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जब तक कोई बुुलेट पास से न हो कर गुजरे, लगता ही नहीं कि आप जंग में है- अर्जन
जब तक कोई बुुलेट आपके पास से न हो कर गुजरे, लगता ही नहीं कि आप जंग में है।'' शुरु- शरु मे मुझे भी ड़र लगता डर लगा था लेकिन धीरे- धीरे वह निकलता गया। 1440 में नार्थ वेस्ट फंटियर
लखनऊ: ''जब तक कोई बुुलेट आपके पास से न हो कर गुजरे, लगता ही नहीं कि आप जंग में है।'' शुरु- शरु मे मुझे भी ड़र लगता डर लगा था लेकिन धीरे- धीरे वह निकलता गया। 1440 में नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस में मेरे विमान को पठानों ने मार गिराया । हमारा विमान दो पहाड़ियों के बीच एक सूखी नदी में जा गिरा, जिसकी चौड़ाई घग्गर नदी जितनी थी। ऐसी धनी सोच के हम सबके एयर मार्शल अर्जन सिंह हम सबके बीच नहीं रहे। उनकी वीरता की कई कहानियां , विभिन्न समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में उनके साक्षात्कार साहस और शौर्य की मिशाल बनें। 16 सितबंर को उन्होने अंतिम सांस ली। 15 अप्रैल 1919 में जन्म लेने वाले अर्जन सिंह मात्र 19 की आयु में 1938 में राॅयल काॅलेज आॅफएयर फोर्स के लिए चुन लिए गए थे। एक अखबार मे दिए गए अपने साक्षात्कार में उनहोने कहा आरएफ में प्रशिक्षण दो वर्ष तक चला। उसी दौरान सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया और उसी साल हमें 'आरएएफ ' मे कमीशन मिल गया।
उन दिनो ब्रिटेन के राॅयल एयर फोर्स से लेकर भारतीय वायु सेना के पास पायलटों की भारी कमी थी। भारतीय वायु सेना के पास उन दिनों केवल अंबाला में सिर्फ एक स्क्वाड्रन हुआ करता था। जनवरी , 1940 में मैने और पटियाला राजघराने के पृथ्वीपाल सिंह ने एक साथ राॅयल इंडियन एयर फोर्स ज्वाइन की। अंबाला में ज्वाइनिंग के बाद मै कराची गया। उसके बाद नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस पहुंच गया। वह मैदानी इलाका नहीं बल्कि गुफाओं और घाटियों से भरा क्षेत्र था।
मुझे 1943 में जापानियों के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए इंफाल भेजा गया। तब तक मै चार रैंक के प्रमोशन के बाद स्क्वाड्रन लीडर बन चुका था। जापानियों ने इंफाल घाटी को चारो ओर से घेर लिया था, और एक मात्र सड़क को अवरुद्ध कर दिया था। ऐसी सूरत में अमेरिकी एयरफोर्स ने हमारी मदद की और सप्लाई जारी रखी । इस जंग ने यह सावित कर दिया कि भारतीय वायु सेना स्थापित वायुसेना से भी लड़ने में सक्षम है।
इस जंग के मुझे विशिष्ट फ्लाइंग क्रास से नवाजा गया। मेरे स्क्वाड्रन को कुल आठ डीएफसी मिले।
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