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Agneepath Scheme: अग्निपथ पर अग्निपरीक्षा देती सरकार

Agneepath Scheme: अग्निवीर योजना भारतीय सशस्त्र बलों को चीनियों की तरह अल्पकालीन अर्ध-प्रतिनिधि बल में परिवर्तित करने के लिए एक व्यापक परिवर्तन है।

Yogesh Mishra
Published on: 20 Jun 2022 1:11 PM IST
Agneepath Scheme protest
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अग्निपथ पर अग्निपरीक्षा देती सरकार (Social media)

Agneepath Scheme: ऐसा कभी नहीं होता है कि कोई सरकारी नौकरी निकले और लड़के सड़क पर आ जायें। आम तौर पर होता यह है कि जब सरकारी नौकरी निकलती है तो नौकरी चाहने वाले अपने अपने घरों, हास्टलों में क़ैद हो जाते हैं। या स्टेडियम अथवा सड़कों पर मेहनत शुरू कर देते हैं। लेकिन यह अजीब सा वाकया है कि सरकार ने भर्ती निकाली और नौकरी के खिलाफ युवा उग्र रूप धरे सड़क पर हैं। आगज़नी हो रही है। ट्रेन जलाई जा रही है। सेना के पुराने लोग भी इस क्रातिवीर नौकरी के पक्ष में मज़बूती से खड़े दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सरकार की हालत 'न ख़ुदा ही मिला , न विसाले सनम' सी हो गयी है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर यह नौकरी क्या है? नौकरी की शर्तें क्या है? लोगों की नाराज़गी क्या है? नाराज़गी दूर करने के तरीक़े क्या है? जो भारत सरकार कर रही है, क्या वह पहली बार दुनिया में हो रहा है? ऐसा नहीं। अमेरिका में भी एक निर्धारित समय अवधि के लिए युवाओं को सेना में भर्ती किया जाता है। वहां लगभग 80 प्रतिशत सैनिक अपनी सेवा के आठवें साल में ही रिटायर हो जाते हैं।इन्हें पेंशन भी नहीं मिलती है।

इजरायल में भी हर नागरिक के लिए तीन साल सेना में अपनी सेवाएं देना अनिवार्य है। इसके बाद ये युवा वापस नागरिक जीवन में लौट जाते हैं।चीन में 18 से 22 वर्ष के युवाओं के लिए सैन्य सेवा कम से कम दो वर्ष के लिए करना अनिवार्य है। स्विट्जरलैंड में 18 से 34 साल के युवाओं को सेना में ड्यूटी देना अनिवार्य है, इसके लिए उन्हें 21 हफ्ते की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है। मिस्र में 18 से 30 वर्ष के हर युवा को डेढ़ से तीन साल तक सेना में देने होते हैं। इसके बाद वे नौ साल तक रिज़र्व की श्रेणी में रहते हैं। वियतनाम में 18 से 27 वर्ष की उम्र के युवाओं के लिए दो से तीन साल तक की सैन्य सेवा अनिवार्य है। यूक्रेन में 20 से 27 साल के युवा के लिए एक से दो साल का टूर ऑफ ड्यूटी ज़रूरी है। मौजूदा युद्ध में इन्हीं लोगों ने मोर्चा सँभाला है। इस लिहाज़ से देखें तो भारत सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है , जो अजूबा है। लेकिन फिर भी नाराज़गी है?

सरकार के मुताबिक़ यह नई भर्ती सिर्फ सैनिक भर्ती के लिए लागू होगी। अफसर भर्ती के लिए पुरानी व्यवस्था ही चलेगी।90 दिन के भीतर 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होगी।उम्र सीमा 17 वर्ष 6 माह से 21 वर्ष। फिलहाल उम्र सीमा एक साल के लिए 23 वर्ष कर दी गई है।जनरल ड्यूटी सैनिक भर्ती के लिए योग्यता कक्षा दस पास ही रहेगी। लड़के - लड़कियां, दोनों आवेदन कर सकते हैं। लड़कियों के लिए कोई कोटा नहीं होगा।सेवा अवधि 4 वर्ष होगी । 6 माह की प्रशिक्षण अवधि होगी।पहले साल वर्ष का वेतन पैकेज 4.76 लाख रुपये होगा। जो चौथे साल बढ़कर 6.92 लाख रुपये हो जाएगा। वेतन का 30 फीसदी हिस्सा सेवा निधि में चला जायेगा। इतना ही अंशदान केंद्र सरकार करेगी। चार साल बाद सेना से रिलीज होने पर सैनिक को 11.71 लाख रुपए का टैक्स फ़्री सेवा निधि पैकेज मिलेगा। इसमें 48 लाख रुपये का गैर-अंशदायी बीमा कवर भी है।कोई पेंशन नहीं दी जायेगी।

4 साल की सेवा के बाद योग्यता व मानदंडों पर खरे उतरने वाले 25 फीसदी अग्निवीरों को स्थायी रूप से सेना में नियुक्ति दे दी जाएगी। बाकी 75 फीसदी सैनिकों को अग्निवीर कौशल प्रमाण पत्र दिया जाएगा, जिसके आधार पर वे अर्द्ध सैनिक बलों, राज्य सरकार की नौकरियों में प्राथमिकता पाएंगे। साथ ही खुद का व्यवसाय करने के लिए न्यूनतम ब्याज दरों पर नॉन सिक्योर लोन दिलाया जाएगा।इन्हें तमाम अर्ध सैनिक बलों की नौकरियों में दस फ़ीसदी का कोटा भी मिलेगा। इतनी सुविधाओं के बाद अगर हमारे नौजवान सड़क पर हैं, तो सीधा सीधा दो मतलब है। एक, उनको यह योजना रास नहीं आ रही है। दूसरा, सरकार इस योजना की अच्छाई के बारे में समझा नहीं पा रही है।

दोनों ही स्थितियों में योजना बनाने वालों पर सवाल उठना लाज़िमी है। यह योजना युवाओं को अपने देश की सेवा करने और राष्ट्रीय विकास में योगदान करने का अवसर देती है। युवाओं को मिलिट्री अनुशासन का पाठ पढ़ने का मौक़ा देती है। इसके चलते हमारी सेना की औसत आयु कम की जा सकेगी। अभी यह 32-33 वर्ष है। अग्निपथ योजना के साथ लगभग 8-10 वर्षों में, इसे लगभग 26 वर्ष तक करने का इरादा है। चूंकि कम उम्र से भर्ती शुरू होगी सो 21 से 25 वर्ष की आयु में सैन्य सेवा समाप्त हो जाएगी। ऐसे में सैनिक अच्छा पैकेज लेकर किसी कंपटीशन की तैयारी, उच्च शिक्षा या स्व रोजगार कर सकते हैं। अग्निपथ योजना से सरकार को वेतन और पेंशन में खर्च होने वाली भारी भरकम रकम बचाने में मदद मिलेगी। वर्ष 2020-21 में भारत का रक्षा बजट 4 लाख 85 हजार करोड़ रुपये था, जिसका 54 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ सैलरी और पेंशन पर खर्च हुआ।

2022-23 के बजट में रक्षा मंत्रालय को 5,25,166 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। इसमें वेतन, पेंशन, सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण, उत्पादन प्रतिष्ठानों, रखरखाव और अनुसंधान और विकास संगठनों पर होने वाला खर्च शामिल है। वेतन और पेंशन पर खर्च रक्षा बजट का सबसे बड़ा हिस्सा है। इस मद में 2,83,130 करोड़ रुपये खर्च होने हैं जो रक्षा बजट का 54 फीसदी है। 1,44,304 करोड़ रुपये का पूंजीगत परिव्यय, रक्षा बजट का 27 फीसदी है। शेष आवंटन उपकरणों के रखरखाव, सीमा सड़कों, अनुसंधान और प्रशासनिक खर्चों की ओर जाता है। रक्षा मंत्रालय को आवंटन केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों में सबसे ज्यादा यानी 13 फीसदी है।

रक्षा पेंशन पर खर्च 2012-13 और 2022-23 के बीच सालाना औसत 10.7 फीसदी की दर से बढ़ा है। 2020 पेंशन बिल के बाद से सरकार ने रक्षा पेंशन में 3.3 लाख करोड़ रुपये या तो आवंटित किया है या भुगतान किया है। इस साल के आवंटन में 3.65 लाख करोड़ रुपये में से 1.19 लाख करोड़ रुपये सिर्फ पेंशन थे।

1 जुलाई 2017 तक, भारतीय सेना में 49,932 अधिकारियों (फिलहाल 42,253 सेवारत हैं) और 12,15,049 सैनिकों की स्वीकृत संख्या का प्रावधान है। लेकिन सेना में फिलहाल 42,253 अधिकारी और 11,94,864 सैनिक सेवारत हैं।

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए सेना की ताकत को 90,000 से अधिक बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया था।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के अनुसार, 2020 में सेना में 12,37,000 सक्रिय कर्मी और 9,60,000 रिजर्व कर्मी हैं। रिज़र्व कर्मियों में 3,00,000 प्रथम-पंक्ति के हैं, यानी सक्रिय सेवा समाप्त होने के 5 वर्षों के भीतर वाले हैं। 5,00,000 ऐसे कर्मी हैं जो 50 वर्ष की आयु तक बुलाए जाने पर लौटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इनके अलावा टेरिटोरियल आर्मी के 1,60,000 सैनिक हैं। बाकी 40,000 नियमित स्थापना में काम कर रहे हैं। इस तरह भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी स्वयंसेवी सेना है।1 जुलाई, 2017 तक, नौसेना में 11,827 अधिकारियों और 71,656 नाविकों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 10,393 अधिकारी और 56,835 नाविक थे।

इसमें नौसैनिक उड्डयन, समुद्री कमांडो और सागर प्रहरी बल के जवान शामिल हैं। 1 जुलाई, 2017 तक, भारतीय वायु सेना में 12,550 अधिकारियों की स्वीकृत संख्या थी। इसमें से 12,404 अधिकारी और 142,529 एयरमैन सेवारत थे। सरकार अब सेना के आधुनिकीकरण पर ज्यादा जोर दे पाएगी क्योंकि इसके लिए ज्यादा फंड चाहिए होगा। यह तो सरकार का पक्ष रहा।

अब आक्रोशित युवाओं की बात करें तो वे कह रहे हैं कि चार साल बाद हम करेंगे क्या?

चार साल बाद पढ़ाई छूट चुकी होगी। मिलिट्री के अनुशासन के तहत नागरिक जीवन जीना कितना मुश्किल होता है, यह हम सब देख रहे हैं। इसे बदलने को सरकार व समाज कोई तैयार नहीं है। सेना में काम करना सिर्फ़ नौकरी नहीं है। एक जज़्बा है, वह भी ऐसा जज़्बा है जो मातृ भूमि के लिए जान देने तक पहुँचता है। जो लोग चार साल के लिए नौकरी करने आयेंगे , उनके दिल में यह जज़्बा जग पायेगा , यह कहना थोड़ा मुश्किल तो है ही।

ऐसे में चार साल की नौकरी व भारतीय सेना के लड़ने का पुराना सा हौसला दोनों को एक साथ रख कर सोचना थोड़ा मुश्किल काम उनके लिए भी होगा, जो लोग इसे लागू कर रहे हैं। और उनके लिए भी होगा जिनका सेना से कोई रिश्ता है, उनके लिए भी होगा जो सैनिकों से उत्सर्ग की अपेक्षा करते हैं। वैसे तो विदेशों में किसी भी उम्र में लोग कोई नई पारी खेलना शुरू कर देते हैं, वे नहीं देखते कि उम्र कितनी है- चालीस या पचास? पर भारत में यह चलन नहीं हैं। यहाँ एक आदमी की कार्यशील उम्र केवल तीस साल होती है। क्योंकि अठारह बीस साल तक लड़का पढ़ता है। इस उम्र में केवल दस फ़ीसदी लोग काम पर लग पाते हैं।

वैसे चौबीस पच्चीस साल में युवा अपना करियर शुरू कर पाता है। साठ साल में सेवा निवृत्त हो जाता है। जिस देश में लोगों की औसत आयु 69 साल 7 माह हो वहाँ का कोई भी नागरिक अपने जीवन का केवल 43 फ़ीसदी का ही राष्ट्रीय आय/ जीडीपी में योगदान कर रहा हो, तो राष्ट्र की प्रगति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। फिर भी भारत ने प्रगति, विकास व समृद्धि के बड़े व प्रशंसनीय सोपान तय किये हैं। सरकार ने जिस तरह उम्र को लेकर संशोधन किया है। उसी तरह उसे एक संशोधन यह भी करना चाहिए कि सिविल सेवाओं को छोड़कर हर नौकरी में इन अग्निवीरों को पहले से तय आरक्षण के इनके कोटे में ही दस या पाँच फ़ीसदी आरक्षण दे दें ताकि युवाओं को लगे कि सेना में बिताया गया उनका चार साल व्यर्थ नहीं गया।

मोहनदास करम चंद गांधी ने जब साउथ अफ़्रीका से भारत आकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेना शुरू किया तो कांग्रेस ने आंदोलन का जो सूत्र वाक्य दिया था, उसे बदलने को कहा। पर नेहरू और कई नेता तैयार नहीं हुए। गांधी ने खुद को कांग्रेस से अलग कर लिया। गांधी चाहते थे कि आंदोलन असहयोग व अंहिसा पर चले। थक हार कर कांग्रेस ने गांधी की बात मानी । अंग्रेजों से लड़ाई का सूत्र वाक्य बदला। जब गांधी की अहिंसा ने भी प्रतिघात किया तो फिर अंग्रेजों के लिए छिपने के लिए अंतिम स्थान भी नहीं बचा और उन्हें हटना ही पड़ा।इससे सबक़ लेकर युवाओं को भी सरकार से अपनी लड़ाई के तौर तरीक़े बदलने चाहिए।

हमें उम्मीद है कि बड़े बहुमत से बार बार चुनी जा रही नरेंद्र मोदी सरकार की ज़िम्मेदारियाँ ज़्यादा बढ़ जाती हैं। उम्मीद है कि सरकार अपनी ज़िम्मेदारी, नौजवान अपनी ज़िम्मेदारी व बाक़ी सभी पक्ष अपनी अपनी ज़िम्मेदारी समझेंगे । पर जिस तरह सरकार के खिलाफ युवा उतर कर सरकारी संपत्तियों को नष्ट कर रहे हैं। उसमें यह तो तय शुदा ढंग से कहा जा सकता है कि हमारे युवाओं के लिए सेना का प्रशिक्षण बेहद ज़रूरी है।

अग्निपथ स्कीम पर पूर्व सैन्य अफसरों ने अपनी प्रतिक्रियायें दी

  • - अग्निवीर योजना भारतीय सशस्त्र बलों को चीनियों की तरह अल्पकालीन अर्ध-प्रतिनिधि बल में परिवर्तित करने के लिए एक व्यापक परिवर्तन है। भगवान के लिए कृपया ऐसा न करें। - मेजर जनरल (डॉ) जीडी बख्शी एसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त)
  • - दो चीजें हैं जिनका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए - अर्थव्यवस्था और सुरक्षा। क्योंकि यह एक राष्ट्र को नष्ट कर सकती है। उन्हें एक विकासवादी दृष्टिकोण से गुजरना चाहिए। ऐसा लगता है कि हम विशेष रूप से इन दो क्षेत्रों में जल्दी में हैं। - मेजर जनरल शैल झा (सेवानिवृत्त)
  • - तथ्य यह है कि प्रौद्योगिकी अब युद्ध में लगातार बढ़ती भूमिका निभा रही है। अमेरिकी सशस्त्र बलों को देखें - वे अधिकांश देशों की तुलना में बहुत छोटे हैं, लेकिन अपनी संख्या के आकार से कहीं अधिक पंच करने में सक्षम हैं। जनशक्ति को कम करने से चीनी सशस्त्र बलों को तकनीकी उन्नयन और सटीक हथियारों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिला है। - सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह
  • - इस योजना पर मुख्य रूप से रिटायर्ड दिग्गजों से कई गलतफहमियां हैं लेकिन वर्दीधारी कर्मियों को लगता है कि यह सफल होगा। मेरा अपना विचार है कि अब योजना आ ही गयी है तो हमें इसे सफल बनाना होगा। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, शुरुआती दिक्कतें आयेंगी लेकिन हमें लचीला होना चाहिए और जहां आवश्यक हो, योजना में बदलाव करने के लिए तैयार रहना चाहिए। - सेवानिवृत्त जनरल एके सिंह
  • - अग्निपथ योजना "सुविचारित और दूरदर्शी पहल" है। अग्निपथ, आने वाले समय में भारत की सुरक्षा जरूरतों और इसकी बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित और अनुशासित जनशक्ति का परिणाम देगा। यूक्रेन संघर्ष ने दिखाया है कि उस देश में इसी तरह के एक मॉडल ने कैसे काम किया है। अग्निपथ निजी सैन्य कंपनियों को बढ़ाने में उसी तरह मदद कर सकता है जैसे अमेरिका ने इराक में ब्लैकवाटर तैनात किया था या रूसियों ने सीरिया में वैगनर समूह का इस्तेमाल किया था या चीनी शिनजियांग में अकादेमिया का उपयोग कर रहे हैं। - लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण (सेवानिवृत्त)
  • - अग्निपथ रक्षा सेवाओं के लिए "परिवर्तनकारी" साबित होगा। यह योजना सेना भर्ती में एक राष्ट्रीय संतुलन लाएगी। इसमें कई सकारात्मक पहलू हैं जैसे कि वित्तीय पैकेज, युद्ध के हताहतों की संख्या और विकलांगों के लिए चिंता। एक अच्छा विच्छेद पैकेज भी है। अग्निपथ गतिशील होना चाहिए। जैसे-जैसे प्रक्रिया आगे बढ़ती है, जहां आवश्यक हो, इसमें बदलाव किया जाना चाहिए। - लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त)
  • - सरकार कुछ नया करने की कोशिश कर रही है। आइए हम चार साल तक प्रतीक्षा करें और देखें कि यह कैसे निकलता है। बहुत कुछ सीखना है। - एयर मार्शल फिलिप राजकुमार (सेवानिवृत्त)
Ragini Sinha

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