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आगे आने का वक्त
तुम यह सोचो कि तुम लोगों के लिए क्या कर रहे हो। यह नहीं कि लोग तुम्हारे लिए क्या कर रहे हैं अगर इस फलसफे पर हम आगे बढ़ें तो निसंदेह कोरोना की समस्या और आने वाले दिनों में इससे उत्पन्न होने वाली तमाम दिक्कतों से पार पाना मुश्किल नहीं होगा।
योगेश मिश्र
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने पहले भाषण में कहा था, “अमेरिकावासियों तुम यह मत सोचो कि अमेरिका तुम्हारे लिए क्या कर रहा है, बल्कि तुम यह सोचो कि तुम अमेरिका के लिए क्या कर रहे हो।”अगर कोरोना के दौर और इससे पहले के तमाम कालखंडों में भारतवासियों के फर्ज, कर्तव्यों को इस कसौटी पर कस दिया जाए तो साफ लग जाएगा कि हमारे लिए लिंकन के कहे का कोई अर्थ नहीं है, लिंकन का कहा व्यर्थ है। हम तो इस सिद्धांत पर विश्वास करते हैं कि देश ने हमें क्या दिया जितना दिया उतना ही पाने का हकदार है। उतना भी देने वाले बिरले हैं।
वैश्वीकरण ने हमें भले ही दुनिया से कनेक्ट न किया हो, लेकिन हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक सोच को भौतिकवाद में बदल कर रख दिया है। इसलिए जिस देश में हर छोटे-बड़े आदमी के सामने एक पेड़ लगाने या बाग लगाने का लक्ष्य होता था। तालाब या कुएं खोदने का काम होता था, जहां यह देखना होता था कि आसपास का कोई आदमी भूखे पेट ने सोने पाए, जहां शिक्षा और भिक्षा दोनों का दान महान माना जाता था, वहां आप बेल्ट लगाकर चलिए, हेलमेट लगाकर चलिए, गुटखा खाने से कैंसर होता है और कोरोना के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए सरकार को प्रचार पर पैसा खर्च करना पड़ता है।
सरकार के सामने एक ओर लोगों को दो जून की रोटी मुहैया कराने की चुनौती है दूसरी ओर लोगों को चिकित्सकीय सुविधाएं देने का गुरुतर दायित्व है। इन सब के लिए पैसे की जरूरत होती है। इस की जगह खुद समाज को बचाए और बनाए रखने के लिए सरकार को कानून बनाना पड़ता है। हर कानून का पालन कराने के लिए दूसरा कानून बनाना पड़ता है।
प्रतिदान में पीछे क्यों
सरकार के चार स्तंभ माने जाते हैं। अगर ये चार स्तंभ एक दूसरे के बारे में जिस तरह की टिप्पणी करते हैं और इन चारों स्तंभों के बारे में जिस तरह जनतंत्र और गुणतंत्र अपनी टिप्पणी करता है। उस सब पर गंभीरता से विचार किया जाए तो यही तथ्य हाथ लगता है कि देश हमें जितना देता है तो उसकी तुलना में तो छोड़िए देश को प्रतिदान देना ही हम भूल जाते हैं।
ये भी तय करना होगा
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने जब दुनिया के सभी लोगों की पेशानी पर बल डाल रखा हो, तब हम मस्जिद में मौत होने को धर्म बता रहे हों, कोरोना पीड़ित लोग आगे बढ़कर अपनी जांच कराने से कतरा रहे हों। यह तय करने में हम समय गंवा रहे हैं कि देश संविधान से चलेगा या फतवों से।
हाथ पे हाथ धरे बैठने का वक्त नहीं
सरकार कोरोना के कालखंड के लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद के लिए कोशिश कर रही है, हाथ बढ़ा रही है, आगे आ रही है। लेकिन इतनी बड़ी आपदा से सिर्फ सरकार के बूते निपटना बेमानी कहा जाएगा, इसके लिए हर आदमी जो जहां है, उसे वहीं अपनी भूमिका का ठीक से निर्वहन करना होगा। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में अगर दो चार दस लोग ऐसा कर ही रहे हों तो इतराने वाली बात नहीं हो सकती है।
उद्योग की बदल गई धारा
दुनिया के जिन नामचीन कारखानों में महंगे फैशन आइटम्स बनते थे, आज वह फेस मास्क, बॉडी सूट, सेनिटाइजर और वेंटिलेटर बना रहे हैं। इटली के टॉप फैशन ब्रांड अरमानी ने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में लगे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सिंगल यूज बॉडी सूट बनाना शुरू कर दिया। स्पोर्ट्स कार बनाने वाली कंपनी फेरारी वेंटिलेटर बना रही है। कार कंपनी फिएट क्रिसलर जीवन रक्षक उपकरण बना रही है। गहने घड़ियां परफ्यूम और चमड़े का आइटम बनाने के लिए मशहूर रोम की बुल्गारी कंपनी हैंड सेनिटाइजर बना रही है।
जीवन रक्षा उपकरणों पर फोकस
विश्वविख्यात फैशन ब्रांड गुच्ची के कारखानों में मेडिकल बॉडी सूट और फेस मास्क का निर्माण किया जा रहा है। एक दूसरा फैशन ब्रांड प्रादा भी इसी काम में जुट गया है। फ्रांस का फैशन क्रिश्चियन डायर उन श्रमिकों के लिए मुफ्त में फेसमास्क का उत्पादन कर रहा है जिनका काम महामारी के बावजूद जारी है। अमेरिका के अंडरवियर ब्रांड जॉकी, फैशन ब्रांड ब्रुकब्रदर्स भी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण पीपीई बनाकर दान कर रहे हैं।
ब्रिटिश कंपनी बरवेरी सर्जिकल मास्क की आपूर्ति करने में जुट गई है लॉरियल ब्रांड समूह ने हैंड सेनिटाइजर और हाइड्रोलॉसिकल जेल का उत्पादन शुरू किया है। जर्मनी की कार बनाने वाली कंपनी वोक्स वैगन, अमेरिका की इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेक्सला, अमेरिका की ही कंपनी फोर्ड और जनरल मोटर्स के प्लांट में स्वचालित वेंटिलेटर का उत्पादन तेजी से किया जा रहा है।
निरंतर प्रगति पर आगे
मानव ने अपने विकास पथ में हिमयुग को पार किया। अपने से बड़े जानवरों पर विजय पाई। जानलेवा टाइफस, प्लेग, टीबी, चेचक, हैजा जैसी महामारियों पर नियंत्रण कर लिया। वह भी तब जबकि अपने जानलेवा दुश्मन वायरस को पहली बार 1935 में देख पाने में कामयाब हुआ। 1955 तक इसकी पूरी संरचना जान पाया।
वर्ष 2003 में जब सार्स वायरस फैला था तब 30 महीने लगे थे इसकी दवा तैयार करने में लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के डेढ़ महीने के अंदर ही उसका पूरा जीनोम यानी संरचना दुनिया के वैज्ञानिकों ने खोल कर रख दी। अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था वार्डा ने सनोफी और जानसन और जानसन के साथ वैक्सीन बनाने की दिशा में काफी आगे निकल गई है।
इस फलसफे पर आगे बढ़ने की दरकार
मोडड़ा नामक कंपनी ने आरएनए का उपयोग करके पहली वैक्सीन कोरोना मिलने के महज 42 दिन बाद तैयार कर ली थी। यह सब महज इसलिए इतना आसान होता जा रहा है क्योंकि जो लोग इसमें लगे हुए हैं वह मानते हैं और इसबात में यकीन करते हैं कि तुम यह सोचो कि तुम लोगों के लिए क्या कर रहे हो। यह नहीं कि लोग तुम्हारे लिए क्या कर रहे हैं अगर इस फलसफे पर हम आगे बढ़ें तो निसंदेह कोरोना की समस्या और आने वाले दिनों में इससे उत्पन्न होने वाली तमाम दिक्कतों से पार पाना मुश्किल नहीं होगा।