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Water Conservation: जल संरक्षण: एक आवश्यक पहल, बेहतर जल सम्पन्न भविष्य की तरफ कदम
Water Conservation: यह न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि कृषि, उद्योग और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
water conservation News (Image From Social Media)
Water Conservation: जल, जिसे 'जीवन का अमृत' कहा जाता है, हमारे अस्तित्व का मूल आधार है। यह न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि कृषि, उद्योग और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, वर्तमान समय में जल संकट एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है, जो हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
भारत में जल संकट की स्थिति
नीति आयोग की 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक' रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 60 करोड़ लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इसके अतिरिक्त, 'सक्रिय भूमि जल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट 2022' के मुताबिक, भारत में कुल वार्षिक भू-जल पुनर्भरण 437.60 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है, जबकि वार्षिक भू-जल निकासी 239.16 BCM है। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है, जिसमें से 80% सिंचाई, 12% उद्योग और केवल 8% पेयजल के रूप में उपयोग होता है।
जल संरक्षण के उपाय
जल संकट से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय प्रभावी हो सकते हैं:
1. घरेलू स्तर पर जल का संयमित उपयोग: नलों को बंद रखना, रिसाव की तुरंत मरम्मत करना और आवश्यकता अनुसार ही जल का उपयोग करना आवश्यक है।
2. वर्षा जल संचयन: वर्षा जल को संग्रहित करके भू-जल स्तर को पुनर्भरण किया जा सकता है, जिससे जल की उपलब्धता बढ़ती है।
3. पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: उपयोग किए गए पानी का पुन: उपयोग, जैसे शौचालयों या बगीचों में, जल संरक्षण में सहायक हो सकता है।
4. कृषि में जल संरक्षण तकनीक: टपक सिंचाई और स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों का उपयोग करके सिंचाई में जल की बचत की जा सकती है।
5. जन-जागरूकता: जल संरक्षण के महत्व पर जागरूकता फैलाना और समुदायों को सक्रिय करना आवश्यक है।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर जल का महत्व
स्वच्छ जल की उपलब्धता सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी है। अशुद्ध जल के सेवन से जलजनित रोगों का खतरा बढ़ता है। इसके अलावा, जल की कमी से कृषि उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ता है। पर्यावरण की दृष्टि से, नदियों, झीलों और आर्द्रभूमियों का संरक्षण जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक होता है।
सरकारी प्रयास
भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए कई पहल की हैं, जैसे 'जल शक्ति अभियान' का शुभारंभ, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, 'अटल भूजल योजना' के माध्यम से भू-जल प्रबंधन में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।
जल संरक्षण न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है। हम सभी का कर्तव्य है कि हम जल का सदुपयोग करें, उसकी बर्बादी रोकें और एक स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण में योगदान दें।
प्राचीन भारत में जल संरक्षण प्रणालियाँ
प्राचीन भारत में जल संरक्षण की उन्नत प्रणालियाँ थीं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। इनमें बावड़ी, तालाब और अन्य जल संचयन संरचनाएँ शामिल थीं, जो सामुदायिक सहभागिता से संचालित होती थीं। इन पारंपरिक विधियों का अध्ययन और पुनर्स्थापन आधुनिक जल संरक्षण प्रयासों में सहायक हो सकता है। जल संरक्षण को अपनाकर ही हम एक बेहतर और जल-संपन्न भविष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।