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युद्ध लड़े बगैर अमेरिका को पराजित करने वाला दुनिया का इकलौता देश बना पाकिस्तान

अमेरिका के रहमों करम पर सांस लेता दिखाई देने वाला पाकिस्तान अब अमेरिका को पराजित करने वाला देश बना गया है।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Shweta
Published on: 17 Aug 2021 11:41 PM IST (Updated on: 17 Aug 2021 11:43 PM IST)
कॉन्सेप्ट फोटो
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कॉन्सेप्ट फोटो ( फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

अमेरिका के रहमों करम पर सांस लेता दिखाई देने वाला पाकिस्तान अब अमेरिका को पराजित करने वाला देश बना गया है। अपनी कूटनीति और आईएसआई के दम पर पाकिस्तान ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया है। पाकिस्तान ने अमेरिका से आज तक सीधी लड़ाई नहीं लड़ी लेकिन अफगानिस्तान के मोर्चे पर उसे पूरी तरह पराजित कर दिया है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में जो चाहा वह पूरा कर दिखाया। 20 साल में अरबों रुपया खर्च करने के बावजूद अमेरिका ना तो पाकिस्तान के इरादों को बदल पाया और ना अपने नागरिकों को आतंकवाद से सुरक्षा की गारंटी देने की स्थिति में ही पहुंच सका है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्तारूढ़ होने के साथ ही अल कायदा और आईएसआईएस सरीखे आतंकी संगठनों की आहट पूरी दुनिया सुन रही है। अफगानिस्तान छोड़कर भागने वाले अशरफ गनी अहमदजई को तालिबानियों समेत पाकिस्तान के हुक्मरान भी अमेरिकी एजेंट मानते थे। अशरफ गनी के हटने का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी स्वागत किया है। अफगानिस्तान में तालिबान का सत्तारूढ़ होना अमेरिका की सीधी पराजय है और पाकिस्तान की एक ऐसी जीत है जो उसने अमेरिका से लड़े बगैर हासिल की है।

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्तारूढ़ होने पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान में पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है जिसमें उन्होंने कहा कि- "अफगानिस्तान ने अपनी गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया है। " इमरान खान के इस बयान के निहितार्थ बेहद गहरे हैं। इससे पूरे पाकिस्तान की मानसिकता को समझा जा सकता है। तालिबान के गठन से लेकर उसके सत्तारूढ़ होने तक हर कदम पर पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। पाकिस्तान के राजनेता ही नहीं मिलिट्री के अधिकारी, आईएसआई अधिकारी और समाज का एक बड़ा वर्ग हमेशा तालिबान के साथ खड़ा दिखाई दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने जून 2021 में एक मीडिया साक्षात्कार के दौरान कहा था कि अफगानिस्तान में हिंसा के लिए केवल तालिबान जिम्मेदार नहीं है। साफ जाहिर है कि उनका निशाना अफगानिस्तान की सरकार पर था और वह बताना चाह रहे थे कि अफगानिस्तान में तालिबानियों की हिंसा का आतंकी रिश्ता नहीं है।

इमरान खान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ने एक मीडिया इंटरव्यू में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी अहमदजई के चुनाव को और उनके शासन करने के अधिकार पर सवाल खड़े किए थे। पाकिस्तान के पर्यावरण मंत्री जरताज गुल वजीर ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए तालिबानियों के काबुल में प्रवेश की उम्मीद वाला बयान जारी करते हुए खुशी जताई थी कि अब जल्द ही अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान पहुंचने वाले हैं और पूरे अफगानिस्तान पर उनका कब्जा होगा। हालांकि उन्होंने अपना यह ट्वीट 1 घंटे में ही डिलीट कर दिया था लेकिन इसके अगले ही दिन जब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में सोफे पर बैठे हुए तालिबानियों की तस्वीर दिखी । तो पाकिस्तान के सत्ता शीर्ष पर बैठे इमरान खान ने इसे दासता की बेड़ी से मुक्त होने की घटना करार दे दिया। पाकिस्तान के रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल अब्दुल कयूम का बयान भी आई एस आई और पाकिस्तान आर्मी की सोच को प्रदर्शित करता है उन्होंने कहा कि अमेरिकी फौजियों ने अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ा है। पाकिस्तान व पहला देश होगा जो अफगानिस्तान की नई सरकार को मान्यता देगा।

पाकिस्तान से अक्सर ऐसी मीडिया रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर तालिबानियों को आवागमन की पूरी छूट मिली हुई है। उन्हें हथियारों से लेकर सामाजिक और आर्थिक सहयोग भी पाकिस्तान से मिल रहा है। यह सब कुछ तब हो रहा था जब अमेरिकी फौज ने अफगानिस्तान में डेरा डाल रखा था और अफगानिस्तान में दो बार के चुनाव के दौरान अशरफ गनी अहमदजई की सरकार चुनी गई। अशरफ गनी को तालिबान समेत अफगानिस्तान का एक बड़ा वर्ग अमेरिका का एजेंट मानता रहा। यही वजह है कि जब तालिबानियों के साथ सीधे युद्ध का मौका आया तो अफगानिस्तान की उस सेना ने हाथ खड़े कर दिए जो अमेरिका से प्रशिक्षित थी और उससे मिले हथियारों से लैस थी। पाकिस्तान के बारे में भी बेहद स्पष्ट है कि वह तालिबान की लगातार मदद करता रहा। वह अमेरिका से तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए आर्थिक मदद भी लेता रहा लेकिन साथ ही साथ अमेरिका के इशारे पर बनी अशरफ गनी सरकार को उखाड़ने के लिए तालिबानियों की मदद भी करता रहा। पाकिस्तान ने सीधे तौर पर अमेरिका के साथ संघर्ष नहीं छेड़ा। उनसे डॉलर्स लेते रहे और तालिबानियों को लड़ने के लिए उकसाने का काम कभी नहीं छोड़ा। इस तरह पाकिस्तान में अपने दोनों हाथ में लड्डू रखें और अफगानिस्तान में उस सरकार को स्थिर नहीं होने दिया जो अमेरिका के इशारे पर बनी थी। अब देखना यह होगा कि आईएसआई और पाकिस्तान में अफगानिस्तान में जिन तालिबानियों को सत्ता दिलाई है वह आने वाले दिनों में पाकिस्तान के इशारे पर काम करेंगे या अमेरिकियों से लड़ने के आदी हो चुके तालिबानी कोई नया मोर्चा तलाश लेंगें।



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Shweta

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