अमेरिका में संकट में प्रवासी भारतीय

raghvendra
Published on: 22 Jun 2018 9:48 AM GMT
अमेरिका में संकट में प्रवासी भारतीय
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प्रमोद भार्गव

अमेरिकी नागरिक बन जाने की प्रबल इच्छा रखने वाले भारतीयों के लिए बुरी खबर सामने आई है। यहां ग्रीन कार्ड प्राप्त करने वालों की सूची इतनी लंबी हो गई है कि कई लोगों को 92 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। इतनी लंबी प्रतीक्षा वही कर सकते हैं, जिन्हें भगवान ने सवा सौ साल से भी ज्यादा की उम्र दी हो? गोया न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी वाली कहावत चरितार्थ होने जा रही है।

अमेरिकी ग्रीन कार्ड पाने की लालसा में जिन गैर-अमेरिकियों ने अर्जियां लगाई हुई हैं,उनकी संख्या 3,95,025 है। इनमें से अकेले भारतीयों के आवेदनों की संख्या 3,06,601 है। मसलन अमेरिका में ग्रीन कार्ड हासिल कर वहां के मूल निवासी बन जाने की अभिलाषा रखने वाले भारतीयों की संख्या तीन-चौथाई है। जबकि अमेरिकी कानून के हिसाब से किसी एक देश को कुल जारी किए जाने वाले ग्रीन कार्ड का 7 प्रतिशत से ज्यादा देने का प्रावधान ही नहीं है। चुनांचे इस कोटे के चलते सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ रहा है, क्योंकि सबसे लंबी सूची उन्हीं की है। नतीजतन उन्हें भविय में अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर भारत आना ही होगा। अमेरिकी राट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी प्रथम की जो धारणा बनाई हुई है, उसके चलते यह गुंजाइश भी कम है कि उनके चलते कोटे में कोई बढ़ोतरी की जाएगी।

अमेरिका में बसने की इच्छा रखने वालों में दूसरे पायदान पर चीनी नागरिक हैं। इनकी संख्या 67,031 है। इसके बाद अल-साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, फिलीपींस, मेक्सिको और वियतनाम के प्रवासी हैं। किंतु इनमें से किसी भी देश के आवेदकों की संख्या 10,000 से अधिक नहीं है। इसी जून माह में अमेरिका उन लाखों भारतीय महिलाओं को भी नमस्ते कर सकता है, जिनके जीवनसाथी वहां पहले से ही नौकरियों में हैं। दरअसल ट्रंप प्रशासन एच-1 बी वीजा के उस प्रावधान को रद्द कर सकता है, जिसके तहत पति व पत्नी दोनों अमेरिका में रहकर नौकरी कर सकते थे। अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देने के लिहाज से ऐसा किया जा रहा है।

ओबामा प्रशासन ने ऐसी प्रतिभावान पत्नियों को काम करने की अनुमति एच-1 वीजा के तहत दी हुई थी, जो कंपनियों की योजनाओं को अमल में लाने में सक्षम थीं। इस कारण वहां अनेक उच्च शिक्षित भारतीय गृहणियों को नौकरियां मिली हुई हैं। कंपनियां भी उनके कामकाज से खुश हैं। उन्हें यह सुविधा स्पेशल वर्क परमिट के जरिए मिली हुई है। अलबत्ता अब अमेरिकी प्रशासन ने इन्हें अपने देश लौट जाने का निर्देश भी दे दिया है। यदि सरकार प्रावधान में संशोधन नहीं करती है तो इसी माह 30 जून को इन्हें नौकरियों से बेदखल कर दिया जाएगा। हालांकि अमेरिकी कंपनियां ट्रंप की इन इकतरफा नीतियों से प्रसन्न नहीं है। उन्होंने अमेरिकी संसद (सीनेट) के जरिए विरोध भी जताया है। यहां के पेशेवर ट्रंप की इस पहल को आत्मघाती तक बता रहे हैं। जल्दबाजी में अमल में लाई जा रही इन नीतियों में अनेक कमियां हैं, जिनका स्थानीय स्तर पर विरोध भी हो रहा है। ट्रंप के फैसलों को अतार्किक बताते हुए दावा किया जा रहा है कि इससे ऐसे लाखों लोग प्रभावित होने जा रहे हैं।

यदि वाकई ऐसा होता है तो आज अमेरिका में जो विदेशी प्रवासियों के बच्चे हैं, उनकी उम्र 21 साल पूरी होते ही उनकी रहने की वैधता खत्म हो जाएगी। उनकी स्थिति आकाश में उड़े, खजूर में अटके जैसी हो जाएगी। दरअसल एच-1 बी वीजा वाले नौकरीपेशा की पत्नियों और बच्चों के लिए एच-4 वीजा जारी किया जाता है, लेकिन बच्चों की 21 साल उम्र पूरी होने के साथ ही इसकी वैधता खत्म हो जाती है। इन्हें जीवन-यापन के लिए दूसरे विकल्प तलाशने होते हैं। ऐसे में ग्रीन कार्ड प्राप्त कर अमेरिका के स्थायी रूप में मूल निवासी बनने की संभावनाएं शून्य हो जाती हैं। दरअसल अमेरिका में प्रावधान है कि यदि प्रवासियों के बच्चे 21 वर्ष की उम्र पूरी कर लेते हैं और उनके माता-पिता को ग्रीन कार्ड नहीं मिलता है तो वे कानूनन स्थायी रूप से अमेरिका में रहने की पात्रता खो देते हैं। इसी कारण वहां नियमों में बदलाव की मांग जोर पकड़ रही है।

अमेरिका में प्रवासी भारतीयों की संख्या 1,47,500 है जो वहां के विदेशी प्रवासियों का कुल 5.5 प्रतिशत हैं। भारत के बाद अमेरिका में चीन के 1,31,800, मैक्सिको के 1,30,000 और कनाडा के 41,200 लोग रहते हैं। अमेरिका की कुल जनसंख्या 31.50 करोड़ है, इस आबादी की तुलना में उसका भू-क्षेत्र बहुत बड़ा यानी 98,33,520 वर्ग किमी है।

इतने बड़े भूलोक के मालिक अमेरिका के साथ विडंबना यह भी रही है कि 15वीं शताब्दी तक उसकी कोई स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहचान ही नहीं थी। दुनिया केवल एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों से ही परिचित थी। 1492 में नई दुनिया की खोज में निकले क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। हालांकि कोलंबस अमेरिका की बजाय भारत की खोज में निकला था, लेकिन रास्ता भटककर वह अमेरिका पहुंच गया। वहां के लोगों को उसने रेड इंडियन कहकर पुकारा क्योंकि ये तांबई रंग के थे और प्राचीन भारतीयों से इनकी नस्ल मेल खाती थी। हालांकि इस क्षेत्र में आने के बाद कोलंबस जान गया था कि वह भारत की बजाय कहीं और पहुंच गया है। बावजूद उसका इस दुर्लभ क्षेत्र में आगमन इतिहास व भूगोल के लिए एक क्रांतिकारी पहल थी। कालांतर में यहां अनेक औपनिवेशिक शक्तियों ने अतिक्रमण किया।

इसी क्रम में 1607 में अंगेजों ने वर्जीनिया में अपनी बस्तियां बसाईं। इसके बाद फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड ने उपनिवेश बनाए। 1733 तक यहां 13 बस्तियां अस्तित्व में आ गयीं। इन सब पर ब्रिटेन का प्रभुत्व कायम हो गया। 1775 में ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध छिड़ गया। 4 जुलाई 1776 में जॉर्ज वाशिगटंन के नेतृत्व में अमेरिकी जनता ने विजय प्राप्त कर ली और संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन कर स्वतंत्र और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में वह अस्तित्व में आ गया। इसीलिए कहा जाता है कि अमेरिका के इतिहास व अस्तित्व में दुनिया के प्रवासियों का बड़ा योगदान रहा है। साथ ही यहां एक बड़ा प्रश्न यह भी खड़ा हुआ कि अमेरिका महाद्वीप के जो रेड इंडियन नस्ल के मूल निवासी थे, वे हाशिये पर चले गए। गोया मूल अमेरिकी तो वंचित रह गए, अलबत्ता विदेशी प्रवासी अमेरिका के मालिक बन बैठे। इस विरोधाभास का मूल्यांकन करके ही ट्रंप चिंतित हैं कि आईटी टेक्नाक्रेट के बहाने जो आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिकी संस्थाओं व कंपनियों पर प्रभावी होते जा रहे हैं, वे मूल-अमेरिकियों के लिए अमेरिकी संस्थाओं में बेदखली और बेरोजगारी का कारण भी बन रहे हैं। इसी लिहाज में ट्रंप अमेरिका-फस्र्ट की नीति को महत्व दे रहे हैं।

इस दृष्टिकोण से यदि वर्तमान संयुक्त राज्य अमेरिका का नृजातीय रूप में मूल्यांकन करें तो पता चलता है कि यहां मूल अमेरिकियों, मसलन रेड इंडियनों की आबादी महज 2.7 प्रतिशत ही रह गई है। शेष 97.7 फीसदी भूमि पर यूरोप, अफ्रीका और एशिया से आ बसे लोगों का कब्जा है। 2008 में अमेरिका में हुई जनगणना के आधार पर यहां की कुल आबादी 30.50 करोड़ है। इसमें से महज नवाजो और चरुकी जनजाति के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें अधिकांश लोग अब अपनी संस्कृति से कट गए हैं। अलग मंत्रालय खोलकर इनके कल्याण के लिए पहल की जा रही है। अमेरिका में कुल आबादी में से 13.66 फीसदी लोग गरीबी-रेखा के नीचे हैं। इन्हीं में सर्वाधिक बेरोजगारी है। राट्रपति ट्रंप शायद ऐसे ही लोगों की बेरोजगारी दूर करने के लिए वीजा संबंधी नियमों को कठोर बना रहे हैं। लेकिन आज अमेरिका जिस विकास और समृद्घि को प्राप्त कर दुनिया पर अपना प्रभुत्व जमाए बैठा है, उसकी पृष्ठभूमि में दुनिया के प्रवासियों का ही प्रमुख योगदान रहा है। इसीलिए कहा जा रहा है कि ट्रंप को प्रवासी भारतीयों समेत अन्य प्रवासियों को अमेरिका में ही बसाए रखने की नीति जारी रखनी चाहिए।

(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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