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World Jellyfish Day History: अरे! मछली नहीं होती जेलीफ़िश Jellyfish
World Jellyfish Day History and Facts: 3 नवंबर को विश्व जेलीफ़िश दिवस मनाता है। यह अकशेरुकी जीव लाखों सालों से पृथ्वी पर मौजूद है। यह दिन हमें इन अनोखे जलीय जानवरों के बारे में और अधिक जानने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
World Jellyfish Day History Hindi: जिस तरह दरियाई घोड़ा घोड़ा नहीं होता। उसी तरह जेलीफ़िश फ़िश यानी मछली नहीं होती है।इसका शरीर मैसोग्लिया से बना छतरी के आकार का होता है। जिसे घंटी के रूप में जाना जाता है। ये घंटियों के चारों ओर प्रकाश के प्रति संवेदनशील कोशिकाओं का इस्तेमाल करती हैं, जिन्हें रोपेलिया कहा जाता है। इसका मुंह आमतौर पर अवतल पक्ष पर होता है।टेंटेकल्स छतरी के किनारे पर उत्पन्न होते हैं। जेलीफ़िश या समुद्री जेली या मेड्युसोज़ोआ या गिजगिजिया नाइडेरिया संघ का मुक्त-तैराक़ सदस्य है। जेलीफ़िश के बारे में कहा जाता है कि इसका अस्तित्व 500 मिलियन वर्षों से है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि संभवतः 700 मिलियन वर्ष या उससे भी अधिक समय से जेलीफ़िश का अस्तित्व बना हुआ है।
जेलीफ़िश मांसाहारी होती है । पर अपना शिकार खुद नहीं करती हैं। ये अपने भोजन के आसपास इस तरह घूमती या तैरती हैं कि भोजन ही उसके जाल में फँस जाये। ये बड़े समुद्री जीवों जैसे लॉबस्टर, झींगा और केकड़े खाती हैं। इनका जीवन काल कुछ ही सप्ताह का होता है।
हालाँकि कुछ जेली फ़िश के एक साल तक जीवित होने के भी प्रमाण मिले हैं।जेलीफ़िश की शरीर का 95 फ़ीसदी हिस्सा पानी होता है। यही वजह है कि पानी से बाहर निकालते ही वह पानी की बूँद बन जाती है।बाक़ी पाँच फ़ीसदी हिस्सा ही जेलीफ़िश का शरीर होता है।जेलीफ़िश में मस्तिष्क, हृदय, हड्डियाँ या आँखें नहीं होतीं। जेलीफ़िश के पैर नहीं होते; उनके पास तंबू होते हैं जिनका उपयोग वह चलने, खाने और बचाव के लिए करती हैं। वे चिकने, थैली जैसे शरीर और छोटे-छोटे डंक मारने वाली कोशिकाओं से लैस तंतु से बनी होती हैं।
जेलीफ़िश में विशेष पाचन, परासरण- नियंत्रक , केंद्रीय तंत्रिका , श्वसन या रक्तवाही प्रणालियाँ भी नहीं होती हैं। वे आमाशय वाहिकीय विवर के जठर के त्वचीय स्तर का उपयोग करते हुए, जहां पोषक तत्वों का अवशोषण होता है, पाचन करते हैं।उनकी त्वचा इतनी पतली होती है कि इन्हें श्वसन प्रणाली की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
जेलीफ़िश में मस्तिष्क या केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली भी मौजूद नहीं होती, बल्कि वाह्यत्वचा में अवस्थित तंत्रिकाओं का ढीला नेटवर्क रहता है, जिसे तंत्रिका जाल कहा जाता है।
जेलीफ़िश नाइडेरिया संघ का सदस्य है। स्काइफोजोआ की 200 से अधिक प्रजातियां मिलती है। जबकि स्टॉरोजोआ की लगभग 50 प्रजातियां पाई गयी है। क्यूबोजोआ की लगभग बीस प्रजातियाँ और हाइड्रोजोआ की एक डेढ़ हज़ार प्रजातियाँ अभी तक वैज्ञानिकों के हाथ लग चुकी हैं।
जेलीफ़िश हर समुद्र में, सतह से समुद्र की गहराई तक पाई जाती हैं। कुछ हाइड्रोज़ोआई जेलीफ़िश, या हाइड्रोमेड्युसे ताज़ा पानी में भी मिलती हैं। मीठे पानी की प्रजातियां व्यास में एक इंच यानी 25 मि.मी तक होती हैं।शेर अयाल सर्वाधिक विख्यात जेलीफ़िश हैं। यह विवादास्पद तौर पर दुनिया का सबसे लंबा जानवर है।
जेलीफिश अपने बचाव में केवल डंक मार सकती है। मीठे पानी की जेलीफ़िश के डंक का कोई असर नहीं होता है। पर दूसरे जगह की जेलीफ़िश के डंक का असर बहुत ख़तरनाक भी होता है। ऐसी ख़तरनाक जेलीफ़िश उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय जल में पाई जाती है। उनके डंक से मृत्यु भी हो सकती है। जेलीफ़िश में अपने तंतुओं के सिरे से डंक मारने और ज़हर इंजेक्ट करने की क्षमता होती है। जेलीफ़िश के डंक घातक मस्तिष्क रक्तस्राव का कारण बन सकते है।
इसके डंक के असर से बचने के लिए 43 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड के पानी का इस्तेमाल करें।पानी गर्म होना चाहिए। पर जलन पैदा करने वाला नहीं होना चाहिए । दर्द कम होने तक प्रभावित त्वचा को पानी में डुबोकर रखें या गर्म पानी से नहलाएँ।यह करना 20 से 45 मिनट तक ज़रूरी होता है। इसी के साथ प्रभावित त्वचा पर दिन में दो बार 0.5 फ़ीसदी से 1 फ़ीसदी हाइड्रोकार्टिसोन क्रीम या मलहम लगाएँ।
यदि किसी को उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की जेलीफ़िश ने डंक मारा है। तो डंक वाली जगह पर 30 सेकंड के लिए सिरका डालें, त्वचा से किसी भी टेंटेकल को हटा दें। व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं । यदि किसी को गैर-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में डंक मारा गया है, तो डंक वाली जगह को समुद्री पानी से धो लें, किसी भी टेंटेकल को हटा दे।उस जगह को गर्म पानी में डुबो दें।जेलीफ़िश ने जहां डेक मारा हो वहाँ त्वचा पर निशान भी पड़ सकता है। इस स्थान को काला होने से बचाने के लिए धूप में रखें।