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एक्स्पर्ट व्यू: विजय और दक्षिण में असर बनाने के लिए, राहुल ने चुना वायनाड सीट
बाक़ी अगर सपा-बसपा कि बात कि जाए तो का आज तक यहां सपा-बसपा खाता भी नहीं खुला। आखिर इतनी मजबूत पकड़ के बाद वो कौन सा कारण है जिसकी वजह से राहुल गांधी को अमेठी के साथ केरल की वायनाड सीट का चयन करना पड़ा?
अमेठी: यूपी में अमेठी को कांग्रेस का दुर्ग कहा जाता है। यहां जाति-धर्म और विकास से हटकर गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर वोटिंग होती है। इस सीट पर सबसे ज्यादा नुमाइंदगी भी गांधी परिवार के सदस्यों की रही है, सबसे अधिक राहुल गांधी उसके अलावा उनकी मां, पिता और चाचा ने इस सीट पर जीत दर्ज कराई। 1977 में लोकदल और 1998 में बीजेपी को यहां जीत मिली थी ।
बाक़ी अगर सपा-बसपा कि बात कि जाए तो का आज तक यहां सपा-बसपा खाता भी नहीं खुला। आखिर इतनी मजबूत पकड़ के बाद वो कौन सा कारण है जिसकी वजह से राहुल गांधी को अमेठी के साथ केरल की वायनाड सीट का चयन करना पड़ा?
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आईये जानते है कि एक्स्पर्ट ने क्या कहा
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमने अमेठी के राजनीतिक मामलों के जानकार, वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता विवेक विक्रम सिंह से बात किया।इस बातचीत में विवेक विक्रम ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी दक्षिण से दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं।
1999 में जब सोनिया गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी तो उनके सामने अमेठी के नरेश, डा. संजय सिंह बीजेपी से मुकाबले पर थे। जिसके कारण वो खुद बेल्लारी से चुनाव लड़ी।
2014 में स्मृति ईरानी के मैदान में उतरने के बाद राहुल और स्मृति की आमने-सामने कांटे का मुकाबला था। तब ये पहला मौका था जब चुनाव के दिन तक राहुल को बूथ-बूथ घूमना पड़ा था।
इस चुनाव में ईरानी को प्रति विधानसभा 60 हजार वोट मिले थे। विवेक विक्रम सिंह ने कहा कि इसके बाद किसी न किसी बहाने ईरानी अमेठी आती रही हैं ।
उन्होंने यह भी बताया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में अमेठी-रायबरेली की 10 विधानसभा सीटों के लिए प्रियंका गांधी ने 32 नुक्कड़ सभाएं की, इसके बावजूद रायबरेली की 10 में से दो सीट ही कांग्रेस के पाले में आई। अमेठी में तो कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला।
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वायनाड सीट को जीतकर दक्षिण में असर बनाना चाहते हैं राहुल
उन्होंने कहा दरअसल राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं, ऐसे में अगर सिंगल सीट अमेठी से वो चुनाव लड़े और हार गए तो राजनीति ख़त्म होने का खतरा है ।
यही नहीं विवेक विक्रम सिंह ने केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने पर विश्लेषण देते हुए बताया कि इससे आंध्रा, कर्नाटक और तमिल समेत दक्षिण में असर पड़ेगा इसलिए राहुल ने यह क़दम उठाया है।
ये है अमेठी लोकसभा का इतिहास
गौरतलब है कि अमेठी संसदीय सीट के इतिहास से सबसे पहला नाम कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर का जुड़ा है। जिन्होंने यहां से पहला चुनाव जीता था । इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना सीट अस्तित्व में आई, जो फिलहाल अमेठी जिले की तहसील है।
केशकर यहां से भी जीतने में सफल रहे। 1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने, हम आपको बता दें कि रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे। अमेठी लोकसभा सीट 1967 में परिसीमन के बाद, वजूद में आई।
अमेठी से कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी पहले उम्मीदवार थे जिन्होंने जीत पाई और सासंद बने, फिर 1971 में भी उन्होंने जीत दर्ज कराई। इसके बाद 1977 में कांग्रेस ने संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह चुनाव हार गए।
1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी चुनावी मैदान में उतरे। हालांकि 1980 में ही उनका विमान दुर्घटना में निधन हो गया। वर्ष 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए।
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साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, हुए चुनाव में राजीव गांधी एक बार फिर उतरे तो उनके सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ीं।
लेकिन उन्हें महज 50 हजार ही वोट मिल सके, जबकि राजीव गांधी 3 लाख वोटों से जीते।
इसके बाद राजीव गांधी 1989 और 1991 में चुनाव जीते लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई। जिसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे।
इसके बाद 1996 में शर्मा ने जीत हासिल की, लेकिन 1998 में बीजेपी के संजय सिंह के हाथों हार गए।
फिर सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने 1999 में अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया, और वह इस सीट से जीतकर पहली बार संसद भवन पहुंची। 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए ये सीट छोड़ दी, इसके बाद से राहुल ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की।