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‘ओ री चिरैया...’ घरों से गायब हो रही है गौरैया, मौन होती चहचहाहट के पीछे क्या है कारण?
ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे...’ स्वानंद किरकिरे का लड़कियों के लिए गाया गया यह लोकप्रिय गीत आज गौरैया दिवस पर भी सटीक बैठता है। हर साल 20 मार्च को इस गाने की याद जरूर आती है।
World Sparrow Day (Photo: Newstrack)
आधुनिकता का बढ़ता दौर न केवल मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी खतरनाक होता जा रहा है। जहां एक तरफ प्रदूषण और अन्य कारणों से लोगों की आयु कम हो रही है, वहीं इसका दुष्प्रभाव अन्य जीवों पर भी देखा जा रहा है। धरती से तमाम जीव या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। गौरैया भी इसी श्रेणी में आ गई है।
घर के आंगन की सुंदरता बढ़ाने वाली नन्ही सी सुंदर चिड़िया की गिनती अब कम होती जा रही है। आलम यह है कि इनके संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए एक विशेष दिन नियुक्त कर दिया गया। हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। गौरैया दिवस की शुरुआत साल 2010 में नेचर फॉरएवर सोसायटी ऑफ इंडिया और फ्रांस की इको सिस एक्शन फाउंडेशन के प्रयास से हुआ।
तेजी से कम हो रही है गौरैया की गिनती
दुनिया में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें से पांच भारत में मौजूद हैं। मगर इनकी संख्या घटती जा रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक सर्वे के अनुसार देश के तमाम राज्यों में गौरैया की गिनती कई गुना कम हो गई है। सर्वे के मुताबिक आंध्र प्रदेश में गौरैया की गिनती करीब 88 प्रतिशत कम हो गई है। वहीं केरला, गुजरात और राजस्थान में इनकी गिनती में पहले से 20 प्रतिशत की कमी आई है। इसके साथ ही देश के तटीय क्षेत्रों में गौरैया की संख्या में 70 से 80 फीसदी तक की गिरावट आई है। यहां तक की उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कई क्षेत्रों में 2013 के बाद गौरैया नहीं दिखी।
कवि अरमान आनंद अपनी कविता ‘गौरैया’ में लिखते हैं-
प्यारी गौरैया,
ये दुनिया कोई संसद तो नहीं
जिससे तुम वाक आउट कर गई हो
गौरैया तुमने एक बार सालिम अली के बारे में बताया था
उनसे पूछूं क्या तुम्हारा पता
गौरैया बताओ न तुम गुजरात गई कि पाकिस्तान
कम होती जनसंख्या के पीछे का कारण
मगर गौर करने की बात है कि हर घर में पाई जाने वाली चिड़िया अचानक कहां गायब हो गई। हालांकि यह कहना गलत होगा की गौरैया अचानक गायब हो गई। इनकी संख्या में धीरे-धीरे गिरावट आई। मगर हमने बड़ी देर में इसके बारे में सोचना शुरु किया। इनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए पहले दिल्ली और फिर बिहार सरकार ने गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित कर दिया। गौरैया की संख्या कम होने के पीछे घरों की बनावट, पेड़ों की कटाई और खाने की कमी सहित कई कारण हैं।
घरों की बनावट
आम तौर पर गौरैया लोगों के घरों में अपना बसेरा बनाती हैं। इसीलिए इन्हें अंग्रेजी में ‘हाउस स्पैरो’ भी कहा जाता है। पहले के समय में घरों की बनावट में कई खाली जगह भी होते थे। कच्चे मकान, छप्पर या खपड़े की छतों में गौरैया के रहने के लिए पर्याप्त जगह होती थी। इन्ही घरों के आंगन में रोज सुबह गौरैया दाना चुगती थी। मगर वक्त के साथ घरों की बनावट में भारी बदलाव आया। पक्के मकानों में शायद ही ऐसी कोई जगह होती हौ जहां चिड़िया घोसला बना सके। यहां तक की घरों से आंगन भी गायब होने लगा। अगर रहा भी तो बहुत छोटा। जब घरों में आंगन ही नहीं रहा तो गौरैया चाह कर भी दाना कहां चुगती? फलस्वरूप गौरैया को अपना बसेरा उजाड़ना पड़ा।
कवि अरमान आनंद अपनी कविता में आगे लिखते हैं-
प्यारी गौरैया,
हम तुम्हें ही बचाने के लिए नारे लिख रहे थे
और तुम गायब हो गई गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
कुछ बताओ न बताओ
ये तो बता दो
तुमें इश्क में शहादत मिली की जंग में
कटते पेड़
कटते पेड़ दुनिया की कई समस्याओं की जड़ हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में जंगल तो काटे ही जा रहे हैं साथ ही गांव-घर में मौजूद पेड़ भी इसकी जद में आ चुके हैं। पेड़ के नाम पर अब लोगों के आलीशान बंगलों की बालकनी में रखे गमले ही बचे हैं। अब गौरैया गमले में घोसला तो नहीं बना सकती थी। अपना नया घर बसाने के लिए काटे गए पेड़ से गौरैया की दुनिया उजड़ गई।
खाने की कमी
हिंदुस्तान मनुष्यों के साथ ही गौरैया की भुखमरी का इलाज करने में नाकाम रहा। पेट की आग के आगे कोई भी बेबस हो जाता है। पक्षियों के पेट भरने में कीटों की बड़ी भूमिका है। मगर बढ़ते कीटनाशक के उपयोग ने गौरैया के खाने को ही समाप्त कर दिया। जो कुछ मिला भी तो वह जहरयुक्त। गौरैया की गिनती कम होने के पीछे खाने की कमी एक बड़ा कारण है।
मोबाइल टॉवर से नुकसान
इंटरनेट के विस्तार के साथ ही शहरी और ग्रामीण इलाकों में मोबाइल टावर की गिनती भी बढ़ी। इन सभी टावरों से एलक्ट्रो मैगनेटिक रैडियेशन निकलता है। जिसे हिंदी में विछुत चुम्बकीय विकिरण भी कहते हैं। जानकारी के मुताबिक यह रैडियेशन गौरैया के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ। इसके चलते इनके प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। यह रैडियेशन इनकी जनसंख्या में कमी का एक बड़ा कारण बना। यह भी पाया गया कि टावर के आसपास रहने वाली गौरैया एक हफ्ते के भीतर ही अपना स्थान बदल देती है।
बीतते वक्त के साथ गौरैया की संख्या में और गिरावट होने की आशंका है। अगर सरकार और खासकर समाज के लोगों ने इस पक्षी को बचाने का गंभीर प्रयास नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को गौरैया फोटो में दिखा रहे होंगे। इनके गायब और खत्म होने के पीछे मनुष्यों का ही हाथ है। हमें यह समझने में काफी देर लगी की गौरैया की चहचहाहट मौन हो रही है। मगर अभी भी वक्त है।
स्वानंद किरकिरे ने अपने गीत में लिखा-
हमने तुझपे जहां भर के जुल्म किये
हमने सोचा नहीं जो तू उड़ जायेगी
ये जमीं तेरे बिन सूनी रह जायेगी
किसके दम पर सजेगा आंगना मेरा
ओ री चिरैया, मेरी चिरैया
अंगना में फिर आजा रे....