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पश्चिम बंगाल के ‘मतुआ’ हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने का ऐलान

देश के बँटवारे के समय बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर ने बंगाल के प्रख्यात दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल को सलाह दी थी, कि वे पाकिस्तान से हिंदुओं जिसमें अधिकतर दलित और पिछड़े थे, को लेकर भारत आ जाय, क्योंकि इस्लामिक देश में हिंदू सुरक्षित नहीं रह पाएँगे।

Chitra Singh
Published on: 13 Feb 2021 4:42 PM IST
पश्चिम बंगाल के ‘मतुआ’ हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने का ऐलान
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पश्चिम बंगाल के ‘मतुआ’ हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने का ऐलान

Former DGP Brijlal

बृजलाल

गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के ‘मतुवा’ हिंदुओं को ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के तहत भारत की नागरिकता देने का ऐलान किया है। मतुवा भी पूर्वी पाकिस्तान ( बंगलादेश) से ‘नमों शूद्र’ हिंदुओं की तरह पलायित होकर आये थे।

इस्लामिक देश में हिंदू सुरक्षित नहीं

देश के बँटवारे के समय बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर ने बंगाल के प्रख्यात दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल को सलाह दी थी, कि वे पाकिस्तान से हिंदुओं जिसमें अधिकतर दलित और पिछड़े थे, को लेकर भारत आ जाय, क्योंकि इस्लामिक देश में हिंदू सुरक्षित नहीं रह पाएँगे। जोगेंद्र बाबू ने उनकी सलाह नहीं मानी और कहा कि पूर्वी पाकिस्तान में दलितों- पिछड़ों की स्थिति वहाँ के मुसलमानों जैसी ही है। वे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उन्ही की भाँति पिछड़े हैं। नये इस्लामिक देश में मुसलमानों की तरह उनका भी सम्पूर्ण विकास होगा।

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पाकिस्तान समविधान मसौदा

जोगेंद्र बाबू ने जिन्ना के ’Direct Action’ 16 अगस्त 1946 से भी सबक़ नहीं लिया, जिसमें कोलकाता सहित नोवाख़ाली में हुवे साम्प्रदायिक दंगों में हज़ारों लोग मारे गये थे। जिन्ना ने जोगेंद्रनाथ मंडल को पाकिस्तान का क़ानून मंत्री और ‘पाकिस्तान समविधान मसौदा’ समिति का अध्यक्ष बनाया। देश के बँटवारे के बाद हिंदुओं का कत्लेआम हुवा और जोगेंद्रनाथ मंडल लाख प्रयास के बाद भी कुछ नहीं कर पाये। उनके पूर्वी पाकिस्तान में 1950 तक लगभग 50,000 हिंदू मारे गये, महिलाओं के बलात्कार हुवे।

West Bengal

दलित-मुस्लिम

जोगेंद्र बाबू का’दलित -मुस्लिम’ गठजोड़ का भ्रम टूट गया और वे दलितों को पाकिस्तानी भेड़ियों के रहमों-करम पर छोड़ कर 8-10-1950 को भारत भाग आये और गुमनामी में 5-10-1968 को उनका देहांत हुआ। दूरदर्शी और राष्ट्रवादी बाबा साहब की सलाह न मानना दलित हिंदुओं के साथ उनको भी बहुत भारी पड़ा। बची- खुची कसर 1971 बंगलादेश मुक्ति-संग्राम में निकल गयी, जिसमें भी लाखों अल्पसंख्यक हिंदुओं की हत्याएँ हुई और बाक़ियों को ज़बरदस्ती धर्मपरिवर्तन कराया गया। मंडल जी के 1950 में भारत भाग आने पर पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं में भगदड़ मच गयी और वे लाखों की संख्या में भारत भाग आए। उन्हें बंगाल, असम, बिहार और यूपी में बसाया गया। नागरिकता न होने के कारण वे देश के विकास के लाभ से वंचित रहे।

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मतुवा हिंदू

‘मतुवा हिंदू’ पश्चिमी बंगाल के नादिया,उत्तर और दक्षिण परगना में भारी संख्या में पाये जाते है। इसी प्रकार नमोंशूद्र भी बंगाल में भारी संख्या में हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस, वामपंथी और त्रीमूल पार्टी की ममता बनर्जी ने इन गरीब दलितों के तरफ़ से मुँह मोड़ लिया। केवल सब्जबाग दिखा कर वोट- बैक के रूप में इस्तेमाल किया। अब मतुवा और नमोंशूद्र जाग गये है। इन्हें भारत की नागरिकता देकर देश की मुख्यधारा में लाकर विकसित किया जायेगा। जोगेंद्र बाबू का ‘दलित - मुस्लिम’ गठजोड़ का ख़ामियाज़ा इन दलितों की पीढ़िया भोग रही थी, जिसका निदान देश की भाजपा सरकार निकालने जा रही है। यह देश के यशस्वी प्रधानमंत्री Narendra Modi की भाजपा सरकार में ही सम्भव है।

(लेखक बृजलाल भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य हैं यह उनके निजी विचार हैं)

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