स्पर्म की कमी से हो परेशान, टेंशन नहीं लेने का दोस्त, हमसे ज्ञान ले लो वो भी फ्री

पुरुषों की जिंदगी में वीर्य का काफी महत्व है। यह एक जैविक तरल पदार्थ होता है जिसे धातु के नाम से भी जाना जाता हैं। अधिकांश वीर्य सफेद होते हैं, लेकिन धूसर या यहां तक कि पीला-सा वीर्य भी सामान्य हो सकते हैं। वीर्य में रक्त से इसका रंग गुलाबी या लाल हो सकता है।

Dharmendra kumar
Published on: 27 July 2019 6:45 AM GMT
स्पर्म की कमी से हो परेशान, टेंशन नहीं लेने का दोस्त, हमसे ज्ञान ले लो वो भी फ्री
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लखनऊ: पुरुषों की जिंदगी में वीर्य का काफी महत्व है। यह एक जैविक तरल पदार्थ होता है जिसे धातु के नाम से भी जाना जाता हैं। अधिकांश वीर्य सफेद होते हैं, लेकिन धूसर या यहां तक कि पीला-सा वीर्य भी सामान्य हो सकते हैं। वीर्य में रक्त से इसका रंग गुलाबी या लाल हो सकता है, जो हेमाटोस्पर्मिया कहलाता है और चिकित्सकीय समस्या पैदा कर सकता है, अगर यह तत्काल समाप्त नहीं होता है तो पुरुषों को तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

वीर्य शरीर की बहुत मूल्यवान धातु है। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया बड़ी लम्बी है। जो भोजन पचता है, उसका पहले रस बनता है। पांच दिन तक उसका पाचन होकर रक्त बनता है, उसमें से 5-5 दिन के अंतर से मेद, मेद से हड्डी, हड्डी से मज्जा और मज्जा से अंत में वीर्य बनता है। इस प्रकार वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घण्टे लग जाते हैं। वैज्ञानिक के मुताबिक 32 किलो भोजन से 800 ग्राम रक्त बनता है और 800 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है।

सबसे चौकाने वाली बात ये है कि भारत के मर्दो के वीर्य में साल दर साल शुक्राणुओं की कमी होती जा रही है। शक्राणु के आकर और संरचना में गड़बड़ियां आ रही है। 1978 में एक सेहतमंद व्यक्ति के वीर्य में शुक्राणुओं की गिनती 6 करोड़ प्रति लीटर पाई जाती थी, 2012 में यह गिनती 6 करोड़ से 2 करोड़ हो गयी थी।

आज कल अधिकरतर लोग स्मरण शक्ति और वीर्य कमजोर होने की वजह से परेशान है। यह सब हमारे गलत खान-पान और रहन-सहन की वजह से है। जैसे की मिलावटी खाना या फिर नशे के इस्तमाल की वजह से हमे कई तरह की शरीरक समस्यायों का सामना करना पड़ता है। हस्तमैथुन करना भी इसका एक बड़ा कारण माना गया है। इन सब कारणों की वजह से तो बहोत से नपुंसकता का शिकार भी हो चुके है।

बहुत सारे पुरुषों जिन्हें उत्थानशीलता में गड़बड़ी या नपुंसकता है, वे प्राकृतिक वीर्य की मात्रा के लिए गोलियों का उपयोग शुरू कर देते हैं। ये हर्बल गोलियां खाद्य व औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित नहीं है और पौरुष संवर्धन की श्रेणी में आते हैं। वीर्य की मात्रा से संबंधित गोलियों की संरचना यौन संबंध बनाने के दौरान स्खलन या सीमेन की मात्रा में वृद्धि के लिए की जाती है।

शुक्राणुओ में वृद्धि के विशेष उपचार

  • तुलसी के बीज आधा ग्राम (पीसे हुए), पान के साथ सादे या केवल कत्था चुना लगाये पान के साथ नित्य सुबह एवं शाम खाली पेट खाने से वीर्य पुष्टि एवं रक्त शुध्दि होती है।
  • जो लोग पान नही खाते, वे एक भाग तुलसी के बीज का चूर्ण को दो भाग पुराने गुड में मिलाकर ले सकते है। आवश्यकता अनुसार दस से चालीस दिन तक लें। साधारणतया आठ-दस दिनों का प्रयोग पर्याप्त रहता है। अधिक से अधिक चालीस दिन तक प्रयोग किया जा सकता है।
  • तुलसी के बीज अत्यंत उष्ण होने के कारण यह प्रयोग केवल शीतकाल में ही किया जाना चाहिए। इश्तहारी पौरुष बलवर्धक ओषधियों के पीछे भागने वाले यदि नपुंसकत्व रोग-नाशक तुलसी के बीजों का उक्त प्रयोग करें तो पांच सप्ताह में ही उनकी चिंता दुर हो सकती है। इसके अतिरिक्त गैस कफ से उत्पन्न होने वाले अनेक रोग मिट जाते है।
  • बथुआ का शाक हरे पत्ते के शाको में सर्वाधिक गुणकारी है। बथुआ शुक्र की वृध्दि करता है। रक्त की शुध्दि करता है। स्मरण शक्ति तेज करता है। आमाशय को बल प्रदान करता है। कब्जनाशक और जठराग्निवर्धक है।
  • गर्मी में बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। पथरी से बचाव करता है। इसे जब तक हरा मिले, हरा सेवन करना चाहिए अन्यथा सुखाकर रख लें। इसको पीसकर अथवा इसके कतरन आटे में गूंधकर रोटी बनाकर खाना भी लाभप्रद है।
  • दूध और केसर शीतकाल में 250 ग्राम औटाये हुए दूध में चार-पांच केसर की पंखुड़ियां अच्छी तरह मिलाकर, मिश्री डालकर, यह दूध प्रात: या रात सोने से पहले पिया जाय तो पुरुषत्व शक्ति में खूब वृध्दि होती है। स्फूर्ति आती है। खून का दौरा बढ़ता है। शरीर की रंगत निखरती है। प्रभाव की द्रष्टि से अत्यंत कामोद्दीपक, उत्तेजिक और बाजीकरण है। इसके सेवन में सर्दी का प्रभाव भी कम पड़ता है। सर्दी से बचाव हो और हाथ-पांव बर्फ की तरह ठंडे होना मिटता है।

इन उपचारों को लेते वक्त आपको परहेज भी करने होंगे जो हैं-

तेल और तली चीजें, अधिक लाल मिर्च, मसालेदार पदार्थ, इमली, अमचूर, तेज खटाईयां व आचार। प्रयोग काल में घी का उचित सेवन करना चाहिए। पेट की शुध्दि पर भी ध्यान देना चाहिए। कब्ज नही होने देनी चाहिए। कब्ज अधिक रहता हो तो प्रयोग से पहले पेट को हल्के दस्तावर जैसे त्रिफला का चूर्ण एक चमच अथवा दो-तीन छोटी हरड़ का चूर्ण गर्म दूध या गर्म पानी के साथ, सोने से पहले अंतिम वास्तु के रूप में लें। सेवन-काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। ओषधि सेवन के आगे-पीछे कम से कम दो घंटे कुछ न खाएं। खाली पेट सेवन से यह मतलब है।

Dharmendra kumar

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