Dr Farooq Abdullah Hate Speech: कभी तो तोल-मोल के बोल लिया करो फारूक अब्दुल्ला जी

Dr Farooq Abdullah Hate Speech: डॉ.फारूक अब्दुल्ला को आग में घी डालने में बहुत मजा आता है। वे भड़काऊ बयान देकर खबरों में बने रहना चाहते हैं। हालांकि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता से देश उम्मीद करता है कि वे तोल-मोल के बयानबाजी करें।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 2 Jan 2024 5:03 PM GMT
Farooq Abdullah ji, please speak after careful consideration
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कभी तो तोल-मोल के बोल लिया करो फारूक अब्दुल्ला जी: Photo- Social Media

Dr Farooq Abdullah Hate Speech: डॉ.फारूक अब्दुल्ला को आग में घी डालने में बहुत मजा आता है। वे भड़काऊ बयान देकर खबरों में बने रहना चाहते हैं। हालांकि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता से देश उम्मीद करता है कि वे तोल-मोल के बयानबाजी करें। पर वे मानने के लिए तैयार नहीं हैं। अब उनके हालिया बयान को सुन लें। फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि भारत को पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। गाजा में इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध का जिक्र करते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया कि हमारा भी गाजा और फिलिस्तीन जैसा हाल हो सकता है। अब फारूक साहब से कोई पूछे कि क्या आपने कभी पाकिस्तान से पूछा कि उसने मुंबई में हमला क्यों करवाया था या फिर उसने करगिल में घुसपैठ किसलिए की थी?

चीन की मदद से जम्मू-कश्मीर में फिर आर्टिकल 370 लागू कराया जाएगा- अब्दुल्ला

वे तो हर स्थिति में भारत की नुक्ताचीनी करने में ही लगे रहते हैं। उन्हें कौन बताए कि विदेश नीति सारे देश की होती है न कि किसी प्रदेश या पार्टी की। अगर भारत पाकिस्तान से कहता है कि वे आतंकवादियों को खाद-पानी देना बंद करे तो इसमें क्या गलत कहता है। उन्होंने एक बार दावा किया था कि चीन की मदद से जम्मू-कश्मीर में फिर आर्टिकल 370 लागू कराया जाएगा। यह जानते हुए भी चीन भारत का जानी दुश्मन है, फिर भी वे चीन के पक्ष में बात करते हैं। क्या फारूक अब्दुल्ला को पता नहीं है कि चीन ने हमारे अक्सईचिन पर अपना कब्जा जमाया हुआ है? क्या उन्हें पता नहीं है कि चीन की तरफ से कब्जाये हुए इलाके का क्षेत्रफल कितना है ? ये 37,244 वर्ग किलोमीटर है। जितना क्षेत्रफल कश्मीर घाटी का है, उतना ही बड़ा है अक्सईचिन। सवाल उठता है कि क्या फारूक अब्दुल्ला ने कभी चीन की इस बात के लिए निंदा की कि उसने भारत के इतने बड़े क्षेत्र पर कब्जा जमाया हुआ है?

क्या उन्हें संसद में ध्वनिमत से पारित उस प्रस्ताव के बारे जानकारी नहीं है, जिसमें देश का संकल्प है कि चीन द्वारा हड़पी भारत की भूमि को वापस लिया जाएगा ? इस सबके बावजूद भी वे चीन की मदद से जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के पुन: बहाली का ख्वाब देख रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला जिस चीन से तमाम उम्मीदें पाले बैठे हैं, उसी चीन ने अपने देश में हज़ारों मस्जिदों को खुलेआम तोड़ा। वह अपने देश के मुलसमानों पर जो जुल्म कर रहा है, उसके बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है। फारूक अब्दुल्ला या तो कुछ जानना नहीं चाहते या जानकर भी चुप हैं।

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क्या यह तुम्हारे बाप का है- फारूक अब्दुल्ला

फारूक अब्दुल्ला फिलहाल श्रीनगर लोकसभा सीट से सांसद हैं। वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। आपको याद होगा कि उन्होंने चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत के दावे को लेकर कहा था कि “क्या यह तुम्हारे बाप का है”? “पीओके भारत की बपौती नहीं है जिसे वह हासिल कर ले”। फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाते हुए कहा था “नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान के कब्जे से पीओके को लेकर तो दिखाए।” मतलब यह कि फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक पीओके हासिल करना भारत के लिए नामुमकिन ही है। यह तो भारत में रहकर भारत को सीधे धमकी देना नहीं तो क्या है ? फारूक अब्दुल्ला को कभी संसद लाइब्रेरी में जाकर भारतीय संसद के 22 फरवरी,1994 को पारित प्रस्ताव को पढ़ लेना चाहिए। उस प्रस्ताव में भारत ने पीओके पर एक फैसला लिया था। उस दिन संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके पीओके पर अपना पूरा हक जताते हुए कहा था कि पीओके सहित सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है। “पाकिस्तान को उस भाग को छोड़ना ही होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है।”

फारूक अब्दुल्ला के विवादास्पद बयानों की सूची बहुत लंबी है। वे कश्मीर में भारतीय सैनिकों पर पत्थर फेंकने वालों का भी समर्थन कर चुके हैं। अब जरा सोच लें कि वे कितने गैर-जिम्मेदार हैं ? फारूक अब्दुल्ला ने कहा था अगर कुछ नौजवान सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थर मार रहे हैं, तो कुछ सरकार द्वारा प्रायोजित भी हैं।

फारूक अब्दुल्ला के विवादास्पद बयानों की सूची सच में बहुत ही लंबी है। वे तो सुकमा के नक्सली हमले की तुलना कुपवाड़ा के आतंकी हमले तक से कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि कुपवाड़ा के शहीदों की शहादत को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था जबकि सुकमा के शहीदों की अनदेखी हुई। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के पंजगाम सेक्टर में आर्मी कैंप में आतंकी हमला हुआ था। चाहे सुकमा हो या कुपवाड़ा या फिर कोई अन्य जगह, सारा देश शहीदों का कृतज्ञ भाव से स्मरण करता है। देश के लिए अपने प्राणों का नजराना पेश करने वालों का कोई अनादर नहीं कर सकता।

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दि कश्मीर फाइल्स

याद नहीं आता कि विवादित बयानबाजी करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ने वाले फारूक अब्दुल्ला कभी अपने राज्य में आतंकियों के हाथों मारे जाने वाले लोगों के लिए भी आंसू बहाते हों। ‘दि कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की सारे देश में चर्चा हुई थी। उसमें कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के ऊपर हुए जुल्मों सितम को दिखाया गया था। यह जरूरी भी था। पर कोई यह नहीं बताता कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के बढ़ने के बाद से न जाने कितने प्रवासी बिहारी मजदूर भी मारे जा चुके हैं। वहां पर कुछ समय महीने पहले बिहार के भागलपुर से काम की खोज में आए गरीब वीरेन्द्र पासवान को भी गोलियों से मार डाला गया था। पासवान की मौत पर उसके घरवालों या कुछ अपनों के अलावा रोने वाला भी कोई नहीं था। पासवान का अंतिम संस्कार झेलम किनारे दूधगंगा श्मशान घाट पर कर दिया गया था। वीरेंद्र पासवान गर्मियों के दौरान कश्मीर में रोजी रोटी कमाने आता था। वह श्रीनगर में ठेले पर गोल गप्पे बनाकर बेचता था। उसके मारे जाने पर फारूक अब्दुल्ला या उनकी पार्टी का कोई नेता ने पासवान के परिवार की मदद की घोषणा नहीं की थी। बात यह है कि फारूक अब्दुल्ला सिर्फ हवा-हवाई बातें करते हैं। उन्हें अपने राज्य के आम इंसान से कोई सरोकार नहीं रहा है। वे अनाप-शनाप बोलकर खबरों में बने रहने की कोशिश करते हैं।

अब कश्मीरी जनता ऐसे हबा हवाई नेताओं से जितना जल्द छुटकारा पा ले, उतना ही अच्छा रहेगा, कश्मीर की जनता के कल्याण और कश्मीर के विकास के लियेI

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Shashi kant gautam

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