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आखिर इस्‍लाम ही कट्टरता की बारंबार मिसाल क्‍यों

ज्‍यादातर देशों में इस्लामिक कट्टरता खुलकर सामने आई है। आतंकवाद की जड़ें इस्‍लामिक देशों में ही पनप रही हैं, बढ़ रही हैं और मजबूत हो रही हैं।

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Published on: 17 July 2020 4:34 PM IST
आखिर इस्‍लाम ही कट्टरता की बारंबार मिसाल क्‍यों
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दुनिया में मजहबी कट्टरता और नस्‍लवाद एक बार फिर सिर उठाता दिख रहा है। रूढ़िवादी मान्‍यताएं एक बार फिर से जोर पकड़ती दिख रही हैं। अपने को बहुत आधुनिक मानने वाला अमेरिका हो या फिर इस्लामिक देश, सब जगह इसके उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। नस्‍लवाद का हालिया मामला अमेरिका में आया था, जहां एक अश्‍वेत की हत्‍या के बाद पूरा महाद्वीप अस्‍त व्यस्‍त होता दिखा। वहीं मजहबी कट्टरता की ताजा मिसाल तुर्की में उभरी है।

एशिया और यूरोप की सीमा तय करने वाली बॉस्‍फोरस नदी का पानी इस बात का गवाह है कि उसके किनारे तुर्की के इस्‍तांबुल शहर की ऐतिहासिक इमारत हागिया सोफिया एक बार फिर कट्टरपंथियों के चंगुल में फंस गई है। हागिया सोफिया जो दुनिया भर के पर्यटकों के लिए अपनी वास्‍तुकला और भव्‍यता के लिए आकर्षण का केंद्र है, अब मस्‍जिद में तब्‍दील की जा रही है।

हागिया सोफिया पर इसाई और इस्‍लाम दोनों समुदाय जताते हैं हक

मजहबी जकड़न से बाहर कर तुर्की को आधुनिक बनाने वाले शासक मुस्‍तफा कमाल पाशा ने 1934 में हागिया सोफिया को भले ही राष्‍ट्रीय संग्रहालय में तब्‍दील की दिया हो। लेकिन मौजूदा राष्‍ट्रपति रेचेप तैरूयप एर्दोगान ने अपनी राजनीतिक महत्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उस ताने बाने को छिन्‍न भिन्‍न कर दिया। इसके लिए उन्‍होंने बाकायदा अपने देश के सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया। इस कृत्‍य के लिए उनके मकड़जाल को बेशक पूरी दुनिया समझ रही है लेकिन मजहबी कट्टरता का नमूना पेश करने से वह बाज नहीं आए। हागिया सोफिया ग्रीस के ईसाई समुदाय के लिए एक पवित्र स्‍थल रही है। हागिया सोफिया का मतलब ही होता है पवित्र विवेक। यह ऐतिहासिक इमारत 900 साल तक ईस्‍टर्न ऑर्थोडॉक्‍स चर्च का मुख्‍यालय रही है।

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13वीं शताब्‍दी में ईसाई हमलावरों ने इस पर हमला किया और कुछ वर्षों के लिए इसे कैथलिक चर्च में तब्‍दील कर दिया। लेकिन इसी के बाद इस्‍लाम के अनुयायी ऑटोमन साम्राज्‍य के शासक मेहमद दि्वतीय ने तुर्की के बाइजेंटाइन साम्राज्‍य पर अपनी विजय पताका लहराई तो उसने हागिया सोफिया इमारत को मस्‍जिद में तब्‍दील कर दिया। यह 1453 के आसपास का कालखंड था। यह अलग बात है कि इस आलीशान इमारत की दीवारों पर ईसा मसीह और मदर मैरी के चित्र थे। बाद में दीवारों पर कुरान की आयतें दर्ज कर दी गईं। इस इमारत को लेकर ईसाई समुदाय ने अपना दावा कभी छोड़ा नहीं। लेकिन इस्‍लामी कट्टरपंथियों ने उन्‍हें वहां घुसने नहीं दिया और इमारत से ईसाई समुदाय के निशान मिटाने की कोशिश भी की। इमारत पर दोनों समुदाय अपना अपना हक जताते रहे।

1934 में मुस्‍तफा कमाल पाशा ने तुर्की इस्लामिक कट्टरपंथी से निकालने का किया प्रयास

1934 में मुस्‍तफा कमाल पाशा ने तुर्की को इस्‍लामी कट्टरपंथ से बाहर निकालने की कोशिश की। उन्‍होंने इसे धर्म निरपेक्ष देश बनाया और हागिया सोफिया को राष्‍ट्रीय संग्रहालय में बदल दिया। जबकि उस समय भी इस्‍लामिक कट्टरपंथी इस इमारत में नमाज न अदा करने देने और राष्‍ट्रीय संग्रहालय में बदलने के खिलाफ थे। लेकिन कमाल पाशा ने उनकी एक नहीं चलने दी। वह देश में धर्म निरपेक्षता को मजबूत करना चाहते थे। जो तुर्की आधुनिक दुनिया का अनुगामी बन चुका था, दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चल पड़ा था, वह अब एक बार फिर कुछ कट्टरपंथी नेताओं की निजी लिप्‍साओं की भेंट चढ़ रहा है।

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क ऐतिहासिक संग्रहालय को 86 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट के सहारे मस्‍जिद में तब्‍दील करने का रास्‍ता बना दिया गया। मुस्‍तफा कमाल पाशा ने जिस तुर्की को कबीलाई संस्‍कृति से बाहर निकालकर एक वैश्‍विक प्‍लेटफॉर्म पर लाकर खड़ा किया था, वहां का मौजूदा नेतृत्‍व अपनी राजनीतिक महत्‍वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसे मजहबी रस्‍सी में जकड़ने पर आमादा है। तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगान के इस रवैसे पर ग्रीस समेत दुनिया के अनेक देश खासे नाराज हैं। ग्रीस के नेतृत्‍व ने इस पर ऐतराज जाहिर करते हुए साफ कहा है कि तुर्की की यह कार्रवाई यूनेस्‍को के विश्‍व सांस्‍कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत के संरक्षण संबंधी कंवेंशन कस सरासर उल्‍लंघन है।

यूनेस्‍को और अमेरिका ने जताया विरोध

यूनेस्‍को ने खुद इस पर ऐतराज दर्ज कराया है और संबंधित पक्षों से इसमें दखल का आग्रह किया है। इस पर विरोध तो अमेरिका ने भी जताया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्‍पियो ने खुद कहा है कि तुर्की को इस इमारत को परंपराओं के संरक्षण के ऐतिहासिक उदाहरण के रूप में बनाए रखना चाहिए लेकिन मजहबी कट्टरपंथ में मदांध तुर्की का नेतृत्‍व किसी की सुन नहीं रहा है। राष्‍ट्रपति एर्दोगान कहते हैं कि यह उनके देश की जनता की भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है। इसमें वह किसी की बात नहीं सुनेंगे। वैसे इस मसले को लेकर ईसाइयत और इस्‍लाम में वैश्‍विक स्‍तर पर टकराव का खतरा आसन्‍न है। पूरी दुनिया में ईसाइयत और इस्‍लाम के बीच संघर्ष होता रहा है।

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यह बात किसी से छिपी नहीं है। कूटनीतिक रूप में इस मसले की जड़ में अमेरिका ही कहा जा रहा है। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप इजराइल का राजधानी के रूप में येरुसलम को मान्‍यता दे दी थी जिससे इस्‍लामिक जगत कुपित हो गया। और उसी कड़ी में तुर्की के राष्‍ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगान ने राजनीतिक स्‍वार्थ के लिए राष्‍ट्रवाद की आड़ लेकर इस्‍तांबुल और हागिया सोफिया पर ऑटोमन सामाज्‍य के कब्‍जा कर लेने की याद के रूप में इस इमारत को मस्‍जिद में बदलने की चाल चली है, ताकि आगामी चुनाव में इसका फायदा उठा सकें।

इस्लामिक कट्टरता आई खुलकर सामने

दरअसल, पिछले कुछ सालों से राष्‍ट्रवाद की आड़ में दुनिया भर के जिन देशों में मजहबी कट्टरता , हिंसा और उग्रवाद दिखाई पड़ता है, संबंधित देशों का नेतृत्‍व घूम फिरकर राजनीतिक लाभ के लिए ही उसका इस्‍तेमाल कर रहा है। ज्‍यादातर देशों में इस्लामिक कट्टरता खुलकर सामने आई है। आतंकवाद की जड़ें इस्‍लामिक देशों में ही पनप रही हैं, बढ़ रही हैं और मजबूत हो रही हैं। जिन देशों में अशांति और उपद्रव चल रहे हैं या चलते रहे हैं, उनमें ज्‍यादातर में इसी मजहब के लोगों का तांडव है।

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बहाना राजनीति हो, विचार-विमर्श हो, धार्मिक असहिष्‍णुता हो या कुछ और, लेकिन इसके केंद्र में इस्‍लाम ही खड़ा दिखाई देता है। पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, यूरोप या एशिया के जितने भी देश हैं, अधिकांश जगह इस्‍लाम के अनुयायी ही समस्‍या की जड़ में दिखाई देते हैं, यह विचारणीय विषय है। हागिया सोफिया का प्रकरण आने वाली समय की एक आहट मात्र है।



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