Air Pollution : जहरीली होती हवा से गहराता सांसों का संकट

Air Pollution : दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अभी दीपावली आने में कुछ दिन है, उससे पहले ही जहरीली हवा एवं वायु प्रदूषण से उत्पन्न दमघोटू माहौल का संकट जीवन का संकट बनने लगा हैं और जहरीली होती हवा सांसों पर भारी पड़ने लगी है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 21 Oct 2024 11:14 AM GMT
Air Pollution : जहरीली होती हवा से गहराता सांसों का संकट
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Air Pollution : दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अभी दीपावली आने में कुछ दिन है, उससे पहले ही जहरीली हवा एवं वायु प्रदूषण से उत्पन्न दमघोटू माहौल का संकट जीवन का संकट बनने लगा हैं और जहरीली होती हवा सांसों पर भारी पड़ने लगी है। एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआइ बहुत खराब की श्रेणी में पहुंच चुका है। दिल्ली में औसत एक्यूआइ 293 पहुंच गया है। दिल्ली के अनेक क्षेत्रों में यह अभी से 300 पार जा चुका है। अतीत का अनुभव बताता है कि आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा। बढ़ते वायु प्रदूषण से जनता की सांसों पर गहराते संकट के समाधान के लिए सरकार के पास विभिन्न चरणों में लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के अलावा कोई योजना नजर नहीं आती। दिल्ली सरकार जो भी तर्क दें, पर हकीकत यही है कि लोगों का दम घुटेगा, बच्चों एवं बुजुर्गों के सामने बड़ा संकट खड़ा होगा, अगर दिल्ली सरकार सचमुच इससे पार पाने को लेकर गंभीर नहीं हैं, वह गंभीर होती तो पहले से कोई ठोस योजना बनाती। दिल्ली के वायु प्रदूषण एवं हवा के जहरीले होने में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का बड़ा योगदान बताया जाता है। उससे निपटने के प्रयासों के दावे भी राज्य सरकारों द्वारा किए जाते हैं पर वांछित परिणाम नजर नहीं आते। वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए बना आयोग भी जिम्मेदारी के निर्वाह में नाकाम नजर आता है।

प्रश्न है कि पिछले कुछ सालों से लगातार इस महासंकट से जूझ रही दिल्ली को कोई समाधान की रोशनी क्यों नहीं मिलती। सरकारें एवं राजनेता एक दूसरे पर जिम्मेदारी ठहराने की बजाय समाधान के लिये तत्पर क्यों नहीं होते? वैसे प्रदूषण कम करने और दिल्ली सहित देश के अन्य महानगरों-नगरों को रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की नहीं है, बल्कि हम सबकी है। हालांकि लोगों को सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी है, एंटीडस्ट अभियान भी निरन्तर चलाया जाना चाहिए। लोगों को खुद भी पूरी सतर्कता बरतनी होगी। लोगों को खुली जगह में कूड़ा नहीं फैंकना चाहिए और न ही उसे जलाया जाए। वाहनों का प्रदूषण लेवल चैक करना चाहिए। कोशिश करें कि हम निजी वाहनों का इस्तेमाल कम से कम करें और सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करें। प्रदूषण से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि-परीक्षा देता है। पर हां! अग्नि परीक्षा से कोई अपने शरीर पर फूस लपेट कर नहीं निकल सकता।


सुप्रीम कोर्ट राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर कठोर टिप्पणियां करने के साथ सरकार को कठोर एवं प्रभावी कदम उठाने के लिये जागरूक करती रही है। हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने से रोकने में पंजाब सरकार की नाकामी पर सख्त टिप्पणी भी की। पंजाब और दिल्ली, दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं, इसलिए यह आप और भाजपा के बीच राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप का मुद्दा भी बनता रहता है। ध्यान रहे कि पंजाब और दिल्ली के बीच स्थित राज्य हरियाणा में भाजपा की सरकार है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सरकार है, जिसके पश्चिमी क्षेत्र के किसानों पर पराली जलाने का आरोप लगता रहता है। आम आदमी की सेहत ही नहीं, जीवन से भी जुड़े इस जानलेवा मुद्दे पर राजनीति नहीं, बल्कि ठोस समाधान की राह निकलनी चाहिए। हमारे राजनीति दल संवेदनहीन नहीं बल्कि संवेदनशील बने। दीपावली पर आतिशबाजी न हो, इसके लिये व्यापक प्रयत्न किये जाये। क्योंकि पटाखे जलाने से न केवल बुजुर्गों बल्कि बच्चों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ने और अनेक रोगों के पनपने की संभावनाएं हैं। आम जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाली पटाखे जलाने की भौतिकतावादी मानसिकता को विराम देना जरूरी है। प्रदूषण मुक्त पर्यावरण की वैश्विक अभिधारणा को मूर्त रूप देने के लिये इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में पिछले कुछ सालों में कई पायदान हम ऊपर चढ़े हैं, एक सकारात्मक वातावरण बना। लेकिन पटाखों से ज्यादा खतरनाक हैं पराली का प्रदूषण। पराली आज एक राजनीतिक प्रदूषण बन चुका है।

तमाम बंदीशों एवं चेतावनियों के दीपावली की रात आतिशबाजी जमकर होती है, इसके कारण पिछले साल अगले दिन वायु प्रदूषण 999 के बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था। यह आम आदमी की सेहत, खासकर बुजुर्गों और बच्चों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 401 से 500 तक के एक्यूआइ को ही ‘गंभीर’ एवं खतरनाक माना जाता है। वायु प्रदूषण से जुड़े आंकडे हमें बार-बार सतर्क एवं सावधान करने के साथ डराते भी है। यह डराने वाला ही आंकड़ा है कि भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 20 लाख मौतें होती हैं। देश में होने वाली मौतों का यह पांचवां बड़ा कारण है। दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण में पराली और पटाखों की ही तरह वाहनों एवं भवन-निर्माण से जुड़ा प्रदूषण भी खतरनाक होता है। भू-विज्ञान मंत्रालय के एक रिसर्च के अनुसार वायु निर्माण में 41 प्रतिशत हिस्सेदारी वाहनों की रहती है। भवन निर्माण आदि से उड़नेवाली धूल 21.5 प्रतिशत के दूसरे स्थान पर है। दिल्ली परिवहन विभाग के आंकड़े के मुताबिक पिछले 30 साल में वाहन और उनसे होने वाला प्रदूषण तीन गुणा बढ़ गया है। फिर भी सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को बेहतर और विश्वसनीय बनाने की दिशा में कुछ खास नहीं किया गया।


इस विषम एवं ज्वलंत समस्या से मुक्ति के लिये हर राजनीतिक दल एवं सरकारों को संवेदनशील एवं अन्तर्दृष्टि-सम्पन्न बनना होगा। क्या हमें किसी चाणक्य के पैदा होने तक इन्तजार करना पड़ेगा, जो जड़ों में मठ्ठा डाल सके।...नहीं, अब तो प्रत्येक राजनीतिक मन को चाणक्य बनना होगा। तभी विकराल होती वायु प्रदूषण की समस्या से मुक्ति मिलेगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत के आसपास है। अभी से हर दिन पराली जलाने की घटनाएं दर्ज होने लगी है। क्या इसे रोकना वाकई इतना कठिन है? आखिर दिल्ली, पंजाब के साथ केंद्र सरकार इसके लिए क्या कर रही है कि किसान पराली न जलाएं? सच यह है कि इसके लिए कोई प्रभावी कोशिश हो ही नहीं रही है। किसानों से बात करने का साहस कोई भी सरकार नहीं दिखा रही है। ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो खेती के नाम पर कुछ भी करने की छूट है। इसका कारण राजनीतिक ही है। कोई किसान है, इसका यह अर्थ नहीं कि उसे वातावरण को दमघोंटू बनाने एवं लोगों के जीवन को संकट में डालने का अधिकार है।

अभी से दिल्ली की आबोहवा बच्चों और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से खतरनाक होने लगती है। दिल्ली की हवा में उच्च सांद्रता है, जो बच्चों को सांस की बीमारी और हृदय रोगों की तरफ धकेल रही है। शोध एवं अध्ययन में यह भी पाया गया है कि यहां रहने वाले 75.4 फीसदी बच्चों को घुटन महसूस होती है। 24.2 फीसदी बच्चों की आंखों में खुजली की शिकायत होती है। सर्दियों में बच्चों को खांसी की शिकायत भी होती है। बुजुर्गों का स्वास्थ्य तो बहुत ज्यादा प्रभावित होता ही है। सर्दियों के मौसम में हवा में घातक धातुएं होती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत आती है। हवा में कैडमियम और आर्सेनिक की मात्रा में वृद्धि से कैंसर, गुर्दे की समस्या और उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसमें पराली के प्रदूषण से घातकता कई गुणा बढ़ जाती है। पटाखों का प्रदूषण उससे भी घातक है। 300 से अधिक एक्यूआइ वाले शहरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले सांस के रूप में जहर खींचने को क्यों विवश है, इसके कारणों पर इतनी बार चर्चा हो चुकी है कि उन्हें दोहराने की आवश्यकता नहीं।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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