिक करियर जैसे उद्यमिता, खेल और सेना जैसे क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं रूढ़ियों को तोड़ उन सीमाओं को लांघ रही हैं जहां मात्र अब तक पुरूषों का वर्चस्व रहा। अपनी स्वतंत्रता को सर्वोपरि रख वह सामाजिक अपेक्षाओं के अनुरूप होने के बजाय शिक्षा, विवाह, करियर और जीवनशैली के बारे में अपने स्वयं के विकल्प चुन रही हैं।

शिक्षा, रोज़गार, नेतृत्व में रणनीतियों को पहचानने पर केंद्रित थीम

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम, शिक्षा, रोज़गार और नेतृत्व में महिलाओं की प्रगति को आगे बढ़ाने वाली रणनीतियों और उपकरणों को पहचानने पर केंद्रित है। और इस मामले में भारतीय महिलाएं स्वंय को अब स्पष्ट रूप में देख रही हैं ये काबिले तारीफ है। वास्तव में, भारत की महिलाएँ एक महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुज़र रही हैं, पारंपरिक अपेक्षाओं से मुक्त होकर नए रास्ते बना रही हैं। यह परिवर्तन मुझे विभिन्न कारकों से नजर आ रहा है जैसे शिक्षा और आर्थिक सशक्तीकरण के रूप में।


शिक्षा और नौकरी के अवसरों तक पहुँच में वृद्धि ने महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने, पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने और आत्म-सम्मान की भावना को विकसित करने में सक्षम बनाया है। इसका मतलब यह निकलता है कि स्त्री अब अपनी योग्यता का समझ रही है और महत्वाकांक्षा को मारने के बजाय उसको ‘अचीव’ करना सीख रही है।

दूसरे सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के नजरिए में- सोशल मीडिया, शहरीकरण और वैश्विक दृष्टिकोणों के संपर्क में आने से समाज में अधिक उदार और खुले विचारों का निर्माण हुआ है, जिससे महिलाओं को खुद को अभिव्यक्त करने और अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहन मिला है।

तीसरे महिला आंदोलन और सक्रियता में उसकी बढ़ती भागीदारी भी उसे एक नई स्त्री के रूप में रख रही। हालांकि इस रूप में कई महिलाएं ऐतिहासिक उदाहरणों के रूप में हमारे ऑखों में कौंध जाती है लेकिन उनकी संख्या सीमित है। आज नारीवादी आंदोलनों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और वकालत समूहों के विकास के तले अधिकतर महिलाएं अपनी आवाज़ उठाने, अन्याय को चुनौती देने और समान अधिकारों की मांग करने के लिए एक नया मंच खड़ी कर रही है।

चौथे सरकारी पहल और नीतियॉं जैसे ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना’, ‘महिला आरक्षण विधेयक’ और अन्य पहलों ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद की और कन्या भ्रूण हत्या और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों का को बहुत हद तक उसके घृणित रूप से उबारने में सहयोग किया है।


एक तरह से हम कह सकते है कि आज की भारतीय महिलाएँ विभिन्न तरीकों से अपनी भूमिकाएँ और व्यक्तित्व को पुनः परिभाषित कर रही हैं। वह गैर-पारंपरिक करियर जैसे उद्यमिता, खेल और सेना जैसे क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं रूढ़ियों को तोड़ उन सीमाओं को लांघ रही हैं जहां मात्र अब तक पुरूषों का वर्चस्व रहा। अपनी स्वतंत्रता को सर्वोपरि रख वह सामाजिक अपेक्षाओं के अनुरूप होने के बजाय शिक्षा, विवाह, करियर और जीवनशैली के बारे में अपने स्वयं के विकल्प चुन रही हैं।

यही नहीं आज की स्त्री खुद को रचनात्मक रूप से अभिव्यक्त करना सीख गई है। वह कला, साहित्य, संगीत और अन्य रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से अपनी आवाज़ ढूँढ रही हैं, पारंपरिक मानदंडों को चुनौती दे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं। इन सबसे बड़ी बात वह परिवर्तन-निर्माता बन कर उभर रही।

महिलाएँ संवैधानिक नेतृत्व की भूमिकाएँ निभा रही हैं जिसकी मदद से वह सामाजिक परिवर्तन ला रही हैं और महिलाओं के अधिकारों की वकालत कर रही हैं और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। वह चाहे भारत देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हो या प्रदेश की गर्वनर आनंदीबेन हो या फिर हाल में दिल्ली की नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता।

अपने व्यक्तित्व को पुनः परिभाषित कर रही आज की भारतीय स्त्री सीमाओं को लांघ रही हैं और एक अधिक समावेशी, समतावादी समाज का निर्माण कर रही हैं। 2019 में चंद्रयान-2 का पूर्ण नेतृत्व भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की दो महिला वैज्ञानिकों द्वारा किया जाना अपने आप में एक मिसाल है। वह स्थिति और भी क्रांतिकारी बन पड़ी जब सर्वाेच्च न्यायालय ने 2020 में सेना कमांडर के रूप में सेवा करने वाली महिलाओं पर सरकार की स्थिति को उलट दिया था।

पहली बार 1992 में सशस्त्र बलों में महिलाओं को शामिल किया जाना। उनका लड़ाकू पायलट, लोको पायलट, परिवहन चालक, डॉक्टर, इंजीनियर, सिग्नलर्स, फैक्टरी संचालक आदि सहित कई पुरूष वर्चस्व वाले पदों पर काम करना लंबे समय से चली आ रही परंपरा को चुनौती थी। ये ऐसे उदाहरण हैं जहाँ भारतीय महिलाओं ने खुद को साबित किया है।


भारत में महिला सशक्तीकरण और समानता के दृष्टिकोण से यहां उतार-चढ़ाव दोनों नजर आते हैं। यहां लैंगिक असमानता को समाप्त करने के उद्देश्य से घरेलू नीतियाँ बनाकर, विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं का समर्थन कर और कई परियोजनाओं पर राज्य सरकारों, स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और निजी निगमों द्वारा काम करने के प्रयासों के बावजूद वह फर्क नहीं नजर आ रहा, जो होना चाहिए। लैंगिक समानता के वैश्विक सर्वेक्षणों में भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में सुधार दिखता है पर उसकी रफ्तार बेहद धीमी ही नजर आ रही जबकि भारत में महिलाएँ राजनीति, व्यवसाय, चिकित्सा, खेल और कृषि सहित सभी क्षेत्रों में उभर कर सामने आ रही हैं।

इस वस्तुस्थिति से इतर भी आंकड़ों के नजरिए से विश्व भर में भारतीय महिला की स्थिति को देखना जरूरी है। विश्व आर्थिक मंच की 18वीं वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत 146 देशों में से 129वें स्थान पर है, जिसने अपने समग्र लैंगिक अंतर का 64.1ः कम कर लिया है।

आइसलैंड 2024 के सूचकांक में शीर्ष पर है, उसके बाद फिनलैंड और नॉर्वे क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। यह 2023 में अपने 127वें स्थान से गिरावट दर्शाता है। दक्षिण एशिया में, भारत बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान के बाद पांचवें स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान इस क्षेत्र में सबसे निचले स्थान पर है। इस रिर्पोट को देखने के बाद आप बिला शक़ कह सकते है कि भारत अपने एशियाई पड़ोसी देशों के मुकाबले एक बेहतर स्थिति की ओर बढ़ रहा है।

वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक चार प्रमुख आयामों में देशों का आकलन करता है जिसमें आर्थिक भागीदारी, शैक्षिक उपलब्धि, स्वास्थ्य रक्षा और राजनीतिक भागीदारी। जिसमें आर्थिक भागीदारी में भारत 142वें स्थान पर है, जो श्रम बल भागीदारी, वेतन समानता और वरिष्ठ पदों पर प्रतिनिधित्व में महत्वपूर्ण असमानताओं को दर्शाता है।

शैक्षिक उपलब्धि में 112वें स्थान पर स्थित, भारत ने प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा में महिलाओं के लिए उच्च नामांकन दर हासिल की है। हालाँकि, पुरुषों और महिलाओं के बीच 17.2 प्रतिशत अंकों का साक्षरता अंतर बना हुआ है। वैश्विक लैंगिक अंतर पर विश्व आर्थिक मंच की नवीनतम रिपोर्ट लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को उजागर करती है, जबकि निरंतर चुनौतियों को भी रेखांकित करती है जो पूर्ण समानता में अभी बाधा डाल रही हैं।

स्वास्थ्य और जीवन रक्षा में भी भारत 142वें स्थान पर है, जो महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और परिणामों में चल रही चुनौतियों को और सरकार विफलताओं को दर्शाता है। राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत की 65वें स्थान तक पहंुच को हम सुधार के रूप देख सकते है। फिर भी अभी मंत्रिस्तरीय पदों (6.9ः) और संसद (17.2ः) में महिलाओं का प्रतिनिधित्व की कमी इस मुद्दे पर गंभीर चितन की मांग करती है।

हालांकि वैश्विक स्तर पर, औसत लैंगिक अंतर 68.5ः है, जिसमें आइसलैंड 93.5ः लैंगिक अंतर को पाटकर सबसे आगे है। वर्तमान गति को देखा जाये तो दुनिया भर में पूर्ण लैंगिक समानता प्राप्त करने में अभी और 134 वर्ष लगने का अनुमान है। फिर भी भारत की रैंकिंग के संदर्भ में कह सकते है कि विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता को यह रेखांकित करती है।

सच तो यह है कि महिला सशक्तिकरण पर भारत की कहानी सरकार और नागरिक समाजिक संगठनों द्वारा अपनाई गई जमीनी पहलों पर ध्यान दिए बिना पूरी नहीं होती। संघीय और राज्य सरकारों ने शहरी और ग्रामीण दोनों तरह की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नई योजनाएं, नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अधिकाशंत जमीनी तौर पर आती बाधाएं सौ प्रतिशत परिणाम देने में अक्षम सिद्ध होती है और इसमें एक सबसे बड़ी वजह नीचे तक सही मंशा की कमी का होना है।

उपरोक्त आकड़ों और दिख रही बाधाओं के बावजूद इस दिशा में भारतीय महिलाओं में दिख रहे परिवर्तन को नकारा नहीं जा सकता। इस परिवर्तन को मैं उन दादी- नानी, परदादी-परनानी के नाम करना चाहूंगी जिन्होंने अपनी घुटती सांसों के बीच इस तरह के परिवर्तन की सपने देखे होगें।

लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं

Ramkrishna Vajpei

Ramkrishna Vajpei

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