×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

K Vikram Rao: एक मोहक फिल्मी अंदाज ! आशा पारेख का !!

K Vikram Rao: अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में तीन दिनों तक पदमश्री तथा फाल्के एवार्ड से पुरस्कृत आशा पारेख छायी रहीं।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 29 Nov 2022 6:59 PM IST
K Vikram Rao
X

एक मोहक फिल्मी अंदाज ! आशा पारेख का !!

K Vikram Rao: अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव, कल (28 नवंबर 2022) पणजी-गोवा, में तीन दिनों तक पदमश्री तथा फाल्के एवार्ड से पुरस्कृत आशा पारेख छायी रहीं। उनकी चर्चित फिल्में खूब दिखीं, पसंद की गयीं। मगर यह समारोह विवाद से घिर गया। ज्यूरी के एक इजराइली सदस्य नादव लेपिड ने चर्चित फिल्म "कश्मीरी फाइल्स" की आलोचना कर दी। उनकी राय में यह प्रचारात्मक थी, न कि कलात्मक। भले ही यह उनकी निजी राय थी, पर खटपट सर्जा ही ! आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि एक यहूदी कश्मीरी हिंदुओं से हमदर्दी के बजाएं उन पर घोर अत्याचार करने वाले मुस्लिम आतंकियों के साथ रहें। मानव इतिहास में एक मात्र नस्ल अगर कोई है, जो क्रूरत्तम जुल्मों का शिकार रही, वह यहूदी हैं। रोमन सम्राटों से लेकर एडोल्फ हिटलर तक।

इस्लामियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आज भी अरब मुसलमानों के हमलों को उनका स्वदेश इजराइल भुगत रहा है। इसीलिए लेपिड द्वारा अचानक की गई हरकत परेशानी का सबब बनी। दिल्ली में इजरायली राजदूत नादूर गिलोन ने अपने हमवतनी फिल्म निर्माता को भारत की मेजबानी का अपमान करने का दोषी कहा। वे बोले कि : "सस्ते प्रचार हेतु लेपिड ऐसी हरकत कर रहे हैं। उन्होंने भारत-इजराइल संबोधनों को क्षति पहुंचाने का काम किया है।" खैर यह क्षेपक ही कहलायेगा। यहाँ मेरा विषय है। अस्सी-वर्षीया : आशा पारेख जो कभी बंबईया मुहावरे में : "राष्ट्र के युवजनों की धड़कन होती थीं।"

केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड की थीं अध्यक्षा

उन्हें लोग याद रखते हैं खासकर जब वे केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्षा थीं, (1998-2001)। तब फिल्मों में शील और संतुलन को संजोने का उन्होने भरपूर प्रयास किया था। कतिपय फिल्मों को परिमार्जित कराया। कुछ को खारिज भी। उनका आग्रह रहा कि पाश्चात्य परिधानों का उपयोग कम हो। हालांकि वे विवादों से बची रही जो उनके बाद हुई (द्वितीय महिला अध्यक्षा) शर्मीला टैगोर के साथ हुईं। एक फिल्म में शर्मीला ने "मोची" शब्द को पारित कर दिया। तो दलित आयोग ने उन्हें लिखित माफी मांगने का निर्देश दिया था। शर्मीला पटौदी के नवाब मंसूर अली की पत्नी रहीं। उनके पोते (बहू करीना कपूर के पुत्र) का नाम तैमूर रखा गया। विवाद उठना स्वाभाविक था। इन सब से आशा पारेख बहुत ही दूर रहीं।

17 वर्ष की आशा की आई पहली वयस्क फिल्म

तब (1959) आशा केवल 17 वर्ष की थीं। उनकी पहली वयस्क फिल्म आई। नायक थे उछल-कूद के लिए मशहूर शम्मी कपूर (सांसद और अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के पुत्र)। उनकी उम्र थी उन्तीस वर्ष। करीब बारह साल का फासला रहा हीरो हीरोइन में। इसीलिए वे एक दूसरे को "चाचा-भतीजी" कह कर पुकारते थे। उनकी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ रही थी। खूब कमाई हुई। रातों रात आशा पारेख "हिट" हो गई। नासिर हुसैन द्वारा निर्देशित यह फिल्म लखनऊ के प्रमुख हाल "प्रिंस" (अब साहू), हजरतगंज, में लगी थी। अपने स्नातक क्लास से भागकर हम कई छात्र सीधे आशा पारेख-शम्मी कपूर को देखने चले, पर्दे पर। उस दौर में वयस्क होने पर भी हमें लिहाज और तमीज का पूरा ख्याल रखना पड़ता था। मध्यम-वर्गीय नैतिकता का तकाजा जो था। बड़ों ने पूछा : "कहां गए थे ?" हमारा नपातुला उत्तर था : "डीडीके देखने।" अगले प्रश्न के जवाब में : "फिल्म का नाम ही डीडीके था।" सच भी था, पर पूर्ण सत्य नहीं। कुछ महाभारत के "अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरोवा" वाली हालत थी। वही जो धर्मराज ने द्रोणाचार्य से कहा था। पर बाद में बताना पड़ा की डीडीके संक्षिप्तीकृत नाम है : "दिल देके देखो" फिल्म का। कितना अंतर अब आ गया आज, तब (1959) से ? आज दिल क्या हुआ ? मानो तोल मोल के भाव वाला हो।

आशा पारेख के लिए ये रहा गौरव का विषय

आशा पारेख के लिए गौरव का विषय है कि उन्हें दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड हेतु नामित करने वाली चयन समिति (भारत सरकार) के सदस्य रहें : आशा भोंसले, हेमा मालिनी और उदित नारायण। सभी नामी-गिरामी लोग। आजीवन अकेली रहने वाली (अविवाहिता) आशा गुजराती जैन प्राणलाल पारीख तथा उनकी ड्रेसमेकर मुसलमान पत्नी की संतान हैं। अतः धर्म पर उनके ख्याल बड़े तर्क-सम्मत हैं। अपनी आत्मकथा में उन्होंने स्पष्ट किया कि "अपने से सोलह वर्ष बड़े फिल्म निर्माता नासिर हुसैन को पति के रूप में वे चाहती थी। वह आमिर के चाचा थे।" उन्होंने फिल्म "डीडीके" में आशा को प्रस्तुत किया था। आज भी आशा बहुत सक्रिय हैं। वे मुंबई में एक नृत्य अकादमी का संचालन करती हैं। पारंपरिक नृत्य सिखाती है। भारतीय सिनेमा आर्टिस्ट एसोसिएशन (ट्रेड यूनियन) की अध्यक्षा के नाते उन्होंने वंचित कर्मियों की मदद की। क्या आह्लाद हुआ जब 25 वर्ष के रिपोर्टर के नाते टाइम्स प्रकाशन, "फिल्मफेयर" के लिए इस हसीन अदाकारा मैंने इंटरव्यू किया था।

आशा ने सदैव दिलीप कुमार को किया नापसंद

एक खास बात। हर नई नवेली अभिनेत्री युसूफ खान (दिलीप कुमार) के साथ काम करने की इच्छुक होती है। पर आशा ने सदैव दिलीप कुमार को नापसंद किया। अस्वीकार किया। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में गौरांग महाप्रभु चैतन्य भगवान नामक फिल्म में काम किया था। तभी से आचरण संबंधी कुछ नियम रहे थे। लगातार पालन करती रहीं। कुल 90 फिल्मों में कार्य कर चुकी, आशा ने टीवी के लिए कई सीरियलों का निर्माण भी किया है, जिनमे हैं : 'पलाश के फूल', 'कॉमेडी सीरियल "दाल में काला" और इसके साथ ही 'बाजें पायल', 'कोरा कागज इत्यादि। क्या विडंबना है, अथवा विद्रूप ! आशा पारेख ने मशहूर गुजराती फिल्म "अखंड सौभाग्यवती" में बड़े मन से काम किया। पर असली जीवन में सप्तपदी पर कभी न चल पायीं।



\
Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story