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lok sabha election 2019:पहले चरण के चुनाव में गठबन्धन को सबसे अधिक उम्मीद
कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है और इस रास्ते के पहले चरण की आठ सीटों के चुनाव में भाजपा को कडी चुनौती सपा बसपा और रालोद गठबन्धन से मिल रही है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है और इस रास्ते के पहले चरण की आठ सीटों के चुनाव में भाजपा को कडी चुनौती सपा बसपा और रालोद गठबन्धन से मिल रही है। सपा को गठबन्धन में एक तरफ किनारे भी कर दिया जाए तो बसपा और रालोद के पुराने किले को फिर से भेदना भाजपा के लिए बेहद चुनौती पूर्ण काम होगा। लेकिन आज भाजपा की जनसभा में योगी आदित्य्नाथ के अली और बजरंग बली के बयां से वोटों का ध्रुवीकरण तय हो
गया है .
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जहां तक पिछले चुनाव यानी 2014 में इस क्षेत्र की सीटोें पर गौर किया जाए तो उस समय कांग्रेस से सत्ता छीनने का लक्ष्य लेकर भाजपा चुनाव मैदान में उतरी थी लेकिन अब वह अपनी उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच है। पिछले चुनाव में सपा बसपा और रालोद के बीच सीटों का तालमेल नहीं था। जिसके कारण भाजपा को पश्चिमी उप्र की 8 सीटों सहारनपुर, कैराना, मुजफफरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, और गौतमबुद्वनगर में सफलता मिली थी।
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परन्तु जब 2017 में भाजपा नेता हुकुम सिंह के निधन के बाद कैराना सीट पर उपचुनाव हुआ तो विपक्ष की साझा महिला उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने यह सीट भाजपा से छीन ली। कैराना सीट पर इस दफे भाजपा ने अपने विधायक प्रदीप चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है जो पूर्व में कांग्रेस से भी विधायक रह चुके हैं। उपचुनावों में तबस्सुम ने स्व हुकुम सिह की बेटी मृगांका सिंह को सिर्फ़ 45 हज़ार वोटों से हराया था। इस सीट पर कांग्रेस के हरेन्द्र मालिक भी उम्मीदवार है।
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गाजियाबाद में भाजपा ने केन्द्र सरकार में मंत्री वीके सिंह के मुकाबले सपा के सुरेश बंसल गठबन्धन के तहत चुनाव मैदान में उतरे हैं। तथा कांग्रेस से महिला उम्मीदवार डोली शर्मा cउम्मीदवार हैं। बिजनौर सीट पर महागठबंधन की ओर से बसपा के मलूक नागर का मुकाबला भाजपा के सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह से है जो पिछली दफे इस सीट से चुनाव जीत चुके है। लेकिन सत्ता में होने का नुकसान उन्हे हो सकता है। जबकि बसपा छोड़कर कांग्रेस में आये नासेमुद्दीन सिद्दीकी यहाँ से चुनाव मैदान में हैं ।
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मुस्लिम वोट कटने से भाजपा इसका लाभ भी उठा सकती है। जहां तक मेरठ सीट की बात है तो यह सीट भाजपा की परम्परागत सीट रही है। बसपा के हाजी मोहम्मद याक़ूब, भाजपा के वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल और कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल चुनाव मैदान में है। 2014 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के मोहम्मद शाहिद अख़लाक को ढाई लाख वोटों से हराया था।
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बागपत सीट पूर्व में राष्ट्रीय लोकदल की परम्परागत सीट रही है लेकिन पिछली दफे मोदी लहर के चलते सत्यपाल सिंह चुनाव जीते थें जो केन्द्र में मंत्री भी है। इस बार उनके मुकाबले आरएलडी की ओर से जयंत चौधरी महागठबंधन के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने उनके खिलाफ़ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. इस कारण मुख्य मुक़ाबला सत्यपाल सिंह और जयंत चौधरी के बीच होने की पूरी संभावना हैं ।
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गौतमबुद्वनगर बसपा नेत्री मायावती का गृह नगर है। इसलिए इस सीट को लेकर वह बेहद गंभीर है। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा को एक बार फिर उम्मीदवार बनाए गए हैं। महागठबंधन की ओर से बसपा के सतबीर नागर का सीधा मुकाबला है। कांग्रेस ने यहाँ डा अरविन्द सिंह चौहान को उतरा है । महेश शर्मा ने 2014 में सपा के नरेंद्र भाटी को तकरीबन दो लाख 80 हज़ार वोटों से हराया था ।
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पश्चिम यूपी में बसपा सुप्रीामों मायावती को इस चरण के चुनाव से बेहद उम्मीदें है। गठबन्धन में बसपा को सहारनपुर बिजनौर मेरठ गौतमबुद्वनगर सीट मिली। सहारनपुर में बसपा ने फजर्रूहमान को फिर से उतारा है। पिछली दफे वह दूसरे नम्बर पर रहे थें। यहां कांग्रेस के इमरान मसूद बेहद अच्छी स्थिति में बताए जा रहे हैं। कांग्रेस और महागठबंधन के उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिसका लाभ भाजपा फिर से उठाने की फिराक में है । 2014 के चुनाव में इमरान मसूद को चार लाख वोट मिले थे जो अब महागठबंधन के साथ बंटेग।
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भाजपा की रणनीति पश्चिमी उप्र में 2014 के चुनाव की तरफ फिर से पूरे क्षेत्र को ध्रुवीकरण करने की है। पार्टी की सबसे बडी चिन्ता अपने तीन मंत्रियों महेश शर्मा सत्यपाल सिंह और वीके सिंह को जिताने की है। जबकि रालोद की रणनीति क्षेत्र में किसानों की समस्याओं और जातीय समीकरण बैठाने की है।
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रालोद अध्यक्ष चौ अजित सिंह पिछले लोकसभा चुनाव मे ध्रुवीकरण के चलते बडा नुकसान उठा चुके हैं जबकि बसपा सुप्रीमों मायावती पश्चिमी उप्र में मुसलमानोें का वोट हासिल करने के प्रयास में है। सहारनपुर में गठबन्धन की साझा रैली में उनके भाषण से काफी कुछ साफ हो चुका है। पहली बार संसद की चौखट से दूर चौ अजित सिंह इसलिए ध्रुवीकरण से बचकर खुदको जाट साबित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।