TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

न्यायपालिका से सर्तकता अपेक्षित है, पत्रकारों की जांच भी

यहां गमनीय तथ्य यह है कि पत्रकारों के अधिवक्ता तथा कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि वे नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन आदेश का विरोध नहीं कर रहे है।

Newstrack
Published on: 31 Oct 2020 10:02 AM IST
न्यायपालिका से सर्तकता अपेक्षित है, पत्रकारों की जांच भी
X
पत्रकारों के अधिवक्ता तथा कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि वे नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन आदेश का विरोध नहीं कर रहे है।

के. विक्रम राव

न्याय का गर्भस्राव (miscarriage of justice) होने से उच्चतम न्यायालय ने बचा लिया। वर्ना नैनीताल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवीन्द्र नैथानी द्वारा बिना सम्यक न्यायिक प्रक्रिया अपनाये उत्तराखण्ड के भाजपायी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के विरूद्ध सीबीआई जांच का आदेश (27 अक्टूबर 2010) दे दिया गया था। विपक्षी दलों का मुख्यमंत्री से त्यागपत्र की मांग का कोरस भी शुरू हो गया था। समूचे पहाड़ पर सियासी भूचाल आ गया था। सुप्रीम कोर्ट (29 अक्टूबर) के जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा कि यह हाई कोर्ट का आदेश भयावह है, क्योंकि आदेश पारित होने से पहले मुख्यमंत्री को नहीं सुना गया। यह आश्चर्यजनक है कि याचिकाकर्ता की अर्जी में सीएम के खिलाफ केस दर्ज करने की गुहार भी नहीं थी।

यहां गमनीय तथ्य यह है कि पत्रकारों के अधिवक्ता तथा कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि वे नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन आदेश का विरोध नहीं कर रहे है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह का सख्त आदेश देने से सब अचंभित रह गये क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था। पीठ ने कहा कि इस मामले में राज्य पक्षकार नहीं था और अचानक ही प्राथमिकी का आदेश और ऐसे कठोर निर्देश से सभी दंग रह गये। मुख्यमंत्री की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि एक पक्ष, जो मुख्यमंत्री है, को सुने बगैर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती और इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा।

ये भी पढ़ें...तुर्की में भारी तबाही, भीषण भूकंप से आयी सुनामी, मचा हाहाकार

अपनी याचिका में दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखण्ड के गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के रिश्तेदार के खातों में धन अंतरित किया गया था।

ये भी पढ़ें...राष्ट्रपति शी जिनपिंग का बड़ा प्लान: अब आया सबके सामने, चीन में हलचल हुई तेज

ऐसी आशंका हम पत्रकारों को होना सहज है कि नैनीताल उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को पत्रकार मानकर त्वरित न्याय पर निर्णय दे दिया। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नालिस्ट्स (आईएफडब्लयूजे) को आश्चर्य हुआ कि फेक और पेड न्यूज के इस घृणित दौर में न्यायालय भी बिना सत्यता की जांच किये किसी को भी पत्रकार मान ले। हालही में हाथरस तथा चीन की जासूसी के संदेह में कुछ कथित मीडिया वालों को हिरासत में ले लिया गया था। यह खतरे की घंटी है। आईएफडब्लयूजे का विरोध यह है कि कुछ वकील लोग और मीडिया मालिक लोग अपने को पत्रकार के रूप में पेश करने से नहीं हिचकते। गैरपेशेवर तरीके से लाभ उठाते हैं।

ये भी पढ़ें...हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : सिर्फ विवाह के लिए धर्मपरिवर्तन करना वैध नहीं

उत्तराखण्ड मुख्यमंत्री के विरूद्ध याचिकाकर्ता उमेश शर्मा एक चैनल का स्वामी है अर्थात श्रमजीवी पत्रकार नहीं है। कुछ महीनों पूर्व वह उत्तराखण्ड तथा झारखण्ड में आपराधिक मामले में हिरासत में कैद था। उस वक्त शर्मा अपने को हमारे आईएफडब्लयूजे का उपाध्यक्ष बताता था। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार (दिल्ली सरकार) के रिकॉर्ड से साफ हो जायेगा कि पंजीकृत आईएफडब्लयूजे का उपाध्यक्ष कौन है। अत: न्याय केन्द्रों को भी ऐसे याचिकाकर्ता के दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए जिसमें वह दावा करता है कि वह पत्रकार है।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें



\
Newstrack

Newstrack

Next Story