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'दिल दो दिलरुबा को वोट शम्सुद्दीन को', वो चुनावी जुमला जिसने बदल दिया मिजाज

अपनी नजाकत ऩफासत और अदब के लिए मशहूर लखनऊ चुनाव के दौरान भी अपनी इस खासियत को कभी नहीं भूला। 1951 में विजय लक्ष्मी पंडित के साथ शुरू हुआ सियासी रहनुमाई का काफिला अटल जैसी शख्सियत तक लखनऊ के इस अदब का कायल रहा।

Rishi
Published on: 5 May 2019 9:03 PM IST
दिल दो दिलरुबा को वोट शम्सुद्दीन को, वो चुनावी जुमला जिसने बदल दिया मिजाज
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लखनऊ : अपनी नजाकत ऩफासत और अदब के लिए मशहूर लखनऊ चुनाव के दौरान भी अपनी इस खासियत को कभी नहीं भूला। 1951 में विजय लक्ष्मी पंडित के साथ शुरू हुआ सियासी रहनुमाई का काफिला अटल जैसी शख्सियत तक लखनऊ के इस अदब का कायल रहा।

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मौजूदा लोकसभा चुनाव में हो रही बदजुबानी लखनऊ के बाशिंदों को कभी रास नहीं आयी। लखनऊ में तमाम सिनेमा के कलाकार चुनाव में उतर चुके हैं। लेकिन तारीख गवाह है कि लखनऊ ने कभी भी अपने मिजाज से कोई समझौता नहीं किया। लिहाजा यहां हमेशा संजीदा उम्मीदवार ही सफल होने में कामयाब रहा। ऐसा ही एक मामला था लखनऊ में महापौर के चुनाव का जब लखनऊ के नामी हकीम शम्सुद्दीन के मुकाबिल मशहूर तवायफ दिलरुबा थी। दिलरुबा की अदाओं का इस चुनाव में ये असर हुआ कि हकीम साहब की पेशानी पर बल आ गए। हालात ये बने कि शम्सुद्दीन की जनसभाओं में भीड़ नदारद रहती तो दिलरुबा की सभाओं में भीड़ को सम्हालने के लिए जिला प्रशासन को खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी।

इसी बीच हकीम साहब के किसी खास ने उन्हें एक नारा दिया 'दिल दो दिलरुबा को वोट शम्सुद्दीन को'।

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अदब और तहजीब का जानकार लखनऊ का हर बाशिंदा इस नारे की गहराई समझ गया। मतदान के दिन वोट पड़े और जब नतीजे आए तो जीत हकीम शम्सुद्दीन की हुई। हकीम साहब की इस जीत पर दिलरुबा ने भी अपनी दरियादिली दिखाते हुए खुद आकर हकीम साहब को जीत की मुबारकबाद दी। लेकिन एक शोख़ फ़िक़रा भी कह गई, जो आज भी याद किया जाता है। दिलरुबा हकीम साहब से बोली- बहुत-बहुत मुबारक हो हकीम साहब, आप हो लिए, हम रह गए।

हकीम साहब दिलरुबा की चुहल समझ गए और सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए। बाद में जब हकीम साहब ने अपनी जीत की दावत की तो उसमें दिलरुबा को भी पूरे सम्मान के साथ बुलाया।

दिलरुबा पूरी तैयारी के साथ आई। लेकिन यहां भी एक ऐसी बात कही कि पूरी महफिल उसकी सुख़नसाज़ी की क़ायल हो गई। दावत में अपनी तकरीर में दिलरुबा ने फरमाया- हकीम साहब आपको एक बार फिर मुबारकबाद। मुझे अपने हारने का ग़म नहीं है क्योंकि यक़ीनन आप इस जीत के मुस्तहक़ थे। मगर आपकी जीत से एक बात तो तय हो गई कि लखनऊ में मरीज़ बहुत ज्यादा हैं और मर्द बहुत कम...

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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