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आत्मनिर्भरता का एक रास्ता

जो पैसा हमारे देश से बाहर जा रहा है वह ब्लैक मनी और ब्लाक मनी दोनों के संयुक्त दुष्प्रभाव को जनता है। लिहाज़ा इससे बचने की ज़रूरत है। सस्ता है, पैकेजिंग आकर्षक है, फ़िनिशिंग सुंदर है, उस व्यामोह से तब ज़्यादा बचने की ज़रूरत है जब हम आत्म निर्भरता की ओर बढ़ने की प्रतिबद्धता जता चुके हों।

राम केवी
Published on: 26 May 2020 11:11 AM GMT
आत्मनिर्भरता का एक रास्ता
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योगेश मिश्र

जब कभी हम, हमारा समाज, हमारा देश और मानवता किसी तरह के हल्के या गंभीर संकट में हों तो निकलने या उबरने का केवल एक ही रास्ता होता है। तभी तो हमारे शास्त्रों में कहा गया है- एष: पंथा:। वह रास्ता कौन सा है? यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मई महीने के राष्ट्र के नाम संबोधन में कही। बताया आत्म निर्भरता का रास्ता।

संकट से विराट संकल्प

एक वायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। करोड़ों जिंदगियां संकट का सामना कर रही हैं। दुनिया, जिंदगी बचाने की जंग में जुटी है। मानव जाति के लिए यह अकल्पनीय है। लेकिन थकना, हारना, टूटना-बिखरना, मानव को मंजूर नहीं है। क्योंकि हमेशा उसका संकल्प संकट से विराट होता है।

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने आत्म निर्भरता को स्वावलंबन से जोड़ा है। वह मानते हैं आत्म निर्भरता में परस्पर अनुकूलता होनी चाहिए । जब हम एक दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम होते हैं तो सामर्थ्य नाच उठता है। परस्पर अनुकूलता सुख का आधार है।

परस्पर अनुकूलता का दर्शन

यह व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि सबके बीच होनी चाहिए । स्वावलंबन का सीधा रिश्ता स्वदेशी से है। स्वावलंबन का यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि व्यक्ति आदान प्रदान नहीं करता। पर वह लेने और देने दोनों स्थितियों में समानता का भाव चाहता है। कृपा का भाव नहीं होता।

आज हम जिन हालातों से गुजर रहे हैं।उसमें हमारी ही नहीं दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत निगेटिव अनुमान लगाये जा रहे हैं। भारत इसी दुनिया का एक अंग है। ऐसे में हमारी अर्थव्यवस्था के बारे में भी कई अनुमान निराश करने वाले हैं।

क्या कहते हैं अनुमान

बैंक ऑफ अमेरिका सेक्यूरिटीज़ के मुताबिक़ 2021 में जीडीपी विकास दर 3 फीसदी से भी कम होगी। मूडीज़ का मानना है कि 2020 में जीडीपी विकास दर 0.2 फीसदी है लेकिन 2021 में 6.2 फीसदी हो सकती है। आईसीआरए तो माइनस 5 फीसदी विकास दर का अनुमान लगा रहा है।

एस एंड पी का मानना है कि 2020 में विकास दर 5.2 फीसदी रहेगी। गोल्डमैन साक्स के मुताबिक़ जीडीपी विकास दर माइनस 5 फीसदी रहेगी। फित्च भी 2020-21 में 0.8 फीसदी ग्रोथ रेट की बात करती है। जबकि रिजर्व बैंक के गवर्नर मानते हैं कि 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ निगेटिव में रह सकती है।

बहुगुणित हो सकता है पैकेज

यह सब अनुमान है। जो हालात हैं उनके आधार पर तैयार किये गये हैं । हालात यही रहेंगे, हालात हाल फ़िलहाल सुधरने वाले नहीं, यह मान कर चला जा रहा है। परंतु नरेंद्र मोदी सरकार ने २० लाख करोड़ का पैकेज जो दिया है।

पैकेज का भी प्रभाव होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि दुनिया के तक़रीबन सभी देशों ने कोविड के चलते औंधें मुँह गिर चुकी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पैकेज दिया है।

इससे सीधा सा यह संदेश तो जुटाया ही जा सकता है कि पैकेज अपना काम तो करेगा ही।आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और स्वदेशी के मूल मंत्र पैकेज के प्रभाव को बहुगुणित कर सकते हैं।

स्वदेशी की भागीदारी कितनी

आँकड़े बताते हैं कि 2.5 लाख करोड़ के एफएमसीजी बाजार में स्वदेशी की भागीदारी एक चौथाई है। सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में करीब 100 फीसदी कब्जा मल्टीनेशनल्स का है।

टू व्हीलर और कार सेगमेंट में 85 फीसदी मल्टीनेशनल का क़ब्ज़ा है। स्मार्ट फोन में 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी मल्टीनेशनल्स की है। कंप्यूटर हार्डवेयर में करीब 100 फीसदी कब्जा विदेशी कंपनियों का है।

भारत की भागीदारी कितनी

ग्लोबल मेन्यूफेचरिंग में भारत का हिस्सा 3 फीसदी से भी कम, जापान का 10 फीसदी और चीन का 22 फीसदी से ज्यादा है। मेन्यूफेक्चर्ड आइटम्स के निर्यात में भारत का हिस्सा मात्र 1.73 फीसदी है।

ऐसे में अब हमारी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि जीवन जीने के साधन वही प्रयोग करें जो स्वदेशी हों। स्वदेशी का विकल्प न चुने। जहां स्वदेशी न हो वहाँ फिर विदेशी चुने।

मतलब बीते कई सालों से हमारे यहाँ लाइट, लक्ष्मी गणेश. पटाके, झालर आदि भारत के मौजूद थे पर थोड़ा सस्ता होने की वजह से हम विदेशी चुन रहे थे। विदेशी का प्रयोग कर रहे थे। यह जानते हुए कि इसकी कोई गारंटी वारंटी नहीं है।

विदेशी के विकल्प के बड़े खतरे

सस्ते के नाते विदेशी के विकल्प के बड़े ख़तरे हैं, जो हमें तुरंत दिखाई नहीं देते पर उसका ख़ामियाज़ा किसी न किसी तरह भुगतना ही पड़ता है। कई बार समाज को। कई बार देश को।

स्वदेशी का असर नहीं होता तो स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी ने विदेशी का बहिष्कार व स्वदेशी का स्वीकार को अपनी लड़ाई का एक हथियार नहीं बनाया होता। यह गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र विंदु बन गया।

कोविड के बाद के काल में सभी देशों के लिए घरेलू उत्पादन को मज़बूत करना मजबूरी होगी। यह बात कह सकते हैं कि अब हर देश को संरक्षणवाद अपने अपने यहाँ लागू करना पड़ेगा।

मॉडल कौन सा होगा

हमें यह अभी नहीं तय कर लेना चाहिए कि कहीं हमारे स्वदेशी व स्वावलंबन की ओर लौटने का मॉडल 70 और 80 के दशक का तो नहीं होगा।क्या 1947 वाला ब्रिटिश विरोध वाला स्वदेशी तो नहीं होगा।

हम अतीत की ओर तो नहीं लौट रहे हैं। पर आज के स्वदेशी के मॉडल को समंझने के लिए बस एक उदाहरण पर्याप्त है। कोयंबटूर के अरुणाचलम मुरूगनाथन ने कम लागत की सैनटरी पैड बनाने वाली मशीन बना दी।

हमारी महिलाओं को जो पैड मंहगा मिलता था। बहुतों की रीच से बाहर था। वह सब की सब सेनेटर पैड का इस्तेमाल करने लगी हैं। अक्षय खन्ना ने इन पर पैड मैन नाम से फ़िल्म भी बनायी।

हर हाथ को काम देना

हमारे तक़रीबन दस करोड़ प्रवासी मज़दूर शहरों से गाँव आ गये हैं। इनका रिवर्स माइग्रेशन हुआ है। इनके लिए काम जुटाना हमारी चुनौती है। क्योंकि इनके हाथ में काम नहीं होगा तो माँग कम हो जायेगी। माँग कम होगी तो उत्पादन कम करना पड़ जायेगा। उत्पादन कम करते ही रोज़गार कम करना पड़ेगा । ऐसे में एक दुश्चक्र में घिर जाने का अंदेशा दिखता है।

पौरुष और शक्ति का मेल

पर अब हमें अर्थकेंद्रित स्वदेशी बनाम मानव केंद्रित स्वदेशी में से मानव केंद्रित स्वदेशी पर आगे बढ़ना होगा। क्योंकि मानव केंद्रित स्वदेशी में शक्ति और पौरुष भी चाहिए । यदि हमने शक्ति और पौरुष दोनों होगा तो तमाम देश ऐसे हैं जो हमें काम दे सकते है।

चीन के लोगों के पास इसके अलावा केवल एक और चीज़ यह भी थी कि वहाँ श्रम क़ानून नहीं थे। हमें श्रम क़ानून हटाने की ज़रूरत नहीं। हमें बस पौरुष और शक्ति को बढ़ाने की ज़रूरत है।

मलेशिया कैसे उठ खड़ा हुआ

स्वदेशी के बदौलत मलेशिया उठ खड़ा हुआ। हमारी हालत मलेशिया से तो हमेशा अच्छी रही है। आज भी है।1835 तक भारत दुनिया भर के बाज़ारों में 33 फ़ीसदी सामान भेजता था। आज यह हिस्सेदारी घटकर तीन फ़ीसदी रह गयी है। भारत का लोहा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ था। यूरोप की तुलना में हमारी उपज तीन गुना थी।

पेट्रोलियम प्रोडक्ट, गूगल, फ़ेसबुक जैसी टेक कंपनियों को छोड़ दिया जाये तो हमने आत्म निर्भरता की दिशा में ठीक कदम उठाये हैं। दुनिया में कोई ऐसा उत्पाद नहीं जिसे कोई भारतीय कंपनी न बनाती हो। हाँ, यह ज़रूर हो सकता है कि भारतीय उत्पाद विदेशी उत्पाद की तुलना में पैकेजिंग व फ़िनिशिंग के मामले में कमतर हो।

इन बातों से बचने की जरूरत

लेकिन विदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी कंपनियाँ लाभ का कम से कम 15 फ़ीसदी हिस्सा अपने देश लेकर चली जाती है। अर्थशास्त्र के सिद्धांत के हिसाब से ब्लैक मनी से ज़्यादा ख़तरनाक ब्लाक मनी होती है। जो पैसा हमारे देश से बाहर जा रहा है वह ब्लैक मनी और ब्लाक मनी दोनों के संयुक्त दुष्प्रभाव को जनता है। लिहाज़ा इससे बचने की ज़रूरत है। सस्ता है, पैकेजिंग आकर्षक है, फ़िनिशिंग सुंदर है, उस व्यामोह से तब ज़्यादा बचने की ज़रूरत है जब हम आत्म निर्भरता की ओर बढ़ने की प्रतिबद्धता जता चुके हों।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

राम केवी

राम केवी

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