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विचार : बेहतर आजीविका की तलाश में किसान, खेती में लगाए रखने की चुनौती

raghvendra
Published on: 10 Nov 2017 11:47 AM GMT
विचार : बेहतर आजीविका की तलाश में किसान, खेती में लगाए रखने की चुनौती
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पांडुरंग हेगड़े

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना 1945 में हुई थी। एफएओ का आकलन है कि भूख, गरीबी और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले मौसमी बदलाव की वजह से लगभग 763 मिलियन लोग अपने ही देश में किसानी छोडक़र बेहतर आजीविका अवसरों की तलाश में प्रवास कर जाते है। भारत की लगभग एक तिहाई आबादी यानी 300 मिलियन से अधिक लोग प्रवासी हैं।

भारत की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि लगभग 84 प्रतिशत लोग अपने राज्य के भीतर ही प्रवास करते हैं और लगभग 2 प्रतिशत लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में चले जाते हैं। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों से बड़ी तादाद में लोग काम और बेहतर रोजगार की तलाश में भारत के विभिन्न हिस्सों में चले गए हैं।

इनमें से ज्यादातर लोग अल्पकालीन प्रवासी हैं, जो थोड़े समय के लिए मजदूरी करते हैं और इसके बाद अपने मूल राज्य में वापस जाकर अपनी छोटी जोतों पर काम करते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार जब किसानों से बातचीत की गई तब 45 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वे खेती छोडऩा चाहते हैं। इसके कई कारण हैं। इनमें खासतौर से उत्पादकता में गिरावट और युवा पीढ़ी के लिए खेती में कोई आकर्षण न होने की वजह से लोग प्रवास करने पर मजबूर हो जाते हैं।

एफएओ ने आह्वान किया है कि ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाएं ताकि ग्रामीण युवा अपने घरों को न छोड़ें। इसके लिए उन्हें लचीली आजीविका प्रदान करनी होगी। कृषि से इतर कारोबारी अवसर भी पैदा करने होंगे। इस संबंध में खाद्य प्रसंस्करण और बागवानी उपक्रमों के जरिए खाद्य सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है। ग्रामीण समुदाय को लंबी राहत देने के लिए सतत विकास की योजना तैयार की जाए।

राष्ट्रीय कृषक आयोग ने आह्वान किया है कि कृषि क्षेत्र में युवाओं को कायम रखने के लिए शिक्षित करना चाहिए। आयोग की सिफारिशों को मानते हुए 2007 में संसद ने राष्ट्रीय कृषि नीति को अपनाया था। इसमें कृषि में युवाओं की संलिप्तता बढ़ाने पर जोर दिया गया है। 2014 में केन्द्र में राजग सरकार के आने के बाद इस संकट को दूर करने के लिए कई कदम उठाए गए। इस संबंध में मृदा स्वास्थ्य कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कृषि विकास योजना इत्यादि ऐसी कुछ योजनाएं हैं जो किसान समुदाय को राहत पहुंचा रही हैं। ये सभी कार्यक्रम प्रवास के संकट को कम करने का हल प्रदान कर रहे हैं।

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सरकार ने एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसके तहत 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का कार्यक्रम तैयार किया गया है। सबसे अनोखा कदम है ‘आर्या’ यानी अट्रैक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर। इसकी शुरूआत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने की है। इस पहल के जरिए बाजार तक पहुंच बनाई जाएगी, ताकि युवा पीढ़ी अपने गांव को लौट सके। कृषि विज्ञान केन्द्र इस योजना को 25 राज्यों में क्रियान्वित कर रहे हैं। इस तरह प्रत्येक राज्य के कम से कम एक जिले में यह योजना चल रही है।

‘आर्या’ की शुरूआत के समय प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा था, ‘जब तक कृषि को आकर्षक और फायदेमंद नहीं बनाया जाएगा, तब तक युवाओं को इस क्षेत्र में कायम रखने में कठनाई होगी।’ जब मौजूदा किसान खेती करना छोड़ रहे हों, तो ऐसे समय में अगर कृषि को फायदेमंद न बनाया गया तो शिक्षित युवाओं को खेती में प्रवृत्त करना बहुत कठिन होगा। जब तक उत्पादकता या आय में इजाफा नहीं होगा, तब तक युवा इसकी तरफ आकर्षित नहीं होंगे। स्किल इंडिया के अंग के रूप में एक अन्य पहल को भारतीय कृषि कौशल परिषद का समर्थन प्राप्त है। इसका मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र की क्षमता बढ़ाना और प्रयोगशाला तथा खेतों के बीच के अंतराल को कम करना है।

आशा है कि इन योजनाओं के जरिए युवाओं को खेती की तरफ दोबारा आकर्षित करने में सफलता मिलेगी। अगर ऐसा न किया गया तो हम ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां किसान परिवार से संबंधित युवा खेती को रोजगार के रूप में अपनाने से परहेज करेंगे। उन्हें इस बात का अनुभव है कि किसान का जीवन कितना कठिन होता है और कड़ी मेहनत के बावजूद उसे अच्छी आय प्राप्त नहीं होती। उन्हें यह अनुभव भी है कि सूखे के समय फसल का कितना नुकसान होता है और किसान कर्जदार हो जाते हैं।

सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदमों के कारण और खेती में तकनीकी नवाचारों के जरिए नए अध्याय की शुरूआत हो रही हैं। सरकार द्वारा 2016 में ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) की शुरूआत एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अखिल भारतीय इलेक्ट्रोनिक कारोबारी पोर्टल है। इसके नेटवर्क के जरिए मौजूदा कृषि उत्पाद विपरण समिति (एपीएमसी) मंडियां कृषि जिंसों के लिए एक समेकित राष्ट्रीय बाजार के रूप में काम करती हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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