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Poetry: हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा!
Poetry: रमई काका उर्फ़ चंद्रभूषण त्रिवेदी की अवधी में लिखी रचनायें पढ़ी हैं आपने इस मज़ेदार कविता का अर्थ आपको हँसने पर मजबूर कर देगा
Poetry:हम गयन याक दिन लखनउवै,
कक्कू संजोगु अइस परिगा।
पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख,
सो कहूँ – कहूँ ध्वाखा होइगा —
जब गएँ नुमाइस द्याखै हम,
जंह कक्कू भारी रहै भीर।
दुई तोला चारि रुपइया कै,
हम बेसहा सोने कै जंजीर||
लखि भईं घरैतिन गलगल बहु,
मुल चारि दिनन मा रंग बदला।
उन कहा कि पीतरि लै आयौ,
हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा||
म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट,
मुंह पौडर औ सिर केस बड़े|
तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े,
बाबू जी याकै रहैं खड़े||
हम कहा मेम साहेब सलाम,
उई बोले चुप बे डैमफूल।
‘मैं मेम नहीं हूँ, साहेब हूँ',
हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा||
हम गयन अमीनाबादै जब,
कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा।
माटी कै सुघर महरिया असि,
जहं खड़ी रहै दरवाजा मा||
समझा दूकान कै यह मलकिन
सो भाव ताव पूछै लागेन|
याकै बोले यह मूरति है,
हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा||
धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ,
मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी।
मुंहु पौडर पोते उजर–उजर,
औ पहिरे सारी सुघर बड़ी||
हम जाना मूरति माटी कै,
सो सारी पर जब हाथ धरा।
उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं,
हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा||