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बहरेपन से बचाने को बच्चों में टीकाकरण जरूरी, जानें क्यों

दुनिया की लगभग 5 प्रतिशत आबादी को ठीक से सुनाई नहीं देता। इनमें 3.2 करोड़ बच्चे हैं। भारतीय आबादी का लगभग 6.3 प्रतिशत में यह समस्या मौजूद है और इस संख्या में लगभग 50 लाख बच्चे शामिल हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, इ

tiwarishalini
Published on: 2 Sept 2017 5:59 PM IST
बहरेपन से बचाने को बच्चों में टीकाकरण जरूरी, जानें क्यों
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नई दिल्ली: दुनिया की लगभग 5 प्रतिशत आबादी को ठीक से सुनाई नहीं देता। इनमें 3.2 करोड़ बच्चे हैं। भारतीय आबादी का लगभग 6.3 प्रतिशत में यह समस्या मौजूद है और इस संख्या में लगभग 50 लाख बच्चे शामिल हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, इनमें से अधिकांश मामलों को समय पर उचित टीकाकरण कराके, ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करके और कुछ दवाओं के इस्तेमाल से रोका जा सकता है।

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बहरापन मुख्यत: दो प्रकार का होता है। जन्म के दौरान ध्वनि प्रदूषण और अन्य समस्याओं के कारण नस संबंधी बहरापन हो जाता है। व्यवहारगत बहरापन सामाजिक व आर्थिक कारणों से होता है, जैसे कि स्वच्छता और उपचार की कमी। इससे काम में संक्रमण बढ़ता जाता है और बहरापन भी हो सकता है।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "यह चिंता की बात है कि पिछले कुछ वर्षो में शिशुओं और युवाओं की श्रवण शक्ति में कमी देखने में आ रही है और ऐसे मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। शिशुओं में यह समस्या आसानी से पकड़ में नहीं आती है, इसलिए किसी का इस पर ध्यान भी नहीं जाता।"

उन्होंने कहा कि समय की जरूरत है कि लोगों को शिक्षित किया जाए और जागरूकता पैदा की जाए, ताकि नुकसान की जल्दी पहचान हो और उचित कदम उठाए जाएं। जन्मजात दोषों के अलावा, श्रवण ह्रास बाहरी कारणों से भी हो सकता है। यह जरूरी है कि वातावरण में शोर का स्तर कम रखा जाए और स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त रखी जाएं।

यूनिवर्सल न्यूबॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यूएनएचएस) जन्म के बाद श्रवण हानि का शीघ्र पता लगाने की एक चिकित्सा परीक्षा है। भारत में अब भी इस तरह की प्रणाली की कमी है, जो शिशुओं में जन्मजात सुनवाई संबंधी समस्याओं की पहचान कर सके।

डॉ. अग्रवाल ने आगे बताया, "श्रवण ह्रास के मामले में संचार की कमी, जागरूकता का अभाव और शुरुआती जांच व पहल के महत्व के बारे में समझदारी की कमी को दोष दिया जा सकता है। इस स्थिति की पहचान करने में देरी से बच्चों में भाषा सीखने, सामाजिक संपर्क बनाने, भावनात्मक विकास और शिक्षा ग्रहण करने की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ सकता है। नवजात शिशुओं की हियरिंग स्क्रीनिंग एक आवश्यक प्रक्रिया है, जो करवा लेनी चाहिए।"

कुछ उपाय :

- कान में किसी भी तरह का झटका या चोट न लगने दें। इससे कान के ड्रम को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे सुनने की क्षमता घट जाती है।

- यह सुनिश्चित करें कि स्नान के दौरान शिशु के कानों में पानी न जाए।

- थोड़ा सा भी अंदेशा होने पार शिशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

- शिशु के कानों में कभी नुकीली वस्तु न डालें।

- बच्चों को तेज आवाज के संगीत या अन्य ध्वनियों से दूर रखें, क्योंकि इससे उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

- यह सुनिश्चित करें कि बच्चों को खसरा, रूबेला और मेनिन्जाइटिस जैसे संक्रमणों से प्रतिरक्षित करने के लिए टीका लगवा जाए।



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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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