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Manikarnika Dutta Wikipedia: कौन हैं ऑक्सफोर्ड की भारतीय इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता, क्या है इनके ब्रिटेन से संभावित निर्वासन के पीछे की कहानी
Manikarnika Dutta Deportation: भारतीय इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता के अनिश्चितकालीन निवास अनुमति (ILR) के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है, जिसका कारण उनके शोध कार्य के दौरान भारत में बिताए गए समय को बताया गया है।
Manikarnika Dutta Wikipedia (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Viral Indian Historian Manikarnika Dutta Kon Hai: ब्रिटेन में एक दशक से अधिक समय से निवास कर रहीं भारतीय इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता (Manikarnika Dutta) वर्तमान में निर्वासन की संभावना का सामना कर रही हैं। ब्रिटिश गृह मंत्रालय ने उनके अनिश्चितकालीन निवास अनुमति (ILR) के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है, जिसका कारण उनके शोध कार्य के दौरान भारत में बिताए गए समय को बताया गया है। यह निर्णय न केवल दत्ता के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन पर प्रभाव डालता है, बल्कि व्यापक अकादमिक समुदाय में भी चिंता का विषय बन गया है।
मणिकर्णिका दत्ता शिक्षा और करियर (Manikarnika Dutta Education and Career)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
37 वर्षीय मणिकर्णिका दत्ता ने कोलकाता विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर (MA) की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 2012 में, वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के इतिहास में मास्टर डिग्री के लिए ब्रिटेन आईं, जहां उनकी शिक्षा वेलकम ट्रस्ट मास्टर्स छात्रवृत्ति द्वारा वित्त पोषित थी।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, दत्ता ने यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास है, जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
व्यक्तिगत जीवन और ब्रिटेन में निवास (Personal Life and Residence In The UK)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
मणिकर्णिका दत्ता के पति, डॉ. सौविक नाहा, ग्लासगो विश्वविद्यालय में औपनिवेशिक इतिहास के वरिष्ठ व्याख्याता हैं। दोनों पिछले 10 वर्षों से लंदन के वेलिंग क्षेत्र में साथ रह रहे हैं। दत्ता ने अपने पति के साथ अक्टूबर 2024 में अनिश्चितकालीन निवास अनुमति (ILR) के लिए आवेदन किया था। जहां डॉ. नाहा का आवेदन स्वीकार कर लिया गया, वहीं दत्ता का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।
ILR आवेदन अस्वीकृति का कारण (Reason for ILR Application Rejection)
ब्रिटेन के आव्रजन नियमों के अनुसार, जो व्यक्ति 10 वर्षों से अधिक समय तक ब्रिटेन में निवास के आधार पर ILR के लिए आवेदन करते हैं, उन्हें इस अवधि में अधिकतम 548 दिनों तक ही विदेश में रहने की अनुमति होती है। हालांकि, दत्ता ने अपने शोध कार्य के सिलसिले में 691 दिन भारत में बिताए, जो अनुमत सीमा से 143 दिन अधिक है। इस आधार पर, गृह मंत्रालय ने उनके ILR आवेदन को अस्वीकार कर दिया।
शोध कार्य के लिए भारत यात्राएं (Visits To India For Research Work)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
दत्ता का शोध कार्य ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास पर केंद्रित है, जिसके लिए उन्हें भारत में अभिलेखागार और ऐतिहासिक स्रोतों तक पहुंच आवश्यक थी। इन अनुसंधानों के लिए उन्होंने कई बार भारत की यात्राएं कीं, जिनमें लंबा समय लगा। उनका कहना है कि ये यात्राएं उनके शोध के लिए अनिवार्य थीं और उन्होंने ब्रिटेन के बाहर बिताए गए समय के बारे में गृह मंत्रालय को सूचित भी किया था।
गृह मंत्रालय का दृष्टिकोण (Home Ministry Statement)
गृह मंत्रालय ने दत्ता के ILR आवेदन को अस्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने विदेश में अनुमत दिनों की सीमा का उल्लंघन किया है। इसके अलावा, मंत्रालय ने यह भी तर्क दिया कि दत्ता का ब्रिटेन में कोई पारिवारिक जीवन नहीं है, हालांकि वे अपने पति के साथ यहां निवास कर रही हैं। इस निर्णय के बाद, दत्ता ने समीक्षा की मांग की, लेकिन गृह मंत्रालय अपने फैसले पर कायम रहा।
अकादमिक समुदाय की प्रतिक्रिया (Academic Community Response)
दत्ता के निर्वासन की संभावना ने अकादमिक समुदाय में चिंता और आक्रोश पैदा किया है। कई शिक्षाविदों का मानना है कि शोध कार्य के लिए की गई यात्राओं को इस प्रकार दंडित करना अनुचित है और यह निर्णय ब्रिटेन की अकादमिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि शोधकर्ताओं को उनके कार्य के लिए आवश्यक यात्राओं के लिए लचीलापन दिया जाना चाहिए।
दत्ता की प्रतिक्रिया (Manikarnika Dutta's Response)
इस निर्णय के बारे में बात करते हुए, दत्ता ने कहा कि उन्हें मेल मिलने पर गहरा धक्का लगा। उन्होंने कहा, "मैंने अपना लंबा जीवन यूके में बिता दिया। मैंने कभी नहीं सोचा कि ऐसा भी हो सकता है।" उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनके शोध कार्य के लिए भारत में बिताया गया समय आवश्यक था और उन्होंने हमेशा नियमों का पालन करने का प्रयास किया है।
मणिकर्णिका दत्ता का मामला ब्रिटेन के आव्रजन नियमों और अकादमिक अनुसंधान की आवश्यकताओं के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या ब्रिटेन का गृह मंत्रालय इस पर पुनर्विचार करेगा।