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BJP प्रत्याशी के लिए वोट मांगने पहुंची अनुप्रिया पटेल, रायबरेली के लोगों को कोस कर गईं 

सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यहां के लोगों की बदहाली की कहानी लिखने लायक है। इससे ज्यादा दुर्भाग्य पूर्ण और क्या हो सकता है। कि बरगद का वृक्ष आपने जिसको माना हुआ है उसकी छाया भी आपको नसीब नही हो रही है। मैं आपसे ये कहने के लिए आई हूं की आपको मानसिक गुलामी की जंजीरो से आज़ाद होना है।

SK Gautam
Published on: 27 April 2019 6:23 PM IST
BJP प्रत्याशी के लिए वोट मांगने पहुंची अनुप्रिया पटेल, रायबरेली के लोगों को कोस कर गईं 
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रायबरेली: केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल बीजेपी उम्मीदवार दिनेश सिंह के समर्थन में बछरावां विधानसभा के सहगों गांव में आयोजित सभा को संबोधित करने पहुंची थीं। अनुप्रिया पटेल ने कहा कि मैं ये कहने आई हूं कि इतने सालों से अब हर पांच साल में जब वोटिंग मशीन का बटन दबाते हैं तो अपनी किस्मत से खिलवाड़ करने के लिए दबाते आए हैं।

सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यहां के लोगों की बदहाली की कहानी लिखने लायक है। इससे ज्यादा दुर्भाग्य पूर्ण और क्या हो सकता है। कि बरगद का वृक्ष आपने जिसको माना हुआ है उसकी छाया भी आपको नसीब नही हो रही है। मैं आपसे ये कहने के लिए आई हूं की आपको मानसिक गुलामी की जंजीरो से आज़ाद होना है। आप किसी ग़ुलाम देश के नागरिक नही है, आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मतदाता हैं। आप भारत भाग्य विधाता हैं। और कम से कम रायबरेली की शक्लो सूरत बदलना आपके अपने हाथों मे है।

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इस बात का एहसास कर लीजिए ये जो पांच साल में अवसर आपको मिलता है ये आपकी तकदीर के दरवाजे खोल सकता है। लेकिन इतने सालों से लगातार आप हर पांच साल पर एक सुनहरे मौके को गंवाते आ रहे हैं।

उन्होंने कहावतो को अपने भाषण का अंग बनाया। कहा दूध का जला छांछ भी फूंक फूंक कर पीता है। लेकिन आप बार-बार जल-जल कर भी सुधरते नही हैं मुझे रायबरेली के लोगों पर आश्चर्य होता है। एक सांसद की अपने क्षेत्र के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक सांसद चाहे तो बहुत कुछ भी कर सकता है। और सांसद अगर वो व्यक्ति हो जो देश की सत्ता का सिरमौर हो तो उसके जिले मे कोई कमी नही हो सकती।

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उन्होंने कहा कि कोई रायबरेली आता है तो अपने मन मे एक कल्पना लेकर आता है। कैसी कल्पना पता है? वीआईपी जिला सोचकर आता है। लेकिन जैसे ही रायबरेली के अंदर प्रवेश करता है और यहां के गांव और गलियों के धीरे-धीरे अंदर जाता है तो सड़कों को देखता है तो उसकी सारी कल्पनाएं खत्म हो चुकी होती है। तो उसकी समझ में आता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं यहां आकर सिर्फ एक कहावत चरितार्थ होती है नाम बड़े और दर्शन छोटे उनकी दुकान और फीके पकवान कोई भी व्यक्ति जब आपके जिले का चक्कर लगाता है तो यही सोचता है।



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