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Poetry: हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा!

Poetry: रमई काका उर्फ़ चंद्रभूषण त्रिवेदी की अवधी में लिखी रचनायें पढ़ी हैं आपने इस मज़ेदार कविता का अर्थ आपको हँसने पर मजबूर कर देगा

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Newstrack Network
Published on: 13 May 2024 3:36 PM IST
Poetry ( Social Media Photo)
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Poetry ( Social Media Photo)

Poetry:हम गयन याक दिन लखनउवै,

कक्कू संजोगु अइस परिगा।

पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख,

सो कहूँ – कहूँ ध्वाखा होइगा —

जब गएँ नुमाइस द्याखै हम,

जंह कक्कू भारी रहै भीर।

दुई तोला चारि रुपइया कै,

हम बेसहा सोने कै जंजीर||

लखि भईं घरैतिन गलगल बहु,

मुल चारि दिनन मा रंग बदला।

उन कहा कि पीतरि लै आयौ,

हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा||

म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट,

मुंह पौडर औ सिर केस बड़े|

तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े,

बाबू जी याकै रहैं खड़े||

हम कहा मेम साहेब सलाम,

उई बोले चुप बे डैमफूल।

‘मैं मेम नहीं हूँ, साहेब हूँ',

हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा||

हम गयन अमीनाबादै जब,

कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा।

माटी कै सुघर महरिया असि,

जहं खड़ी रहै दरवाजा मा||

समझा दूकान कै यह मलकिन

सो भाव ताव पूछै लागेन|

याकै बोले यह मूरति है,

हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा||

धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ,

मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी।

मुंहु पौडर पोते उजर–उजर,

औ पहिरे सारी सुघर बड़ी||

हम जाना मूरति माटी कै,

सो सारी पर जब हाथ धरा।

उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं,

हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा||



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Shalini Rai

Shalini Rai

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