यूपी: गठबंधन से बसपा को फायदा, सपा का मत प्रतिशत हुआ कम, कांग्रेस का भविष्य खतरे में

2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा झटका समाजवादी पार्टी को लगा है। पिछले लोकसभा चुनाव में पांच सीटें पाने वाली सपा इस बार बसपा-रालोद से गठबंधन के बावजूद पांच सीट पर ही सिमट गई।

Aditya Mishra
Published on: 24 May 2019 3:21 PM GMT
यूपी: गठबंधन से बसपा को फायदा, सपा का मत प्रतिशत हुआ कम, कांग्रेस का भविष्य खतरे में
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फ़ाइल फोटो

धनंजय सिंह

लखनऊ: 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा झटका समाजवादी पार्टी को लगा है। पिछले लोकसभा चुनाव में पांच सीटें पाने वाली सपा इस बार बसपा-रालोद से गठबंधन के बावजूद पांच सीट पर ही सिमट गयी, जबकि सपा की साइकिल पर सवार बसपा शून्य से 10 पर पहुंच गई।

हालांकि बसपा के वोट प्रतिशत में कोई विशेष कमी नहीं आयी है लेकिन सपा के वोटों में 4.39 प्रतिशत की कमी आयी है। इससे राजनीतिक समीक्षक सपा के भविष्य पर सवालिया निशान लगाने लगे हैं। इसी के साथ कांग्रेस के मत प्रतिशत में 1999 से लगातार आ रही गिरावट से उसका सियासी भविष्य खतरे में नजर आने लगा है।

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कांग्रेस का लगातार गिर रहा मत प्रतिशत

1999 के लोकसभा चुनावों में यूपी में 14.72 प्रतिशत मत पाकर 10 सीट पाने वाली कांग्रेस 2019 में 6.31 प्रतिशत मत पाकर मात्र एक सीट पर सिमट गयी। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस काे 7.53 प्रतिशत मत मिले थे। 2014 में यह माना जा रहा था कि नरेंद्र मोदी की जबरदस्त आंधी में कांग्रेस बह गयी लेकिन इस बार 2014 की अपेक्षा 1.22 प्रतिशत मत और कम हो गये।

इसके साथ ही कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार राहुल गांधी खुद अमेठी से हार गये। प्रियंका गांधी वाड्रा को लाकर कांग्रेस ने बीमार पार्टी के इलाज की कोशिश की लेकिन उसमें भी नाकाम रही। इस वजह से आगे के चुनावों में प्रियंका वाड्रा के भविष्य पर भी सवाल उठने लाजिमी हैं।

1999 से अब तक यूपी में कांग्रेस के मत प्रतिशत पर गौर करें तो लगातार उसके मतों में गिरावट आयी है।

1999 में कांग्रेस को 14.72 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत 2.68 गिरकर 12.04 रह गया। 2002 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस को मात्र 8.96 प्रतिशत मत मिले और 25 सदस्य विजयी हुई। 2007 के विधान सभा चुनाव में मत प्रतिशत और गिरकर 8.61 रह गया और 22 उम्मीदवार विधानसभा में निर्वाचित हुए थे।

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत गिरकर 11.65 हो गया जबकि 21 सीटों पर कब्जा हो गया था। जब 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी आई तो कांग्रेस के मतों में 4.12 प्रतिशत की गिरावट आयी और कांग्रेस 7.53 प्रतिशत मत ही पा सकी। 2019 में फिर एक बार कांग्रेस लुढ़की और 6.31 प्रतिशत पाकर मात्र एक सीट (रायबरेली) पर अटक गयी।

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बसपा के मत प्रतिशत में नहीं हुई कमी

बसपा के मतों पर नजर दौड़ाएं तो 1999 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 22.08 प्रतिशत मत मिले थे। उस समय बसपा ने 14 सीटों पर कब्जा जमाया था। 2002 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 23.06 प्रतिशत मत मिले थे। 2004 में बसपा को 24.67 प्रतिशत मिले थे और 19 लोकसभा सीटों पर उसके उम्मीदवार विजयी रहे थे। 2007 के विधानसभा चुनाव में 2004 के लोकसभा चुनाव की अपेक्षा बसपा के मत प्रतिशत में 5.76 प्रतिशत का इजाफा हुआ और उसको 30.43 प्रतिशत मत मिले।

2009 के लोकसभा चुनावों में भी 2004 की अपेक्षा बसपा के मत प्रतिशत और सीटों की संख्या बढ़ी। 2009 में बसपा को 27.20 प्रतिशत मत मिले थे। उसकी सीट भी 19 से बढ़कर 20 हो गयी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के चलते बसपा ने ऐसा गोता खाया कि 7.43 प्रतिशत मत कम होने के साथ ही शून्य सीट पर आ गयी। बसपा को 2014 में जहां 19.77 प्रतिशत मत मिले थे वहीं 2019 में 19.26 प्रतिशत मत मिले। इस तरह देखा जाए तो 2014 के मुकाबले 2019 में मात्र .51 प्रतिशत वोट बढ़ने के साथ ही 10 सीटें भी मिल गईं।

सपा का मत प्रतिशत गिरा

पिछले चुनाव परिणामों और गिरते मत प्रतिशत को देखते हुए सियासी मजबूरी थी कि बसपा प्रमुख ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने धुर विरोधी सपा के साथ हाथ मिलाया, क्योंकि इस बार यदि उसको सीट न मिलती तो बसपा का भविष्य ही खतरे में पड़ जाता। चुनाव के दौरान भी मायावती बार-बार सपा मुखिया अखिलेश यादव को किसी न किसी बहाने नसीहत देतीं रहीं।

सपा मुखिया भी हर वक्त अपने कार्यकर्ताओं को आगाह करते रहे। यही कारण रहा कि सपा के वोट तो बहुत हद तक बसपा में शिफ्ट हो गये और बसपा शून्य से 10 पर पहुंच गयी, जबकि सपा की सीटों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। 2014 में 22.35 वोट प्रतिशत पाने वाली सपा इस बार 17.96 प्रतिशत पर आकर सिमट गयी।

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