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जन्म-जन्मान्तरों के अनुभवरूपी खजाने को खोलिए

याद रखिए, यह सुरदुर्लभ मानव शरीर, जो पूर्व जन्मों के बड़े सत्कर्मों से मिलता है। इस जन्म में भी इसे शुभ कर्मों में ही लगाना उचित है। ताकि मनुष्य अवनति, पथभ्रष्टता और नैतिक पतन की ओर न बढ़ सके।

Acharya Dr Pradeep Dwivedi ‘Raman’
Published on: 7 Jun 2024 3:11 AM GMT
Aatma And Parmatma Is One Thing
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Aatma And Parmatma Is One Thing

सम्पूर्ण शारीरिक क्रियाओं का अधिष्ठाता हमारा आत्मा है (यह ईश्वर का अंश है)। क्योंकि जब तक इस शरीर में प्राण रहता है, तब तक वह क्रियाशील रहता है। अभी इस आत्मा के सम्बन्ध में पूरा ज्ञान बड़े-बड़े पण्डितों और मेधावी पुरूषों तक को नहीं है। आत्मा को जानना ही मानव-जीवन का प्रमुख लक्ष्य बताया गया है। कर्म के अनुसार उपहार या दण्ड के रूप में जीव कई योनियों में जन्म लेता है। संसार में अपने अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार उन्नत होता हुआ 84 लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद जीव मनुष्य जैसा दुर्लभ और समुन्नत शरीर प्राप्त करता है। याद रखिए, यह सुरदुर्लभ मानव शरीर, जो पूर्व जन्मों के बड़े सत्कर्मों से मिलता है। इस जन्म में भी इसे शुभ कर्मों में ही लगाना उचित है। ताकि मनुष्य अवनति, पथभ्रष्टता और नैतिक पतन की ओर न बढ़ सके।


मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार योनि प्राप्त होती है

स्वेदज, उद्भिज, अण्डज, जरायुज आदि जीवयोनियां एक के बाद दूसरी, पहले से ऊंची कक्षा की हैं। मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार योनि प्राप्त होती है। कर्म ही प्रधान है। इस जीवन के अच्छे उपकारी कार्यों का ही फल अलग श्रेष्ठ जीवन को प्राप्त करने का उपाय है। अशुभ कर्म के फलस्वरूप बुरे भविष्य की सम्भावना है। मनुष्य योनि इस संसार की पूर्ण विकसित, उच्चतम सीमा और सर्वोच्च शिखर रूप है। अनेक शुभ कर्मां के फलस्वरूप यह देवतुल्य स्थिति प्राप्त होती है। इसके प्राप्त होने पर इसके द्वारा भगवत्सेवा के भाव से सत्कर्मों का ही अनुष्ठान करना चाहिए। जिससे जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिले और मानव जीवन सफल हो।

अच्छे कर्मों से भविष्य में अच्छी योनि में जन्म होता है। हमारे सब कर्मों के फल इस जन्म में तथा अगले जन्म में भी मिलते रहते हैं। यह सत्य है और इस सत्य की मान्यता से व्यक्ति और समाज दोनों को लाभ होता है। इस प्रकार इस मान्यता से मनुष्य का सब जीवों के प्रति सप्रेम और आत्मीय भाव बढ़ता है। ऊंचा-नीचा, अमीर-गरीब, पापी और पुण्यात्मा, निम्न जीव तथा उच्चतर जीव, पशु, कीट, पतंग आदि सब समीप आ जाते हैं। सबके प्रति सहज आत्मभाव और सौहार्द बढ़ जाता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जीव की कोई योनि शाश्वत नहीं है। यदि परोपकार किया जाये, उत्मोत्तम पुण्यकर्म किये जाये ंतो सभी को अच्छी योनि प्राप्त हो सकती है।


हां समय अवश्य लग सकता है

हिन्दू मान्यता के अनुसार परलोक में अनन्तकालीन स्वर्ग या अनन्तकालीन नरक नहीं है। जीव के किसी जन्म या किन्हीं जन्मों के पुण्य या पापों में ऐसी शक्ति नहीं है कि वह सदा के लिये उस जीव का भाग्य निश्चित कर दे। हां समय अवश्य लग सकता है। वह अपने इस जीवन के पुरूषार्थ से सुपथगामी होकर अत्यन्त उन्नत अवस्था को प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर बुरे और निन्दित कर्म करने के कारण दण्ड के रूप में अधम स्वरूप को भी धारण कर सकता है। सामवेद 5/2/8/5 भी इसी की पुष्टि करता है। मनुष्य जीवन की सफलता इस बात में है कि वह आत्मिक और मानसिक दोषों को त्यागकर निर्मल और पवित्र बने। मल-विक्षेप और आवरण रहित बने। इसके अनेक उपाय वेदों में वर्णित हैं जो पठनीय हैं।

विकसित और चतुर दिखाई देता है

भारतीय संस्कृति में इसी समाज में, इसी संसार में सत्कर्म, सदव्यवहार तथा सदाचरण द्वारा पुरूषार्थ, सत्प्रयत्न और आशा को प्रेरणा मिलती रहती है। पुनर्जन्म में अपने सत्प्रयत्नों से हम बहुत कुछ सुधार और उन्नति भी कर सकते हैं। हम स्वयं ही अपने भविष्य के निर्माता हैं। भविष्य में अच्छा जन्म पाना स्वयं हमारे हाथ की बात है। बशर्ते गुरू की बतायी उस ध्यान-साधना पर चलना पढ़ेगा। मनुष्य के अन्तर्मन तथा गुप्त मानसिक प्रदेश का विश्लेषण करने से पता चलता है कि वह ज्ञान का भंडार है। साधारण व्यक्ति को भी देखें, तो मनुष्य मानसिक दृष्टि से बुद्धिमान से बुद्धिमान पक्षी की अपेक्षा विकसित और चतुर दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि मनुष्य योनि में आने से पूर्व के असंख्य अनुभव उसकी सुप्त चेतना में भरे हुये हैं। वे पूर्वसंचित असंख्य शुभ सात्विक अनुभव समय और नई परिस्थिति के अनुसार जाग्रत और प्रस्फुरित होते रहते हैं।

अपनी योग्ताएं बढ़ाकर चतुर व्यक्ति कई असाधारण कार्य कर डालते हैं। उनकी छिपी हुयी योग्यताएं असाधारण होती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने जन्म-जन्मान्तरों के अनुभवरूपी खजाने को खोल लिया है। आज के वैज्ञानिकों ने भौतिक जगत में जो कई अदभुत अविष्कार किये हैं, विद्वानों ने बड़े बड़े ग्रन्थ लिखे हैं, अध्यात्म तथा अन्य विषयों में जो उन्नति की है, इन शोधों में मुख्य सहायता उनके गुप्त मन में पुरानी योनियों के शुभ संस्कारों से मिली है। हमारा आत्मा ज्ञानस्वरूप है। परन्तु विषय वासना रूपी मल उसे मलिन करता है। हमें चाहिए कि शारीरिक और मानसिक मलों का, दोषों का संशोधन करते हुये निरन्तर अपने ज्ञान और विवके को बढ़ाते रहें।


Ashish Kumar Pandey

Ashish Kumar Pandey

Senior Content Writer

I have 17 years of work experience in the field of Journalism (Newspaper & Digital). Started my journalism career on 1 April 2005 as a sub-editor from Dainik Bhaskar Jaipur. After that, on January 1, 2008, I worked as a sub editor in I- Next News Paper (Hindi Daily) till July 31, 2009. During this I handled the responsibility of the National Desk. From August 1, 2009 to September 13, 2010, worked in Amar Ujala on National Desk and City Desk in Bareilly and Moradabad as Senior Sub Editor. From 15 September 2010 to 31 October 2011, worked as Senior Sub Editor/Senior Reporter in Hindustan newspaper Bareilly. From November 1, 2011, worked in Gwalior on the post of Chief Sub Editor in Rajasthan Patrika Hindi daily newspaper. From July 1, 2017 to January 31, 2019, worked in Patrika Dotcom Hindi Web portal, Lucknow. Worked as News Editor in Amrit Prabhat from 1 February 2019 till 31 January 2021. During my career I got opportunity to work at General Desk, Sports, City Desk and have vast experience of journalism business. Whatever responsibilities were given, I accepted it with a challenge and performed it well. My Qualifications : - ‌MA Political Science from Gorakhpur University, Gorakhpur ‌PG Diploma in Mass Communication - Guru Jamveshwar University Hisar, Haryana My Interests: Reading, writing, playing, traveling. Interest in Media: Special interest in political news and also in the field of sports, crime, health etc.

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