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गणतंत्र पर, कहीं गम तो कहीं खुशी !!

K Vikram Rao: नवनिर्मित राजपथ पर आज की सैन्य परेड से हमारे परिवार की शौर्य गाथा में नया अध्याय जुड़ा है। नूतन आयाम भी। अंग्रेजों को भारत से भगाने 1942 और आपातकाल 1976 के विरुद्ध जनसंघर्षों में महत्वपूर्ण किरदारी हमारे कुटुंब की तो थी ही। मगर नये भारत में अग्रणी भूमिका आज दर्ज हो गई।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Deepak Kumar
Published on: 26 Jan 2022 1:02 PM GMT
republic day history opinion of k Vikram Rao
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गणतंत्र पर, कहीं गम तो कहीं खुशी !!

K Vikram Rao: नवनिर्मित राजपथ (सेन्ट्रल विस्ता) पर आज (73 गणतंत्र दिवस) की सैन्य परेड से हमारे परिवार की शौर्य गाथा में नया अध्याय जुड़ा है। नूतन आयाम भी। अंग्रेजों को भारत से भगाने (1942) तथा आपातकाल (1976) के विरुद्ध जनसंघर्षों में महत्वपूर्ण किरदारी हमारे कुटुंब की तो थी ही। मगर नये भारत में अग्रणी भूमिका आज दर्ज हो गयी। हालांकि पीढ़ियों के लक्ष्यों में गहरा अंतर दिखा। आज इंडिया गेट के ऊपर के नभ में उड़ते पर पांच बमवर्षकों वाले समूह का नाम था ''एकलव्य'' (चित्र संलग्न) इसमें मेरी पत्नी (डॉ. के.सुधा राव) का सगा भतीजा (सी—2444, इंदिरा नगर का वासी) अनंत राव का इकलौता पुत्र, विंग कमांडर कडुवेटि वेंकट कार्तिकेय राव भारत की आक्रामक ताकत को दर्शाता रहा। उसके करतब को निहारनेवाले करोड़ों भारतीयों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं रक्षामंत्री रहे। स्वाभाविक है कि मेरे साले और सलहज मुदित हुए।

फिर मेरी सगी बड़ी चि​कित्सका बहन स्व. बसंता राव का नाती, कामाडोर (ब्रिगेडियर) तुम्मलपल्ली वेंकट सुनील, जो दिल्ली स्थित नौसेना कार्यालय में हैं, को विशिष्ट सेना पदक (वीएसएम) मिला। उसके पिता कर्नल शंकर तथा मां (मेरी भांजी) कस्तूरी का वह ज्येष्ठ पुत्र है। कैसा संयोग है कि कस्तूरी का नाम बापू ने सेवाग्राम (1946) में रखा था, बा के नाम पर। पूरा इतिहास चक्र ही धूम गया, लेकिन इसके साथ तनिक क्लेशदायक, बल्कि त्रासद अनुभूतिपूर्ण स्मृति भी मेरी रही। मेरे ममेरे अग्रज रहे स्व. जनरल केवी कृष्ण राव (बोरिंग रोड, पटनावासी)। वे भारत के चौदहवें सेनापति (1 जून 1981) थे।

बांग्ला मुक्ति वाहिनी (bangla mukti vahini) (1971) की मदद में तैनात थे। वे कश्मीर के राज्यपाल (1983-89) रहे। मगर दुखद था कि उनके हम खास प्रशंसक नहीं बन पाये। उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती किया गया था, 9 अगस्त 1942 को, जब मेरे पिता (संपादक के. रामा राव) लखनऊ जेल में कैद थे। मेरे जीजा जी थे ब्रिटिश रायल एयर फोर्स के पाइलट स्व. बोडिनेनी वेंकट रामचन्द्र राव (नेल्लूर) जिन्हें परतंत्र भारत में विशिष्ट प्लाइंग पदक मिला था। वे प्रयागराज के निकट दुर्घटना में दिवंगत हो गये। उनके श्वसुर, मेरे ताऊ कोटमराजू पुन्नय्या कराची के अंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक ''सिंध आब्जर्वर'' के संस्थापक संपादक रहें। अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन (AINEC) के वे संस्थापक सदस्य थे। पाकिस्तान छोड़कर बम्बई आये। हृदय रोग से पीड़ित थे। विभाजन की वेदना से निधन हो गया। अर्थात 73वां गणतंत्र दिवस मेरे समस्त परिवार के लिये यादों की पीड़ा तथा वर्तमान का आह्लाद लेकर आया है। परिस्थितियां जीवन धारा कैसे मोड़ देती है?

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Deepak Kumar

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