×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

दिवाली पर उल्लुओं की बलि देना सही है या गलत, यहां जानें सबकुछ

दीपावली पर्व हर्षोल्लास का त्यौहार है। सनातन परम्परा में इस पर्व का अत्यधिक महत्त्व है। यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ स्वच्छता और पर्यावरण संक्षरण की प्रेरणा देता है।

Aditya Mishra
Published on: 23 Oct 2019 6:01 PM IST
दिवाली पर उल्लुओं की बलि देना सही है या गलत, यहां जानें सबकुछ
X

लखनऊ: दीपावली पर्व हर्षोल्लास का त्यौहार है। सनातन परम्परा में इस पर्व का अत्यधिक महत्त्व है। यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ स्वच्छता और पर्यावरण संक्षरण की प्रेरणा देता है।

यहीं एक दूसरा पहलू भी है। हर्षोल्लास के इस पर्व को अन्धविश्वास के नजरिये से देखने वाले लोगों के कृत्य प्रकृति पर भारी पड़ते हैं।

दीवाली पर प्रकृति का विशिष्ट जंतु उल्लू ऐसे अंधविश्वासियों के निशाने पर आ जाता है। हर दीवाली की तरह इस दीवाली पर भी दुर्लभ वन्य प्राणी उल्लू के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है।

ये भी पढ़ें...दिवाली पर योगी सरकार का बड़ा फैसला, सिर्फ दो घंटे शाम 8 से 10 बजे तक ही जला सकेंगे पटाखे

वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला बताते है कि लखनऊ तथा इसके सीमावर्ती जिलों में पक्षी तस्करों के द्वारा इनकी अवैध खरीद-फरोख्त अपने चरम पर है। इस समय पक्षी बाजार में एक उल्लू की कीमत रु. 8000 से लेकर कुछ विशेष प्रजाति वाले उल्लू को रु.45000 तक में बेचा जा रहा है।

उल्लू का यह बाज़ारीकरण वन्यजन्तु संरक्षण की अवधारणा को आहत करता है। यह महज़ लोगों के अन्धविश्वास की वजह से ही है। कुछ तांत्रिकों द्वारा यह बताया जाता है कि दीपावली में महानिशीथकाल में अर्धरात्रि के समय उल्लू की बलि देने से लक्ष्मी जी की कृपा होती है तथा अन्य तांत्रिक शक्तियां जागृत होती हैं।

इसी अंधविश्वास की वज़ह से इन निरीह पक्षियों के अस्तित्व खतरे में है। देखा जाये तो इधर दीपावली में राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में उल्लुओं की मांग बहुत बढ़ गई है। पक्षियों का व्यापार करने वाले सक्रिय हैं। इसके लिए वह तंत्र क्रिया करने वाले से एडवांस पैसे ले रहे हैं।

दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वह उल्लुओं की बलि देते हैं। वन अधिनियम के तहत उल्लुओं का शिकार करना दंडनीय अपराध है।

ये भी पढ़ें...दिवाली पर जाए इन जगहों पर, बनाए उन पलों को यादगार, भक्ति के साथ आएगी घर वाली फीलिंग

भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत उल्लू संरक्षित पक्षियों की श्रेणी में आते हैं और उसे पकड़ने, बेचने, मारने पर कम से कम 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है। लेकिन कथित पढ़ा-लिखा और जागरूक समाज स्वार्थ और अन्धविश्वास में इस कदर डूबा है कि वह इस निरीह पक्षी की जान लेने से भी नहीं हिचकता है।

दीपावली के वक्त उल्लू की कीमत 20 गुना बढ़ जाती है। उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसका दाम तय किया जाता है। लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 15 हजार रुपए से अधिक होता है।

दीपावली में उल्लू की मांग को देखते हुए शिकारी और पक्षी विक्रेता इसके लिए एडवांस पैसे लेते हैं। पेड़ों के ऊंचे स्थान, पठार के खोडर में उल्लू अपना निवास बनाते हैं। वहां से ये शिकारी इन्हें पकड़ कर लेट हैं तथा इनका अवैध व्यापार और तस्करी करते हैं।

उल्लू विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित हैं।

इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है। पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं। कई संस्कृतियों में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन साथ ही संपन्नता और बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।

यूनानी मान्यताओं में उल्लू का संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है और जापान में भी इसे देवताओं का संदेशवाहक समझा जाता है।

भारत की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं। तांत्रिकों का मानना है कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है।

प्रायः उल्लुओं में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि वह तोता की भांति इंसानी भाषा में बात कर सकता है। इसके लिए तांत्रिक उल्लुओं के सामने नाम या कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं। तांत्रिक अनुष्ठान में इसके अस्थि, मंजा, पंख, आंख, रक्त से पूजा की जाती है।

अन्धविश्वास है कि इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में अन्धविश्वास है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है। तांत्रिक इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करते हैं।

लोगों की यह भी सोच है कि चोंच इंसान की मारण क्रिया में काम आती है। वशीकरण, मारण, उच्चारण, सम्मोहन इत्यादि साधनाओं की सफलता के लिए उल्लुओं की बलि दी जाती है।

उल्लू लक्ष्मी की सवारी है, इसलिए लोग लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू की पूजा करते हैं। तंत्र शक्ति बढ़ाने के लिए उल्लुओं की बलि दी जाती हैं। इसके सभी अंगों को विशेष तरीके से पूजा जाता है।

उल्लू के मांस का प्रयोग यौनवर्धक दवाओं में किया जाता है। इसके बारे में यह भी मानना है कि यदि इसे हम किसी प्रकार का कंकड़ मारें और यह अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाए और किसी नदी अथवा तालाब में डाल दे तो जिस प्रकार से वह कंकड़ घुलेगा उसी प्रकार कंकड़ मारने वाले का शरीर भी घुलने लगता है। इस मान्यता के बाबजूद उल्लुओं का शिकार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

उल्लू पकड़ने के लिए बांसपोल और तरह-तरह की जालियों का इस्तेमाल किया जाता है। आग जलाकर पेड़ों में छिपे उल्लुओं को निकाला जाता है। उनके बाहर निकलते ही शिकारी जाल फैलाकर उनको फंसा लेते हैं। इसके बाद इनकी तस्करी कर इन्हें तांत्रिकों और इनसे सम्बंधित अवैध कार्यों में लिप्त लोगों को बेच दिया जाता है।

इस तरह यह लुप्तप्राय जीव विलुप्त होने कि कगार पर है। आवश्यकता है कि इनके संरक्षण के लिए तात्कालिक और प्रभावी कदम उठाये जाएँ।

ये भी पढ़ें...दिवाली पर दिए की रोशनी केवल भारत में नहीं, इन देशों में भी फैलती है, जानिए कैसे?



\
Aditya Mishra

Aditya Mishra

Next Story