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अरब-इस्राइलः 11 दिवसीय युद्ध बंद, अब आगे क्या ?

Arab-Israel : अल-अक्सा मस्जिद के परिसर में फिलिस्तीनियों और इस्राइली पुलिस के बीच मुठभेड़ की खबरें आ रही हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shraddha
Published on: 23 May 2021 5:17 AM GMT
हमास और इस्राइल के बीच चल रहा 11 दिवसीय युद्ध बंद
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हमास - इस्राइल (फाइल फोटो सौ. से सोशल मीडिया)

Arab-Israel : हमास और इस्राइल (Hamas and Israel) के बीच चल रहा 11 दिवसीय युद्ध बंद हो गया है, यह अच्छी खबर है लेकिन सारा मामला हल हो गया है, यह नहीं माना जा सकता। क्योंकि युद्ध-विराम की घोषणा के बावजूद अल-अक्सा मस्जिद के परिसर में फिलिस्तीनियों (Palestinians) और इस्राइली पुलिस के बीच मुठभेड़ की खबरें आ रही हैं। फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों ने पत्थर बरसाए तो यहूदी पुलिसवालों ने हथगोले और अश्रुगैस के गोले बरसाए।

बता दें यों तो फिलिस्तीनियों के अतिवादी संगठन हमास और इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू दोनों ने अपनी-अपनी विजय की घोषणा की है लेकिन असलियत यह है कि गाजा-क्षेत्र में लगभग ढाई सौ लोग मारे गए हैं और दो हजार घायल हुए हैं। उनमें यहूदी सिर्फ 12 हैं। हमास ने 11 दिन में 4000 राकेट दागे हैं जबकि इस्राइल ने 1800 । हमास के राकेटों को यदि लोह-स्तंभ Iron Dome नहीं रोकता तो सैकड़ों यहूदी मारे जाते। इस्राइल राकेटों ने सैकड़ों लोगों को हताहत कर दिया लगभग 17 हजार फिलिस्तीनी घर गिरा दिए और लगभग एक लाख लोगों को गाजा-क्षेत्र से भागने को मजबूर कर दिया लेकिन हमास के लोग इस युद्ध-विराम को अपने विजय-दिवस के रुप में मना रहे हैं। वे ऐसा इसीलिए कर रहे हैं कि उन्होंने इस्राइली ज्यादती के सामने घुटने नहीं टेके।

यदि इस्राइल के यहूदियों और पुलिस ने फिलिस्तीनियों को उनकी शेख जर्रा की बस्तियों से खदेड़ना शुरु किया और अल-अक्सा मस्जिद परिसर में कब्जा करने की कोशिश की तो हमास ने राकेट बरसा दिए। अब दोनों पक्षों में युद्ध तो बंद हो गया है लेकिन उस क्षेत्र में दो राज्यों इस्राइल और फिलिस्तीन का सपना आज भी अधर में लटका हुआ है।

संयुक्तराष्ट्र संघ द्वारा दो राज्यों का प्रस्ताव अभी तक सिर्फ कागजों में सिमटा हुआ है। जो फिलिस्तीन इलाका इस्राइल के कब्जे के बाहर है उसमें भी काफी टूट है। आधा हमास के पास है और आधा अल-फतेह के पास। एक तीसरा अतिवादी इस्लामी संगठन भी पिछले कुछ वर्षों में खम ठोकने लगा है। सारे अरब और मुस्लिम देश भी पूरे मन से फलस्तीनियों का साथ नहीं दे रहे हैं। जो कल तक इस्राइल के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए थे, वे अरब देश अब सिर्फ जबानी जमा-खर्च कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन भी कोरे प्रस्ताव पारित करके अपना मौखिक फर्ज पूरा कर देता है। यदि मिस्र और बाइडन का अमेरिका जी-तोड़ कोशिश नहीं करता तो वर्तमान मुठभेड़ 1967 के अरब-इस्राइली युद्ध की भयंकर शक्ल भी ले सकती थी। अब जरुरी है कि भारत-जैसे राष्ट्र, जिनका दोनों पक्षों से अच्छा संबंध है, चुप न रहें, तटस्थ न दिखें, चिकनी-चुपड़ी बातें न करें बल्कि आगे आएं और दोनों पक्षों के बीच स्थायी शांति-समाधान करवाएं।

Shraddha

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