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आखिर कब तक दरिंदे नोचते रहेंगे मासूम कलियों को?
साक्षी चतुर्वेदी
लखनऊ: अभी उसने चलना भी नहीं सीखा था। वो नन्ही जान तो बस अभी अपनी मां की गोद में ही सोना जानती थी। उसने तो अभी दुनिया को भी नहीं पहचाना था। और न ही वो कुछ बोल सकती थी। कुछ ही समय बीता था उसे इस दुनिया में आए और उसके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में उसे कुछ अंदाजा भी न था।
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वो चिल्ला रही थी, रो रही थी और अपनी मां को बुला रही थी। शायद वो ये कहना चाह रही थी की मां मुझे यहां से ले चलो। मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है लेकिन, वो नादान थी न। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ जो घिनौनी हरकत हो रही थी उसे सोचकर हमारी रूह कांप जाती है, और वो यह सब भुगत रही थी।
वो रोती रही। दर्द सहती रही लेकिन उसकी चीखें सुनने वाला कोई नहीं था। उसका दर्द समझने वाला कोई नहीं था। वो तड़पती रही और उसके साथ बेरहमी से सबकुछ होता रहा।
ऐसी घिनौनी और नीच हरकत करने वाला इतना वहशी हो चुका था कि उसे यह भी समझ नहीं आया कि उस नन्ही सी जान पर क्या बीत रही होगी। वो उस दर्द से कितना तड़प रही होगी और यही सोच रही होगी कि इस दुनिया में आखिर वो आई ही क्यों।
वो छोटी सी कली जिसने अभी दुनिया को समझा ही नहीं था, किसी वेहशी दरिंदे ने उसे बेरहमी के साथ कुचल दिया। यह वही देश है जहां एक तरफ हम साल के 18 दिन मां दुर्गा की पूजा करते है और दूसरी तरफ हर रोज़ हजारों दुर्गा की इज्जत से खेलते हैं।
एक बार महसूस करके देखिये की उस मां पर क्या बीती होगी जब उसने अपनी नन्ही सी जान को लहूलुहान हालत में अपनी गोद में लिया होगा और उसकी भावशुन्य आँखे उसे बेसाख्ता ताक रही होंगी और वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती।
हमारा आपसे सीधा सवाल है कि आखिर उस दरिंदे को ये सब कर के क्या हासिल हुआ होगा? क्या उसे उस नन्ही सी जान में अपनी बेटी का चेहरा नज़र नहीं आया होगा? क्या पाप और पुण्य का फैसला मरने के बाद ही होगा? क्या हम आज भी अपनी फूल सी नाज़ुक बेटी को सुरक्षित समाज नहीं दे सकते जहां वो बेफिक्र होकर अपनी ज़िन्दगी जी सके? अगर हम आज भी ना बदले तो अगला निशाना हमारी ही बेटी होगी।