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Yogesh Mishra Special: इमरान खान का पाकिस्तान
Yogesh Mishra Special : इमरान खान (Imran Khan) नियाज़ी। अपने 70 साल के इतिहास में अर्ध लोकतंत्र और पूर्ण सैन्य शासन के बीच झूलते पाकिस्तान (Pakistan) के होने वाले प्रधानमंत्री। क्रिकेट खेले तब इंतेहा कर दी। पाकिस्तान के लिए विश्वकप जीता। इश्क किया तो पूरी दूनिया में शोर बरपा। इमरान की बायोग्राफी (Imran Khan Biography) लिखने वाले क्रिस्टोफर सैनफोर्ड के मुताबिक लड़कियां उन पर जान छिड़कती थीं। बेनजीर भुट्टो से भी उनके 'अफेयर' थे। जीनत अमान से उनका नाम जुड़ा। जेमिका गोल्ड स्मिथ, रेहम खान और बुशरा मानिका से निकाह किया। स्मिथ ब्रिटिश कारोबारी की लड़की और रेहम टीवी एंकर थी। सियासत में आए तो प्रधानमंत्री बन बैठे। पाकिस्तान के पठान इमरान की इन पारियों से किसे रश्क नहीं हो सकता है। आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से राजनीति और अर्थशास्त्र की तालीम पाये इमरान इसकी व्लूज क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे। काउंटी खेला। सोलह साल की उम्र में फीके प्रदर्शन से अपनी पारी शुरू करने वाले इमरान ने पर्थ में 139.7 किमी. की रफ्तार से गेंद फेंक कर माइकल होर्डिंग, जेफ थांमसन के ठीक पीछे और डेनिस लिली तथा एंडी राॅबट्र्स से आगे आकर खड़े हो गए। क्रिकेट की दुनिया में उनकी पहचान एक तेज गेंदबाज के रूप में हुई।
दो दशक तक क्रिकेट पर राज करने के बाद जब उन्होंने संन्यास लिया तो दुनियाभर से चंदा इक्कट्ठा कर अपनी मां शौकत खानम के नाम कैंसर अस्पताल खोला। पहली बार 1987 में विश्वकप सेमीफाइनल हारने के बाद उन्होंने संन्यास लिया तो पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक ने उन्हें दोबारा खेलने के लिए राजी किया। राजनीति में आने से पहले उन्होंने पाकिस्तान के किसी भी चुनाव में वोट नहीं डाला था। लेकिन महज 22 सालों में पाकिस्तान की राजनीति में भुट्टो और शरीफ परिवार के वर्चस्व को खत्म करते हुए वहां आकर खड़े हो गए जहां न केवल ये परिवार बहुत पीछे छूट गए बल्कि इमरान को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हाथ और साथ मिलने शुरू हो गए। 342 सीटों वाली असेंबली में 60 सीटें महिलाओं और 10 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। केवल 272 सांसद चुनकर आते हैं। इमरान के पास 116 हैं। बहुमत के लिए 172 की संख्या दरकार है। उन्होंने छोटे दलों 23 सासदों का समर्थन है।
पाकिस्तान के इतिहास में यह दूसरा मौका होगा जब कोई निर्वाचित सरकार असैन्य सरकार को सत्ता देगी। इमरान ने 1996 में अपनी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) बनाई। सियासत में आने के बाद उन्होंने मुशर्रफ के सैन्य तख्तापलट का समर्थन किया। मुशर्रफ को अमेरिकी राष्ट्रपति का जूता चाटने वाला कहा। पाकिस्तान में आपात काल लगाने के मुशर्रफ के 3 नवंबर, 2007 के फैसले के लिए इमरान ने उनके मृत्युदंड की मांग की। उन पर आतंकवादी अधिनियम के तहत कार्रवाई हुई। तीन बार नजरबंद रहे। 2002 से 2007 वह नेशनल असेंबली में अपनी पार्टी के एकलौते सांसद थे। इस चुनाव में उनकी पार्टी को केवल 0.8 फीसदी वोट मिले थे। 2008 फरवरी में हुए चुनाव का उनकी पार्टी ने बहिष्कार किया।
एक खिलाड़ी के सियासी शिखर पर पहुंच जाने में जो लोग खेल भावना के मद्देनजर भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर सोच रहे हों उन्हें निराश होना पड़ेगा। क्योंकि पाकिस्तान में इमरान को 'इलेक्टेड' नहीं 'सलेक्टेड' प्रधानमंत्री कहा जा रहा है। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि इमरान के इस सलेक्शन में उनके पीछे मजबूती से सेना खड़ी थी। खुफिया एजेंसी और सेना की भूमिका उम्मीदवारों से सेटिंग कराने में कई जगह उजागर हुई। जब नवाज शरीफ ने भारत के साथ व्यापार बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था तब इमरान ने कहा था कि वह भारत के हाथ पाकिस्तान को बेच रहे हैं। कश्मीर मुद्दा सुलझे बिना भारत के साथ व्यापार नहीं हो सकता। उन्होंने शरीफ को 'मोदी का यार और देश का गद्दार' कहा था। अपने प्रचार में भारत से सीधे टकराने के वायदे किए थे। उन्होंने पाकिस्तान में रक्षा खर्च के बढ़ोत्तरी का समर्थन किया। चीन पर मेहबानी दिखाई। कश्मीर मुद्दे पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए बातचीत से सुलझाने का नाटकीय प्रदर्शन किया। हालांकि भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते को कश्मीर से जोड़कर देखना ही गलत है। एक देश जो गंभीर आर्थिक चुनौतियों से रूबरू हो रहा हो। जहां सत्ता आर्मी और आतंकवादियों की चेरी हो। जहां लोकतंत्र कभी अपनी पूर्णता न प्राप्त कर सका हो। जहां प्रशासनिक सुधार की जरूरत हो। जहां के लोग अमन-चैन चाहते हों। जहां की जनता ने पहली मतर्बा धर्म के राजनीति को शिकस्त दी हो।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में इस बार तहरीक-ए-लब्वैक या रसूल अल्लाह और जमात उद दावा समर्थित अल्लाह हूं अकबर-तहरीक जैसे धार्मिक दलों को शिकस्त दे दी गई हो। लश्कर-ए-तैय्यबा के मुखिया हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग का एक भी उम्मीदवार न जीत पाया हो। मुत्ताहिदा मजलिस ए अमल के चीफ फ़जल उल रहमान की पार्टी हर जगह हार गई हो। वे खुद भी हार गए हों। वहां इमरान खान को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तानी आवाम अब किसी नई डगर पर चलने के लिए उनका इंतजार कर रहा है। पर वे उसी पिटी-पिटाई लीक पर बढ़ते हुए दिख रहे हैं। उन्होंने भारतीय मीडिया को दौर-ए चुनाव बहुत कोसा। लेकिन भारतीय मीडिया ने जो खबरे उठाईं वो पाकिस्तानी मीडिया से ही थी। यह छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में उन्होंने सूचना के मुक्त प्रवाह को रोका। विद्रोही मीडिया पर अंकुश लगाया। भय की संस्कृति फैलाई। टीवी एंकरों को मनचाहे शब्दों की सूची दी गई। डाॅन न्यूज चैनल की कभी आवाज़ गायब हुई और कभी चैनल। किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए मीडिया की स्वतंत्रता जरूरी है। जिसे सेना और आतंकी संगठन भी नहीं चाहेंगे। क्योंकि पाकिस्तान में बहुत कुछ रावलपिंडी के जवान तय करते हैं। इस्लामाबाद के नेता नहीं। शरीफ और जुल्फिकार अली भुट्टो को भी पहले सेना ने ही बढ़ाया था। पाकिस्तान में किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। अगर इनके मद्देनजर इमरान भूतपूर्व की जगह अभूतपूर्व होने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं तो शायद जनादेश का सबसे बड़ा सम्मान होगा। लेकिन इसके लिए इमरान को भी खुद को उसी तरह बदलना होगा जिस तरह उन्होंने उम्र के साथ इश्क, खेल और सियासत में अपनी भूमिकाएं बदलीं। कप्तान के हाथ में सियासी कमान वाले इमरान और पहले के इमरान में जमीन आसमान का अंतर उन्हें करना होगा। यही उनके सफलता का पैमाना और परीक्षण दोनों होगा। क्योंकि पाकिस्तानी आवाम की उम्मीदें बदल गई हैं। उनकी असली अग्नि परीक्षा इसके साथ ही साथ आतंकवाद को लेकर भी होगी। यही उन्हें पूर्व या अभूपूर्व बनाएगा।