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अम्बेडकर- मिथक और यथार्थ
अब ये सारे सदस्य अम्बेडकर से कतई कमतर नहीं थे| कई मायने में डॉ. अम्बेडकर को ऊँचा दिखाने की साजिश में इन कानूनी दिग्गजों को नीचा दिखाया जाता रहा है| ऐसा भान होता रहा कि सारा श्रेय संविधान निर्माण का केवल डॉ. अम्बेडकर को ही देना था| अर्थात् ये विद्वान सदस्य शायद फाइलें लगाने और मेजें झाड़ने के लिए ही नियुक्त हुए थे| अतः इतिहासकारों को एक घटिया मिथक तोड़ देना चाहिए|
के. विक्रम राव
गत मंगलवार डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर की 129वीं जयंती पर कुछ मित्रों ने पूछा कि क्या डॉ. अम्बेडकर एक मात्र व्यक्ति रहे जिन्होंने आजाद भारत के गणराज्यीय संविधान की रचना की? उन्हें ही इकलौता निर्माता क्यों माना जाता है ? इसका औचित्य कितना है?
अपने लखनऊ विश्वविद्यालय के एमए (राजनीतिशास्त्र) के पुराने दिन (1960) याद आ गये| तब हम सब इसी मसले पर चर्चा करते थे। कुछ नारे भी हमें स्मरण हो आते हैं “कॉमनवेल्थ से नाता तोड़ो” और “यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है।” यह सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट (1948 में) लगाते थे।
इसका खास कारण था कि संविधान सभा में जो 389 सदस्य थे वे प्रदेश विधान मंडलों और रियासतों से सीमित मतदाता वर्ग द्वारा निर्वाचित थे। इनमें कई स्वाधीनता सेनानी रहे। मगर संविधान निर्मात्री समिति के सातों सदस्य तो भारत की जंगे आजादी में शामिल थे ही नहीं, बल्कि कुछ तो बर्तानवी सरकार के लाभकारी पदों पर भी विराजमान थे।
केवल कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी गाँधी जी के साथ थे। हालाँकि “भारत छोडो” सत्याग्रह (1942) से दूर ही रहे। उन दिनों डॉ. अम्बेडकर ब्रिटिश वायसराय की मंत्री परिषद में काबीना मंत्री थे। उस वक्त उनकी सरकार सत्याग्रहियों को गोलियों से भून रही थी। उसमें 24,000 शहीद हुए थे और 80,000 जेल गये थे।
हसरत मोहानी ने किया था हस्ताक्षर से इनकार
शायद यही कारण है कि उन्नाव के क्रांतिकारी, प्रमुख कम्युनिस्ट नेता और शायर मौलाना हसरत मोहानी ने इस संविधान के पारित होने पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था। जवाहरलाल नेहरु मनाते रहे। मौलाना नहीं माने। आज के मुसलमान भूल गए कि हसरत मोहनी ने तब धारा 370 का खुले आम विरोध किया था। एक राष्ट्र में दो निजाम उन्हें गवारा नहीं था। मोहानी ने ही “इन्कलाब जिंदाबाद” का नारा रचा था, जिसे भगत सिंह ने प्रचारित किया था।
संविधान निर्माण में किस सदस्य कि कितनी किरदारी रही ? इन सदस्यों की निजी अर्हताएं क्या थीं? संविधान के प्रारूप को गढ़ने में क्या बौद्धिक सहयोग सदस्यों ने किया? ये सब प्रश्न अनुत्तरित रह गए थे। आज भी जस के तस हैं।
तो सिलसिलेवार देखें
सर्वप्रथम 29 अगस्त 1947 को संविधान निर्मात्री समिति बनी जिसके जिम्मे यह काम था कि संविधान के प्रस्तुत प्रारूप पर बहस करें और फिर उसे 389 सदस्यों वाले संविधान सभा में पेश करें जो उसे अंतिम रूप देगी। बुनियादी मसौदे पर विधि परामर्शदाता बेनेगल नरसिम्हा राव ने 1946 में ही काम आरम्भ कर दिया था।
अब आयें अम्बेडकर द्वारा संविधान निर्माण में किये योगदान के परिमाण पर। बेनेगल नरसिम्हा राव परामर्शदाता के नाते 1944 से 1948 तक अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों की यात्रा कर तमाम संविधानों का अध्ययन कर रहे थे। राव ने 21 फरवरी 1948 को संविधान के प्रारूप को निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर को दे दिया था।
इसी बैठक में (29 अगस्त 1947) अंगीकृत प्रस्ताव में कहा गया था कि, “संविधान परामर्शदाता बी. एन. राव द्वारा रचित मसौदे पर विचार कर उसे संविधान सभा (संसद) में पारित करने हेतु प्रेषित करें।”
मानवेंद्र नाथ राय
संविधान निर्माण के लिए एक आधारभूत दस्तावेज 1944 का था, जिसे “स्वतंत्र भारत का संविधान” शीर्षक से एम. एन. राय (मानवेन्द्र नाथ राय) ने कांग्रेस को दिया था। वे रूस की बोल्शेविक क्रांति में व्लादिमीर लेनिन के साथी थे। मगर जोसेफ स्टालिन से मतभेद के कारण भारत आकर उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी।
एम. एन राय जवाहरलाल नेहरू के अन्तरंग मित्र थे। चीन के माओ ज़ेडोंग के परामर्शदाता थे। बंगाल के शाक्त विप्र थे और बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के अनुयायी थे। सुभाष चन्द्र बोस उनके प्रशंसकों में थे।
अम्बेडकर ने श्रेया बीएन राव को दिया था
अंतिम प्रारूप संविधान सभा को प्रस्तुत करते समय डॉ. अम्बेडकर ने कहा था: “ इस संविधान की रचना का श्रेय बी. एन. राव को जाता है, न कि मुझको।” राव ने 1947 में बर्मा का संविधान भी बनाया था।
संविधान सभा ने हर धारा तथा अनुच्छेद पर बहस की। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सभा के अध्यक्ष थे। यह वही छात्र थे जिसके लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय के कानून विषय के (मास्टर ऑफ़ लॉ) परीक्षक ने लिखा कि, “परीक्षार्थी परीक्षक से भी अधिक जानकार है।” फिर वे राष्ट्रपति बने थे।
अम्बेडकर के अलावा और भी
अब संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर तथा शेष सदस्यों को भी जान लें। डॉ. अम्बेडकर दलित और वंचित परिवार के थे जिन्होंने बड़ौदा महाराज के वजीफे पर लन्दन जाकर बैरिस्टरी पढ़ी।
युगों से शोषित हुए हरिजनों को स्वतंत्र भारत में न्याय दिलाने हेतु प्रायश्चित के तौर पर (राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अनुरोध पर) उन्हें संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
सर अल्लाडी कृष्णास्वामी अय्यर
समिति के सदस्य के रूप में सर अल्लाडी कृष्णास्वामी अय्यर नामित हुए। वे अविभाजित मद्रास राज्य के महाधिवक्ता रहे। नेल्लुरु (अब आंध्र प्रदेश) के छोटे से गाँव पुडूरू में एक पुजारी के पुत्र के रूप में 1883 में जन्मे, कृष्णास्वामी को ब्रिटिश सरकार ने दीवान बहादुर के ख़िताब से नवाजा था।
डॉ. अम्बेडकर ने कहा था, “सर अल्लाडी कृष्णास्वामी का योगदान मुझ से कहीं ज्यादा रहा है|” मद्रास हाईकोर्ट में जब वकील कृष्णास्वामी बहस शुरू करते थे तो अंग्रेज जज याचना करते थे कि “वकील महोदय ! इसके पूर्व कि आप अपनी वाग्मिता की धारा प्रवाह में हमें बहा दें, कृपया आपके खास तर्कों से हमें अवगत करा दें|”
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
दूसरे सदस्य थे कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी, गुजराती के साहित्यकार और हिंदी तथा अंग्रेजी के विद्वान। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील जो नेहरु काबीना में खाद्य मंत्री रहे और उत्तर प्रदेश के तीसरे राज्यपाल (1952-57) थे। उन्होंने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
भारतीय विद्या भवन के संस्थापक, मुंशी जी ने गाँधी जी का साथ 1942 में छोड़ दिया क्योंकि इनका मानना था कि गृह युद्ध द्वारा ही अखण्ड हिंदुस्तान सुरक्षित रह सकता है। पाकिस्तान को रोकने का यही तरीका है। अगले सदस्य थे मोहम्मद सादुल्ला जो असम के मुख्य मंत्री रहे। मुस्लिम लीग के नेता थे तथा “पाकिस्तान प्रस्ताव” के लिए 1940 में लाहौर सम्मेलन में शरीक हुए। पर वे रहे आजाद भारत में ही।
एन माधव राव
एन माधव राव जो मछलीपत्तनम (आन्ध्र) के वासी थे| दीवान मिर्जा इस्माइल के बाद मैसूर के दीवान बने। मद्रास में विधि अध्ययन किया। वे तेलुगु भाषी थे जो हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का विरोध करते रहे।
टीटी कृष्णमाचारी भारत के वित्त मंत्री रहे। उनके पिता मद्रास हाईकोर्ट के जज थे। मूंधड़ा कांड के घोटाले को फिरोज गाँधी द्वारा उजागर करने पर उन्होंने नेहरू-काबीना छोड़ दिया। एन गोपालास्वामी अय्यंगर कश्मीर के प्रधान मंत्री (1937-1943) रहे। मद्रास विश्वविद्यालय में विधि के प्राचार्य थे। रक्षा मंत्री (1952-53) थे| उद्योगपति देवी प्रसाद खेतान भी सदस्य थे। वे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (दि हेग, नीदरलैंड) में जज नियुक्त होकर चले गये।
भ्रांतियों और विकृतियां गवारा नहीं की जा सकती हैं
अब ये सारे सदस्य अम्बेडकर से कतई कमतर नहीं थे। कई मायने में डॉ. अम्बेडकर को ऊँचा दिखाने की साजिश में इन कानूनी दिग्गजों को नीचा दिखाया जाता रहा है। ऐसा भान होता रहा कि सारा श्रेय संविधान निर्माण का केवल डॉ. अम्बेडकर को ही देना था। अर्थात् ये विद्वान सदस्य शायद फाइलें लगाने और मेजें झाड़ने के लिए ही नियुक्त हुए थे।
अतः इतिहासकारों को एक घटिया मिथक तोड़ देना चाहिए। योग्यता का आधार केवल जाति से निर्धारित नहीं होना चाहिए। आज सत्तर साल के प्रौढ़ भारत में भ्रांतियाँ और विकृतियाँ गवारा नहीं की जा सकती हैं। फिर सवाल भी उठेगा कि संविधान इतना उत्कृष्ट बना था तो सात दशक में ही 104 बार सुधारना, संशोधन क्यों करना पड़ा ? अमेरिका का संविधान (1789) सवा दो सौ सालों में केवल 27 बार संशोधित हुआ।
K Vikram Rao
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