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खाएंगे चींटी की चटनी: यहां स्वाद लेकर खाई जा रही है, जाने इसके फायदे
जमशेदपुर के यह आदिवासी लोगों को जब पता चलता है कि पेड़ों पर चींटियां आना शुरू हो रही है। फिर गांव के लड़के पेड़ पर चढ़ कर टहनियों को हिलाकर चींटियों को इकट्ठा कर हांड़ी में रख लेते हैं। आपको बता दें कि फिर यहां की महिलाएं सील से इस चटनी को पिसती है।
जमशेदपुर : आपने जिंदगी में कई तरह की चटनी को खाया होगा। जैसे कि इमली की चटनी , टमाटर की चटनी, हरी धनिया की चटनी, लहसुन की चटनी और भी ऐसे ही कई चटनियां है जिन्हें आपने बड़े ही मजे से खाया होगा। आपको बता दें कि आज हम आपको ऐसी चटनी के बारे में बताएंगे ।
जमशेदपुर से 70 किलोमीटर दूर है यह गांव
आपको बता दें कि जमशेदपुर से 70 किलोमीटर दूर का यह मटकुरवा गांव है। जहां आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। आपको बता दें कि इस समाज के लोग अपने पूर्वज के समय से इस चींटी की चटनी का सेवन कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस गांव के लोग घने जंगलों के बीच रहते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि ठंड पड़ते ही यहां के साल और करंज के पेड़ों पर लाल चीटियां अपना घर बना लेती हैं।
इस चटनी में मिलाया जाता है यह चीज
जमशेदपुर के यह आदिवासी लोगों को जब पता चलता है कि पेड़ों पर चींटियां आना शुरू हो रही है। फिर गांव के लड़के पेड़ पर चढ़ कर टहनियों को हिलाकर चींटियों को इकट्ठा कर हांड़ी में रख लेते हैं। आपको बता दें कि फिर यहां की महिलाएं सील से इस चटनी को पिसती है। आपको बता दें कि इस चटनी लहसुन, हरी धनिया, मिर्चा और नमक के साथ पीसा जाता है।
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करीबन 30 मिनट तक पीसी जाती है चटनी
आपको बता दें कि इस चटनी को करीबन 30 मिनट तक पीसा जाता है। आपको बता दें कि यह चटनी साल भर में एक बार ही बनाई जाती है। इसके साथ यहां के लोग साल के पत्ते में इस चटनी को लेकर बांट कर खाते हैं। आपको बता दें कि इस चटनी को यहां के एक साल से बच्चे से लेकर 50 साल की उम्र के लोग तक खाते हैं।
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