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सेना प्रमुख विपिन रावत के बयान पर विकृत राजनीति

raghvendra
Published on: 28 Feb 2018 9:23 AM GMT
सेना प्रमुख विपिन रावत के बयान पर विकृत राजनीति
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मृत्युंजय दीक्षित

वर्तमान समय में देश में राजनीतिक स्तर व बहस के मुद्दे इतने गिरते जा रहे हैें कि अब बौद्धिक रूप से मजबूत जनमानस टीवी पर होने वाली बहसों और चर्चाओं को नजरअंदाज तक करने लग गया है। सोशल मीडिया व टीवी चैनलों के दौर में केवल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए तथा अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ऐसी बयानबाजी की जाती है कि बस उनसे बड़ा समझदार और देश व समाज के लिए सोचने वाला कोई नहीं है। हाल में देश मेें तीन महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। कनाडा के पीएम अपने परिवार के साथ सात दिनों की यात्रा के लिए भारत पहुंचे, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में संघ के 125 स्कूलों को बंद करने का तुगलकी फरमान सुना दिया और अपना एक बार फिर मुस्लिम प्रेम दिखा दिया, वहीं देश के सेना प्रमुख विपिन रावत ने असम दौरे मेें एक सेमिनार में बांग्लादेशी घुसपैठ पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए एक बड़ा बयान दिया। इन तीनों ही घटनाओं को सेकुलर मीडिया ने अपने राजनीतिक आकाओं के हिसाब से तोड़मरोड़ कर पेश किया और एक गर्मागर्म बहस का माहौल बना दिया।

सबसे अधिक चर्चा सेना प्रमुख के बयान की हुई जबकि उन्होंने असम में बांग्लादेशी घुसपैठ के बारे मेें वास्तविक बातें ही रखी थी तथा उनका कोई राजनीतिक मकसद नहीं था। लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों को मिर्ची लगनी थी सो लग गयी। ये वही दल व नेता हैें जिन्हेंं थलसेना प्रमुख सडक़ के गुंडे लगते हैं। ये वही दल हैं जो कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों व अलगाववादियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल का विरोध करते हैं। ये वही लोग हैं जो समय-समय पर कश्मीर में आपरेशन आलआउट का विरोध करते हुए कहते हैंं कि सेना को बैरकों में ही रहना चाहिए क्योंकि आपरेशन आलआउट के कारण तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का मुस्लिम वोट बैंक भी खतरे में पड़ रहा है। जबसे सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कमान संभाली है और भारतीय सेना लगातार बेहद विपरीत परिस्थितियों में देश की सुरक्षा में लगी हुई है तथा सीमा पार से होने वाले हर प्रकार के खतरे का डटकर सामना कर रही है तबसे इन तथाकथित राजनीतिक ताकतों को अपना वोटबैंक खतरे में नजर आने लगा है। यह सभी दल किसी न किसी बहाने भारतीय सेना को बदनाम करना चाह रहे हैं।

आज यह कटु सत्य है कि पूर्वोत्तर के राज्यों विशेषकर असम और बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठ एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। यह भी पता है कि इन तत्वों को कौन से दल व नेता हर प्रकार का संरक्षण व सहायता प्रदान कर रहे हैं। अभी रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति सबसे बड़ा और खतरनाक प्रेम सबसे पहले एआईएमआईएम अध्यक्ष असबुददीन ओवैसी ने ही दिखाया था और फिर उसके बाद याकूब मेनन और अफजल प्रेमी गैंग सुप्रीम कोर्ट की चौखट में पहुंच गया कि वे शरणार्थी हैं। इसलिए उन्हें शरण दी जाए।

सेना प्रमुख के बयान के बाद यही गैंग एक बार फिर ओवैसी के नेतृत्व में सक्रिय हो उठा और ताबड़तोड़ बयानबाजी करने के बाद टीवी चैनलों पर चर्चा शुरू हो गयी। इसकी आड़ में भारतीय सेना व बीएसएफ के जवान जिस प्रकार से सीमा पर पाकिस्तान को करारा जवाब दे रहे हैं वह भी पीछे छूट गया।

सेना प्रमुख रावत ने सेमिनार में कहा था कि पूर्वोत्तर को अशांत बनाए रखने के लिए चीन की मदद से चलाये जा रहे परोक्ष युद्घ के अंतर्गत पाकिस्तान अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में योजनाबद्घ तरीके से भेज रहा है और वे हमेशा यह कोशिश करेंगे कि परोक्ष युद्घ और घुसपैठ के द्वारा इस क्षेत्र पर नियंत्रण का प्रयास कर लें। उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठ और बदरूद्दीन की पार्टी एआईयूडीएफ पर बयान देते हुए कहा कि असम मेें भाजपा को उभरने में कई साल लग गये, लेकिन एआईयूडीएफ का उभार बहुत तेज गति से हो रहा है तथा इसका सबसे बड़ा कारण है कि बांग्लादेशी इस दल में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। उनका कहना सही भी है क्योंकि अभी विगत चुनावों में भाजपा को रोकने के लिए बदरूद्दीन की पार्टी के साथ सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतें चुनावी तालमेल को लेकर काफी परेशान थीं, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका था।

एआईयूडीएफ का असम की राजनीति में उभार काफी तेज गति से हो रहा है। असम में 2005 में इस दल का गठन किया गया था। 2006 में ही इस दल को काफी चौंकाने वाले अंदाज में 10 सीटें मिल गयीं, लेकिन 2011 के चुनाव में बांग्लाभाषी मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में इस दल ने 18 सीटें बटोर लीं। फिलहाल लोकसभा में उनके तीन संासद और असम में 13 विधायक हैं। बदरूद्दीन पैदा तो असम में ही हुए हैं,लेकिन मुंबई में कपड़ों, रियल स्टेट, चमड़ा, शिक्षा और इत्र का विशाल कारोबार चलाते हैं। विगत विधानसभा चुनावों में यह चर्चा बड़ी गर्म थी कि एक न एक दिन असम मेें बांग्लादेशी घुसपैठिया भी मुख्यमंत्री बन सकता है। लेकिन धर्मनिरपेक्ष ताकतों में समझौता नहीं हो पाया। वोट विभाजन के चलते असम में पहली बार भाजपा की अकेले बहुमत की सरकार बन गयी।

असम में बदरूद्दीन के विरोधी भी मानते हैं कि निचले असम के ग्रामीण इलाकों में गरीबी से परेशान हाल मुसलमानों पर उनकी पकड़ मजबूत है, लेकिन यह भी सच है कि घुसपैठ का दायरा विस्तृत हुआ है। सेना प्रमुख ने मात्र उसी पर चिंता जाहिर की थी, लेकिन खुद को मुस्लिमों का नायक साबित करने में जुटे सांसद ओवैसी ने यह कहने में देर नहीं की कि सेना प्रमुख को राजनैतिक बयानबाजी से बचना चाहिए। उनके समर्थन में संदीप दीक्षित से लेकर भीम अफजल,मनीष तिवारी व स्वयं बदरूद्दीन अजमल भी मैदान में कूद पड़े और सेना प्रमुख के खिलाफ बोल पड़े। यह वही गैंग था जिसने सेना से सर्जिकल स्ट्राइक से सबूत मांग लिये थे। अब यही लोग राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के पास शिकायत लेकर यह कहने जा रहे हैंं कि सेना प्रमुख को राजनेतिक बयानबाजी करने से रोका जाए। अजमल ने दो हाथ आगे बढक़र कहा कि यदि हम घुसपैठिये हैं तो बयानबाजी करने की बजाय हम सभी लोगों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाए।

बांग्लादेशी घुसपैठ एक बहुत गंभीर समस्या बनती जा रही है तथा असम की जनसंख्या में तेजी से खतरनाक स्तर पर बदलाव हो रहे हैंं। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि बांग्लादेशी घुसपैठ पर कोई नियंत्रण नहीं है तथा उनकी जनसंख्या में भी तीव्रगति से वृद्घि हो रही है। उन्हें क्षेत्रीय कट्टरपंथी दलों का संरक्षण भी प्राप्त हो रहा है तथा अल्पसंख्यकवाद की राजनीति करने वाले दल राजनीति कर अपने निहित स्वार्थों को साधने में जुटे हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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