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गधों का ऐसा मेला! गजब है भैया, फिल्मी सितारों के नाम पर होती है बिक्री
दरअसल, प्रभु श्रीराम की तपस्थली चित्रकूट में दीवाली पर नरक चौदस से तीन दिन तक मंदाकिनी तट पर गधों का ऐतिहासिक मेला लगता है।
चित्रकूट: आपने अभी तक कई मेले देखें होंगे और सुने भी होंगे लेकिन क्या आपने कभी गधों के मेले के बारे में सुना है। अगर नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं इसके बारे में...
दरअसल, प्रभु श्रीराम की तपस्थली चित्रकूट में दीवाली पर नरक चौदस से तीन दिन तक मंदाकिनी तट पर गधों का ऐतिहासिक मेला लगता है। इस मेले में फिल्मी सितारों व नेताओं के नाम वाले गधे लाखों रुपये में खरीदे-बेचे जाते हैं। कई राज्यों से आए कारोबारी करोड़ों रुपये का कारोबार करते हैं।
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औरंगजेब ने की थी शुरुआत
मुगल शासक औरंगजेब ने चित्रकूट में इस मेले की शुरुआत कराई थी। देशभर में सेना लेकर घूमते समय सैन्य बल के पास घोड़ों की कमी होने पर मेला लगाया गया था। इसमें अफगानिस्तान तक के गधे व खच्चर बिक्री के लिए आए थे। उनको मुगल सेना में शामिल किया गया था। उसके बाद से मेला लगने का क्रम जारी है।
दूरदराज से आते हैं क्रेता-विक्रेता
मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड व नेपाल तक के कारोबारी व खरीदार आते हैं।
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पांच लाख तक लग चुकी बोली
स्थानीय लोगों के मुताबिक गधा मेले में पिछले वर्षों में पांच लाख रुपये तक की बोली में गधे बिक चुके हैं।
फिल्मी सितारों के नाम पर होते हैं गधों के नाम
इस गधा मेला में फिल्मी सितारों के नाम पर गधों का नाम रखकर बिक्री होती है। कुछ नेताओं पर भी नाम रखते हैं। व्यापारियों को रौनक, चांदनी, आरजू, महिमा, पारुल, नगीना व हिना जैसे नाम भी अच्छे लगते हैं। फिल्मी अभिनेत्रियों के नाम वाले गधों की मांग सबसे अधिक रहती है।
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क्यों खरीदते हैं लोग गधे
एक गधा प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार रुपये तक कमाई करता है, जबकि उस पर 250 रुपये खर्च होता है। कारोबारी गधों से संकरी गली में ईंट-मौरंग, गिट्टी और बालू ढोकर पहुंचाने का काम कराते हैं। कुछ अच्छी नस्ल के गधों को तांगा में भी इस्तेमाल किया जाता है।