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जब कांग्रेस ने देवर को वरमाला डाला

गुजरात के राजकोट क्षेत्र के उच्छरंगराय नवलशंकर ढेबर की 21 सितंबर, 2021 को 116वीं जयंती है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 21 Sep 2021 2:43 PM GMT
Uchhrang Rai Navalshankar Dhebar
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उच्छरंगराय नवलशंकर ढेबर की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

आजादी के अमृत महोत्सव (Amrit Mahotsav) वर्ष में एक कांग्रेस अध्यक्ष हुये थे जिसने 49 वर्ष की आयु में जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) तथा इन्दिरा गांधी (Indira Gandhi) के बीच आकर स्वतंत्र्योत्तर भारत की दशा बदल दी। गति तेज कर दी। गुजरात के राजकोट इलाक़े के उच्छरंगराय नवलशंकर ढेबर (Uchhrang Rai Navalshankar Dhebar) जिनकी आज यानी 21 सितंबर, 2021 को 116वीं जयंती है। ढेबर का वह संघर्षशील नेतृत्व था कि जूनागढ़ रियासत (junagadh riyasat) (गिर शेरों के लिये मशहूर) को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाया गया था। वर्ना इस हिन्दू—बहुल सूबे के नवाब मोहम्मद महाबत खान तृतीय तो मोहम्मद अली जिन्ना की गोद में बैठ गया था। जनांदोलन का नतीजा था कि नवाब को अपने छोटे वायुयान में राज छोड़कर कराची भागना पड़ा था। तब केवल एक सीट बची थी। दावेदार थे उनके दीवान सर शाहनवाज खॉ भुट्टो के कनिष्ठ पुत्र जुल्फीकार अली भुट्टो और नवाब का पालतू कुत्ता। नवाब की पसंद प्रिय चौपाया था। जुल्फीकार 1953 तक बम्बई में पीलू मोदी के साथ पढ़े थे।

ढेबर, बापू के भतीजे और आरजी हुकूमत के मुखिया सामलदास लक्ष्मीदास गांधी और उनके साथियों को श्रेय जाता है। ढेबर जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो राजनीतिक परिस्थितियां माकूल नहीं थीं। बाबू पुरुषोत्तमदास टंडन को हटने पर विवश कर नेहरु स्वयं पार्टी अध्यक्ष बने थे। फिर चार साल बाद तय हुआ कि पुराना केवल दो—बार निर्वाचन वाला नियम पुन: लागू हो। पर नेहरु को पता था कि पार्टी पर नियंत्रण न रहे तो प्रधानमंत्री पद पर संकट आ सकता है। अत: विकल्प था कि पुत्री इन्दिरा फिरोज गांधी ही अध्यक्ष बने। उनकी आयु थी केवल 37 वर्ष। हुकुम बरदार ढेबर ने पद तजकर इंदिरा प्रियदर्शिनी का नाम प्रस्तावित किया। तब प्रयागराज के गांव खागा में वे दौरे पर थीं। ढेबर द्वारा बेटी के नामांकन को तत्काल पिता ने स्वीकारा। तब लखनऊ के एक दैनिक का कार्टून था कि पहली बार वयोवृद्ध कांग्रेस पार्टी ने बजाये पति के 'देवर' (ढेबर) के गले वरमाला डाली। उसके बाद से ढेबर ही अंतिम विधिवत निर्वाचित अध्यक्ष रहे।

इन्दिरा गांधी लगातार अध्यक्ष पद पर हावी रहीं अथवा नामित करतीं रहीं। हालांकि इन्दिरा गांधी के विरुद्ध मैसूर राज्य के कांग्रेस नेता प्रत्याशी बने थे। पर अध्यक्ष बन नहीं पाये थे। यहीं एस. निजलिंगप्पा थे जिनकी अध्यक्षता में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को कांग्रेस विरोधी अनुशासनहीनता हेतु 12 नवम्बर ,1969 को निष्कासित कर दिया गया था। पार्टी टूट गयी थी। ढेबर इस विभाजन के मूक साक्षी थे। उन दिनों अखबारीवाजी जोरों पर थी कि ''नेहरु के बाद कौन?'' लाल बहादुर शास्त्री रहस्योदघाटन भी कर चुके थे कि: ''पंडिजी जी के दिल में तो बस उनकी दुहिता का नाम है।'' मगर सोशलिस्ट नेता डा. राममनोहर लोहिया ज्यादा मुहंफट थे। वे बोले :''मोतीलाल, फिर जवाहरलाल और अब इन्दिरा गांधी ही हैं।'' फिर आदतन शरारत में कहा : ''खूसट चेहरे की जगह समाचारपत्रों में कम से कम एक हसीन तस्वीर तो अब सुबह, सुबह दिखेगी।''

ढेबर का राजनीतिक जीवन घटनाओं से भरा था। वे सौराष्ट्र प्रदेश के 1948 से 1954 तक मुख्यमंत्री रहे। बाद में उसका वृहत गुजरात राज्य में विलय हो गया था। योजना आयोग की अवधारणा, भूमि सुधार का अभियान, सीमा शुल्क, रियासती रेलवे, आयकर और सशस्त्र सुरक्षा बल के सुधार तथा विकास में ढेबर का अपार योगदान था। लेकिन सौराष्ट्र में छोटी—छोटी जमीनदारी तथा रजवाडों को एक सूत्र में पिरोकर ढेबर ने सरदार पटेल को पेश किया और प्रशंसा पाये। मगर कांग्रेस इतिहास में नेहरू और इन्दिरा गांधी के बीच में निर्वाचित हुये यह अध्यक्ष थे। वह याद सदैव रहेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Raghvendra Prasad Mishra

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