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अमर सिंह ने साबित किया अभी खत्म नहीं हुई राजनीतिक पारी

अपनेे राजनीतिक अनुभव के चलते अमर सिंह ने जया प्रदा को भाजपा से टिकट दिलाकर जहां एक तरफ अपने राजनीतिक सफर को एक नई दिशा देने का काम किया है वहीं दूसरी तरफ उन्होंने समाजवादी पार्टी के मो. आजम खां से अपनी पुरानी राजनीतिक दुश्मनी को जनता के सामने लाकर यह बताने का प्रयास किया है कि अभी उनकी राजनीतिक पारी खत्म नही हुई है।

SK Gautam
Published on: 26 March 2019 4:29 PM GMT
अमर सिंह ने साबित किया अभी खत्म नहीं हुई राजनीतिक पारी
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अमर सिंह-जया प्रदा

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: अपनेे राजनीतिक अनुभव के चलते अमर सिंह ने जया प्रदा को भाजपा से टिकट दिलाकर जहां एक तरफ अपने राजनीतिक सफर को एक नई दिशा देने का काम किया है वहीं दूसरी तरफ उन्होंने समाजवादी पार्टी के मो. आजम खां से अपनी पुरानी राजनीतिक दुश्मनी को जनता के सामने लाकर यह बताने का प्रयास किया है कि अभी उनकी राजनीतिक पारी खत्म नही हुई है।

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अमर सिंह और मुलायम सिंह की राहें अलग होने के बाद अमर सिंह जब दोबारा मुलायम सिंह के करीब आए तो पार्टी के ही कुछ लोगों खासतौर पर मो आजम खां को ये नागवार गुजरा। चाहकर भी मुलायम अमर की नजदीकियां नहीं बढ़ पाई। वैसे तो मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की दोस्ती की शुरूआत 1988 के आसपास हुई लेकिन तब इनकी दोस्ती कहीं दिखाई नहीं पड़ती थी।

इसका खुलासा तब हुआ जब 1996 में अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की और मुलायम सिंह के दाहिनें हाथ बन गए। कहा जाता है कि केन्द्र में मुलायम सिंह को रक्षा मंत्री बनवाने में अमर सिंह की अहम भूमिका थी जिसके बाद मुलायम सिंह ने पार्टी में उनको एक क्षत्रिय नेता के रूप में स्थापित किया।

मुलायम सरकार बनने पर और करीब हुए

जब 2003 में मुलायम सिंह की तीसरी बार यूपी में सरकार बनी तो दूसरे दलों के विधायकों को समाजवादी पार्टी के समर्थन दिलवाने में अमर सिंह की अहम भूमिका रही। 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले अमर सिंह का ही दम था कि राजनीति के दो विपरीत ध्रुव मुलायम सिंह और कल्याण सिंह एक साथ चुनाव मैदान में उतरे।

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लोकसभा चुनाव परिणामों से बढ़ी खटास

कल्याण सिंह को मुलायम के नजदीक लाने से समाजवादी पार्टी का मुख्य वोट बैंक यानी मुसलमान नाराज हो गया जिसका परिणाम यह रहा कि पार्टी को अपेक्षित सीटें नहीं मिल पाई। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के सभी 12 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव हार गए। जबकि उसके पहले 2004 के लोकसभा चुनाव में यूपी से समाजवादी पार्टी के 11 सांसद थें।

बगावत के बाद अमर सिंह हुए थें बाहर

लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद पार्टी में मची अंतर कलह को देखते हुए अमर सिंह ने 6 जनवरी 2010 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बाद में मुलायम सिंह यादव ने 2 फरवरी 2010 को उन्हे पार्टी से बर्खास्त कर दिया। इस बीच रामगोपाल यादव के साथ उनका वाकयुद्ध भी खूब चला।

बाद में अमर सिंह एक अलग पार्टी ‘लोकमंच’ का गठन किया जिसमें 14 छोटे दलोें का भी सहयोग लिया। लोकमंच के सहारे अमर सिंह अपने बयानों से मुलायम सिंह को खूब घेरते रहे लेकिन मुलायम सिंह यादव ने उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा।

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कार्यक्रमों में अमर का जिक्र करते रहे मुलायम

प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो सरकारी कार्यक्रमों में मुलायम सिंह यादव अमर सिंह और उनकी क्षमताओं का जिक्र करना नहीं भूलें। 5 अगस्त 2014 को जब जनेश्वर मिश्र की स्मृति में हुए कार्यक्रम में अमर सिंह के शामिल होने के बाद साफ होने लगा कि उनकी नजदीकियां मुलायम सिंह से बढ़ रही हैं और नेताजी उनको समाजवादी पार्टी में लाना चाहते हैं।

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कई महीनों चला कयासों का दौर

कई महीनों तक अमर सिंह की सपा में वापसी को लेकर कयासों का दौर चलता रहा। अमर सिंह बराबर कहते रहें कि वह समाजवादी नहीं बल्कि ‘मुलायमवादी’हैं। अमर के पार्टी में शामिल होने को लेकर आजम खां से लेकर रामगोपाल यादव तक के विरोध के स्वर सुनाई पड़ते रहे लेकिन अमर सिंह का मुलायम सिंह के आवास से लेकर सरकारी कार्यक्रमों में आने जाने का सिलसिला चलता रहा।

राज्य सभा में जाने पर लगी मुहर

आखिरकार 16 मई 2016 को संसदीय बोर्ड की बैठक में अमर सिंह के राज्यसभा में जाने पर पार्टी ने अपनी मुहर लगा दी। उनके नाम को लेकर पार्टी में कुछ विरोध के स्वर गूंजे लेकिन पार्टी सुप्रीमों मुलायम सिंह के कड़े रुख को देखते हुए किसी की मुंह खोलने की हिम्मत नहीं पड़ी।

अखिलेश यादव ने मिलने से किया इंकार

राज्यसभा सांसद बनने के बाद अमर सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कई बार मिलने का प्रयास किया लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हे मिलने का समय नहीं दिया जिसके कारण अमर सिंह ने कुछ बयानबाजी भी की जो अखिलेश यादव को नागवार गुजरी। अखिलेश को लगने लगा कि पार्टी में जो कुछ भी विवाद हो रहे हैं उसकी जड़ में अमर सिंह ही हैं। यहीं वह शख्स हैं जो उनके पिता को बहका रहे हैं।

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दो फाड़ होने पर अखिलेश ने किया बाहर

समाजवादी पार्टी में दो फाड़ होने के बाद जब अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने पहला काम यही किया कि प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को पद से हटाने के साथ ही अमर सिंह को भी पार्टी से बर्खास्त कर दिया।

अमर सिंह ने फिर पकड़ा मुलायम का साथ

अखिलेश यादव के इस कदम के बाद अमर सिंह पूरी तन्मयता के साथ मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है। साइकिल चुनाव चिन्ह को लेकर जब वह मुलायम सिंह के साथ चुनाव आयोग पहुंचे तो उन्होंने साफ कहा कि ‘‘ मै मुलायम सिंह के साथ हमेशा था और रहूंगा, मैने उनके लिए नायक की तरह काम किया है।

उनके हित में खलनायक भी बनना पडेगा तो बनूंगा’’। लेकिन जब साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश यादव को मिल गया और शिवपाल भी पार्टी से अलग हो गये तब से अमर सिंह किसी नए राजनीतिक ठौर की तलाश करते रहे और आज उन्होंने जयाप्रदा को रामपुर से टिकट दिलाकर यह साबित कर दिया कि उनकी राजनीतिक पारी अभी खत्म नहीं हुई है।

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