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Motivational Story: तुच्छ विचार मानसिक बीमारी है
Motivational Story: अधिकतर स्थितियों में ये लक्षण दुःख तथा व्यक्तिगत कार्यों में व्यवधान से जुड़े होते हैं
Motivational Story: मानसिक या व्यवहारगत गड़बड़ी की स्थिति में व्यक्ति के सोचने की प्रक्रिया, मूड या व्यवहार बाधित हो जाता है,जो सांस्कृतिक विश्वास तथा रूढ़ियों के अनुरूप नहीं होता। अधिकतर स्थितियों में ये लक्षण दुःख तथा व्यक्तिगत कार्यों में व्यवधान से जुड़े होते हैं।किसी ने सत्य कहा है कि जो मनुष्य अपने विषय में तुच्छ विचार रखता है, वह एक भंयकर मानसिक रोग से पीड़ित हैं। उसके अन्तःकरण में जैसा घृणीत चित्र खिंच गया है, वैसी ही प्रतिक्रिया होती है। साथ ही विवाद करता है विवाद करना मूर्खतापूर्ण है। इसमे सत्य को नही जाना जा सकता विवाद हमेशा जीतने की इच्छा रहती है,समझने की नही ।विवाद से सत्य की हत्या की जा सकती है ।विवाद में बोलने से,तर्क अधिक होता है,सुनना नही होता।समझना नही होता ।विवाद मे काटने की तैयारी होती है,दूसरे को गलत सिद्ध करने की तैयारी होती है। इसलिए दो पण्डित कभी मिल नही सकते।ज्ञानी कभी विवाद नही करता।
वह सत्य को जान गया है,फिर विवाद किस बात का और क्यों करेगा ?अतः मानसिक शुद्धि के लिए यह कायरता निकाल देनी चाहिए। ईश्वर का दिव्य विचार हमारे सम्पूर्ण मलों का विनाश कर सकेगा। निरोग मन बनाने के लिए अपने ईश्वर-तत्व को प्रकाशित करना पडेगा।हमारे मन का प्रत्येक अणु ईश्वर-तत्व से ओत-प्रोत हो।मन के इष्ट देव को शारीरिक क्रियाओं में परिवर्तित करे। यदि स्वयं के विचारों से मन की परिपुष्टी नहीं होती हो, तो अपने से अधिक जानकार के सामने अध्यात्म पर चर्चा चलाइये और उनके विचारों के प्रकाश में अपने मनोबल की वृद्धि कीजिये। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर आप सभी विद्वजनो के ग्यान रूपी प्रकाश में अज्ञान रूपी अंधकार के बादल छटते रहेंगे ।सभी विद्वजन अपने ग्यान रूपी कृपा-प्रसाद को वितरित करते रहेंगे ऐसी मुझे आशा है ।
मन को एकाग्र किये बिना किसी भी प्रकार का अभ्यास उत्तम रीति से सम्पन्न नहीं हो सकता। अध्ययन के,मनन के या साधना के समय यदि मन को द्रढता से एकाग्र नहीं किया जाए तो उसका फल प्राप्त नहीं होता है। हमारा मन अनेक छोटे-छोटे कोषों का बना हुआ है। समर्थ विचारक और तत्वग्य पुरूषों के मस्तिष्क में ये कोष बहुत संख्या में होते हैं। रक्त की गति मन के किसी भी भाग में बढाने से तथा शरीर के विद्युन्मय सामर्थ्य का उस प्रदेश में संचार करने से उस भाग के कोषों की वृद्धि एवं सुधार किया जा सकता है।
मन को शरीर के किसी भी भाग पर एकाग्रता पूर्वक लगाने से उस भाग में रुधिर की गति बढ जाती है और वह भाग पुष्ट हो जाता है द्रढता से इस क्रिया का अभ्यास करने पर अल्प समय में ही अपनी वृत्ति को मन के विभिन्न भागों में एकाग्र कर सकेंगे। विचारों को उत्पन्न करने वाली कल्पना-शक्ति मन की सर्जन-शक्ति है। यदि हमें उच्च विचारों का सर्जन करना है, तो कल्पना को निर्मल ,हितकारक तथा निरामय बना लेना चाहिए। कल्पना शक्ति को पूर्ण निरामय रखने के लिए हमें क्रोध,भय, तिरस्कार,अधैर्य, निरूत्साह, दुर्बलता,शंका तथा इसी प्रकार के और भी दुर्बल मनः स्थितियों का परित्याग कर देना चाहिए।