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इकतीस दिसंबर 2022 की ठंडी रात
Poetry on 31 December 2022: देश के आजकल के नौजवानों के व्यवहार के ऊपर लिखी गई राणा प्रताप सिंह की ये कविता नए साल के आखिरी दिन में हुई दर्दनाक घटना को वर्णित करती है।
Poetry on 31 December 2022: देश के आजकल के नौजवानों के व्यवहार के ऊपर लिखी गई राणा प्रताप सिंह की ये कविता नए साल के आखिरी दिन में हुई दर्दनाक घटना को वर्णित करती है। दिल्ली की सड़कों पर साल के आखिरी दिन चार अमीर उदण्ड नशेबाज लड़कों की करतूत बड़ी शर्मनाक रही।
कल रात से
ठंढ बहुत बढ़ गयी है
हमारे इलाके में
बुजुर्गो की बढ़ गयी है कंपकपी
बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए
कपड़े ढूढ़ - ढूढ़ थक जाती कई माएं
जवानों का जोश खूब उछाल ले रहा है
कहीं दौर चल रहे कहीं नाच - गाने
धुंध में टकरा रहीं हैं गाड़ियां
मार -पीट कर रहे हैं कई जवान लड़के
जोश और नशे में उदंड होकर
खबर आ रही है कि
कल दिल्ली की एक सर्द सड़क पर
काम से वापस स्कूटी से लौट रही किसी कामगार लड़की को
चार अमीर उदण्ड नशेबाज लड़कों ने
दस किलोमीटर तक कार से घसीट कर मार डाला
पूरी अमीर दुनिया में रात भर शोर मचा रहा
कि आधी रात के बाद नया वर्ष आएगा
टीवी, अखबार, ज्योतिषी और ढेर से सयाने लोग
गए साल और आने वाले साल का
बड़े जोश से कर रहे हैं हिसाब किताब
बहस चल रही है जोर -शोर से
कि कौन -कौन बड़े लोग
चला रहे हैं दुनिया की गाड़ी
अपने हिसाब से कौन -कौन किस पर है भारी
कई शामों से बात हो रही है
युद्ध , व्यापार , बाजार , राजनीति
बाढ़ , सुखाड़ , उजाड़ , बीमारी
गर्मी , ठंढ , प्रदूषण , परम्पराओं
हिंसा और तानाशाही की
कि कैसे उग रहे और मुरझा रहें हैं
आजादी और जिम्मेदारी वाले लोकतंत्र
देशों , विचारों , गुटों और व्यवस्थाओं के बीच
कि भेद मिट रहे हैं अनेक वैचारिक परम्पराओं के
सत्ता पाने और बनाये रखने का शास्त्र
सबको सिखाता है एक ही सिद्धांत
हर क्षण , हर दिन , हर माह, साल दर साल
पृथ्वी को उपभोग के सामानों
और कचरे के ठिकानों में तब्दील करने की
मची हुई है होड़
कि कमाना है खूब पैसा
सारी दुनिया को बनाना होगा कारखाना
गरीबी मिटाने के लिए
कि सामान जरूरी हैं
सामानों के लिए जरूरी हैं कारखाने
कारखानों के लिए कच्चा माल है प्रकृति
सामानों के साथ बनता रहता कचरा
जिसे खपाने के लिए नदियों में पानी है
जमीन में मिट्टी , उपर हवा
और बीच में हमारी देह
रोज उगता है सूरज , खिलते हैं फूल
रौशनी से उजागर होती दुनिया
रोज आता है एक नया साल
फिर साल के बाद ही आएगा
आज का दिन उसी देश काल में
उसी मौसम और माहौल में
एक बार फिर थोड़े बदलावों के साथ
तब भी सबका अपना -अपना साल है
अपनी -अपनी दुनिया
अपनी -अपनी ठंढ है
अपनी -अपनी गर्मी
अपना -अपना इकतीस दिसंबर है
और अपना -अपना नया साल
हर साल की तरह इस बार भी
कोई नाच रहा है
कोई मना रहा है मातम
कोई पानी पी रहा है
कोई ठंढ
कोई शराब
कोई भर रहा है जहर का घूँट
कोई उछाह में है
कोई संताप में
सबको इंतजार है कल की सुबह का
अनेक संदेशों , संदेहों और उमीदों के साथ